पीडि़तों को पैसे से खरीदती है अखिलेश सरकार: मायावती

mayawati

लखनऊ। यूपी के दादरी में सैकड़ों लोगों द्वारा उग्र व साम्प्रदायिक होकर एक परिवार के बाप व बेटे की पिटाई करके 50-वर्र्षीय मोहम्मद अखलाक की हत्या व उसके जवान बेटे को अधमरा कर देने के मामले को शर्मनाक व दर्दनाक बताते हुये बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि पुलिस की विफलता के साथ-साथ प्रदेश सपा सरकार की बदतर कानून-व्यवस्था की स्थिति की दूसरी मिसाल और क्या हो सकती है।
आज यहां जारी एक बयान में मायावती ने कहा कि दादरी की इस दर्दनाक घटना के लिए आरएसएस व भाजपा के अराजक व अपराधी तत्वों से ज्याादा उत्तर प्रदेश की सपा सरकार दोषी है। केवल दादरी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में ऐसे साम्प्रदायिक मुस्लिम-विरोधी अराजक व अपराधी तत्व काफी ज्यादा सक्रिय होकर माहौल को खराब करने में लगे हुये हैं, परन्तु प्रदेश की सपा सरकार उन तत्वों के खिलाफ समय पर सख्त कार्रवाई करना तो दूर की बात है, उन लोगों पर काफी मेहरबान भी बनी हुई है। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ना तो खुद कार्रवाई करती है और ना ही स्थानीय स्तर पर सिविल व पुलिस अधिकारियों को अपना दायित्व सही ढंग से निभाने दे रही है। इसका खास कारण यह है कि प्रदेश की सपा व अखिलेश सरकार का यह मानना है कि अराजकता, दंगा-फसाद, बलात्कार व हत्याओं के माहौल में ही वह जिन्दा रह सकती है। कानून-व्यवस्था व शन्ति का माहौल उसे कतई पसन्द नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्तमान अखिलेश यादव की सपा सरकार में साम्प्रदायिक, जातिवादी व अराजक तत्वों को सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में जितनी ज्यादा हर प्रकार की खुली छूट व आजादी मिली हुई है उतनी शायद देश के किसी राज्य में विरोधी पार्टियों की किसी भी पार्टी की सरकार में नहीं मिली हुई है। मायावती ने कहा कि लोगों का मानना है कि अकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबी प्रदेश की समाजवादी सरकार प्रदेश में होने वाली किसी भी शर्मनाक व दर्दनाक घटना एवं नरसंहार आदि के मामलों में कभी भी थोड़ा भी शर्मसार व शर्मिन्दा नहीं लगी है और ना ही पीडि़त परिवारों को न्याय व दोषियों को सख्त सजा दिलाने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने के मामले में कभी गम्भीर प्रयास ही किया है, जिसकी बदतरीन मिसाल मुजफ्फपुर, शामली में सन् 2003 में घटित जघन्य साम्प्रदायिक घटना भी है। बल्कि इसके विपरीत हर जघन्य घटना को रुपये में तौलना इस अखिलेश सरकार की खास खराब आदत बन गयी है, क्योंकि उसे लगता है कि पीडि़तों को न्याय की अभिलाषा को रुपये में तौला व खरीदा जा सकता है।