एक शताब्दी पुराना बजरंग अखाड़ा बदहाली का शिकार

akhadaसुधीर जैन,जगदलपुर। शहर का बजरंग अखाड़ा धार्मिक आस्था का केंंद्र ही नहीं अपितु अच्छी शिक्षा और बजरंग अखाड़े के नाम से भी चर्चित था, किंतु रियासत खत्म होने के बाद यह ऐतिहासिक स्थल खंडहर में तब्दील हो गया है। इस अखाड़े में दांव लगाने वाले लोग इसकी दुर्दशा देखकर दुखी हो रहे हैं।
शिक्षा के साथ अखाड़े में कुश्ती सीखे शहर के प्रतिष्ठत नागरिक बीएल झा 83 साल पुरानी तस्वीर दिखाते हुए कहते हैं कि पुरानी विरासत को विस्मृत करना बेमानी है। शहर के दलपत सागर चौक में स्थित भगवान श्री कृष्ण मंदिर करीब 110 साल पुराना है। मंदिर में सामने 6 कमरों का एक मंजिला अखाड़ा और मंदिर के पीछे एक कुंआ बनवाया गया था। इस कुंए के जल से ही उन दिनों नगरवासियों की प्यास बुझती थी। वर्ष 1915 से यहां बजरंग अखाड़ा शुरू किया गया था। कृष्ण मंदिर स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक ही बच्चों को कुश्ती सिखाते थे। वर्ष 1932 में इस अखाड़े के भूतपूर्व छात्र रहे डॉ बीएल झा बताते है कि उन दिनों भिखारीराम नामक शिक्षक वहां पदस्थ थे। वे बच्चों का पढ़ाने के अलावा कुश्ती भी सिखाते थे। कुछ दिनों के बाद एक और प्राथमिक शाला गंगा मुण्डा में प्रारंभ किया गया। बावजूद इसके सभी बच्चे बजरंग अखाड़े में नियमित रूप से आते रहे नाग पंचमी को सहपाठियों के बीच कुश्ती का सालाना मुकाबला हुआ करता था। वर्ष 1948 में बस्तर रियासत का स्वतंत्र भारत में विलय हो जाने के बाद बजरंग अखाड़े का रखरखाव नहीं हो पाया और बस्तर का पहला अखाड़ा हमेशा के लिए बंद हो गया।
श्री झा बताते है कि उन दिनों खेलकूद अनिवार्य था। बावजूद इसके वे 1932 में पूरे बस्तर रियासत की प्राथमिक शालाओं में अव्वल आए थे। उनका कहना है कि कुश्ती देश का पुराना संास्कृतिक खेल रहा है, लेकिन आजादी के बाद बस्तर के एक मात्र बजरंग अखाड़े को बंद करने से लोगों को पीड़ा हुई थी। वर्तमान में उजाड़ पड़ा अखाड़ा बस्तर इतिहास का मूक साक्षी है।
ज्ञात हो की बस्तर टेम्पल कमेटी के अंतर्गत 24 मंदिर हैं, इनमें बजरंग अखाड़ा युक्त कृष्ण मंदिर भी आता है। कमेटी मंदिरों का तो रखरखाव कर रही है, परंतु बजरंग अखाड़े वाले जर्जर भवन को व्यवस्थित करने का प्रयास कभी नहीं किया। इसके चलते यह जर्जर हो गया है। सूत्रों ने बताया कि कमेटी की योजना अखाड़ा भवन को गिराकर आदिवासी विश्रामगृह बनाने की है ताकि दशहरे में आने वाले ग्रामीण आकर ठहर सकें ।