जानिए कहां की थी विभीषण ने उच्छिष्ट गणपति की उपासना

ganpati temple sanawadफीचर डेस्क। परम पावन बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक औंकारेश्वर के समीप सनावद के ग्राम मोरघड़ी में स्थित है श्री शनि-गजानन शक्तिपीठ। इसी शक्तिपीठ में दर्शन होते हैं दुर्लभ और अद्भुत भगवान उच्छिष्ट महागणपति के, जिनकी गोद में भगवती नील सरस्वती विराजित हैं। उच्छिष्ट महागणपति भगवान गणेश का ही एक स्वरूप हैं, जिनके दर्शन मात्र से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
नर्मदा नदी से कुछ ही दूरी पर प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच स्थित यह मंदिर अपने आप में अनूठा है। जैसे ही आप मंदिर में प्रवेश करेंगे तो सर्वप्रथम आपको शनि देव के दर्शन होंगे। प्रवेश द्वार के बाईं ओर रामभक्त हनुमान विराजमान हैं। शनि प्रतिमा के पीछे स्थित है राज राजेश्वरी ललिता त्रिपुर सुंदरी की दिव्य प्रतिमा और उच्छिष्ट महागणपति की प्रतिमा। यहीं पर आपको दर्शन होते हैं मेरु पृष्ठी श्रीयंत्र के। उच्छिष्ट गणपति का स्वरूप बहुत ही दुर्लभ है। भारत में उच्छिष्ट गणपति का एकमात्र मंदिर तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के समीप काफी जीर्णशीर्ण अवस्था में है, जो कि 1300-1400 साल पुराना है। इसके अलावा चीन में इस तरह का मंदिर होने का उल्लेख मिलता है। वे बताते हैं कि अथर्ववेद में उच्छिष्ट गणपति स्वरूप का उल्लेख मिलता है। मंत्र महार्णव और मंत्र महोदधि नामक ग्रंथों में भी इनका उल्लेख है। सतयुग में गणेशजी के इस स्वरूप की उपासना महर्षि भृगु एवं महर्षि गर्ग ने की थी, जबकि त्रेता युग में वानर राज सुग्रीव और रावण के छोटे भाई विभीषण ने उच्छिष्ट गणपति की आराधना की थी। द्वापर में ऋषि पाराशर एवं कलयुग में आदि शंकराचार्य ने गणेश के इस स्वरूप की उपासना की थी। इसके साथ ही श्री विद्या के सभी उपासक उच्छिष्ट गणपति की निरंतर आराधना करते आ रहे हैं। गणपति मंदिर की विशेषता के बारे में पंडित बर्वे बताते हैं कि यह मंदिर माह में एक बार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन ही खुलता है। इसी दिन इनके दर्शन किए जा सकते हैं। चतुर्थी को शाम के समय महाआरती के बाद गणेशजी की छोटी प्रतिमा को बाहर कीर्ति स्तंभ तक लाया जाता है और सभी श्रद्धालु अपने पैरों को आगे की तरफ रखकर बैठते हैं। बारी-बारी से सभी को भगवान का आशीर्वाद मिलता है। यहां निर्मित कीर्ति स्तंभ के बारे में मान्यता है कि जो उसे नीचे से ऊपर की ओर निहारता है, उसकी कीर्ति बढ़ती है।
वे कहते हैं कि गणेश जी का यह स्वरूप जल्दी फल देने वाला है। गणेशजी के ही अन्य स्वरूपों की तुलना में उच्छिष्ट गणपति दस गुना जल्दी फल देते हैं। जो लाभ सवा लाख जप से मिलता है, वही फल उच्छिष्ट गणपति के साढ़े बारह हजार जप से मिल जाता है। गणपति के इस स्वरूप के दर्शन मात्र से बुद्धि, पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, धन-समृद्धि, पारिवारिक सुख-शांति, दीर्घायु, शीघ्र विवाह एवं अनिष्ट ग्रहों का निवारण होता है। इनकी साधना से अन्न का भंडार बढ़ता है साथ ही व्यवसाय में भी वृद्धि होती है। उच्छिष्ट गणपति के दर्शन और पूजन का शास्त्रीय विधान है।

वेबदुनिया