फ्री में चिडिय़ाघर से ले जाइये मच्छरों को खाने वाली मछली

mosquito-fish-gambusiaलखनऊ। राजधानी के वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान में एक से सात अक्टूबर तक वन्य प्राणि सप्ताह का आयोजन किया जाएगा। प्राणि उद्यान प्रशासन इस समाज को मच्छरों से मुक्ति दिलाने की एक मुहिम चलाने जा रहा है। इस मुहिम में वन्य प्राणि सप्ताह के दौरान एक अक्टूबर को मच्छरों का लार्वा खाने वाली मछली का प्राणि उद्यान आने वाले दर्शकों को निशुल्क वितरण करेगा। इस मछली का नाम गंबूसिया है। इसे आप कहीं भी किसी भी तालाब, गढ््ढे, नाली या गटर में भी डाल सकते हैं। इसका मुख्य भोजन मच्छरों का लार्वा है।
वैज्ञानिक नाम गंबूसिया इफैंस तथा स्थानीय भाषा में इसे गटर गप्पी कहते है। आगामी एक अक्टूबर से प्रारम्भ हो रहे वन्य जीव सप्ताह पर प्राणि उद्यान परिसर स्थित एक्का वल्र्ड की सोविनियर शॉप से उक्त मछली का वितरण किया जायेगा। इच्छुक लोग एक जोड़ा गंबूसिया मछली को प्राप्त कर सकते है और इसे ऐसे स्थान पर डाले जहां मच्छर के लार्वा हों।
क्या है गंबूसिया मछली
गंबूसिया मछली की सबसे उपयोगी प्राकृतिक विविधता यह है कि यह अंडे नही देती बल्की सीधे बच्चे देती है। इस कारण इसे लाईव बियरर कहते है। जो मछलियां अंडे देती है उनके 90 प्रतिशत अंडे दुश्मन मछली और व अन्य कीटों द्वारा मार दिये जाते है जबकि गप्पी के बच्चे जन्म से ही अपने बचाव के सहज ज्ञान से जीवन में संघर्ष शुरु कर देते है। बच्चे पानी में इनके पेट से निकल के आते है और आते ही खाने लगते है। ये मछली तीन इंच तक लम्बी हो सकती है और इनका बच्चा दो एमएम का होंने पर भी मच्छरों के लार्वा को खाने लगता है। गप्पी 16 से 28 दिनों के अंतराल पर बच्चे देती है और 14 डिग्री सेल्सियस से 38 डिग्री तक बहुत ही आराम से रह जाती है। सबसे खूब तो यह है कि चाहे गप्पी का बच्चा हो या बड़ी गप्पी मछली, ये अपने कुल भार का 40 प्रतिषत लारवा 12 घंटे में खा सकती है। ये सभी प्रकार के तालाबों में पोखरों में छोटे गड्ढों में नालियों में आराम से रह जाती है और अपना उत्पादन करने लगती है।
ब्रिटिश नाविक ने खोजा था मछली
इस मछली का परिचय कराने का श्रेय महान ब्रिटिश नाविक जेम्स कुक को जाता है। जेम्स कुक का जन्म 7 नवम्बर 1728 को इग्लैंड के एक गांव में हुआ था। युवा काल में इन्होंने रायल ब्रिटिश नेवी में नौकरी की और अपनी कार्य कुशलता के कारण ये कप्तान के औहदे तक पहुंच गये। कुक ने लम्बी यात्राएं की और ब्रिटिश के लिए व्यवपारिक मार्ग और नये उपद्वीपों पर अपनी कालोनी बसाने का कार्य किया। अस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और हवाई द्वीपों की खोज कप्तान कुक ने की। सुदूर यात्रा और भौगोलिक परिस्थियों के कारण इन जगहों पर मच्छरों का प्रकोप रहता था और इसी समस्या का हल कुक ने गप्पी मछली से किया। ये मछली अपने साथ आस्ट्रेलिया ले गये और वहां यही मछली भारत के मुम्बई शहर में आयी। आश्चर्य है कि आज मुम्बई मच्छरों से जनित बीमारी का देश में सबसे बड़ा केन्द्र है।