हमारे लिए मंगल: स्वप्न लोक और मायावी दुनिया

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विचार डेस्क। वैज्ञानिकों के लिए मंगल एक ग्रह है, पर आम आदमी के लिए वह उससे कहीं ज्यादा है। एक स्वप्नलोक, किस्सों की मायावी दुनिया या कुछ और। एक तरफ साइंटिस्ट सबूतों की रोशनी में उसकी गुत्थियां सुलझाने में लगे रहते हैं तो दूसरी तरफ लोग मंगल को अपनी कल्पना के अंतरिक्ष में उड़ान भर रहे होते हैं। यह भी कैसा संयोग है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने ऐसे समय मंगल पर पानी होने की पुष्टि की है, जिस समय इस ग्रह को लेकर बनाई गई हॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फिल्म द मार्सियन लोगों के दिलो-दिमाग पर छाई हुई है।
गौरतलब है कि नासा के नए डेटा के मुताबिक मंगल की सतह पर बहते पानी की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। उसकी चोटियों पर कई गहरी लकीरें दिखी हैं, जो पानी और नमक के कारण बनी हैं। इससे इस अनुमान को बल मिला है कि वहां जीवन हो सकता है। जहिर है अब चुनौती यह पता लगाने की होगी कि वहां अगर जीवन है तो किस रूप में है? क्या वहां मनुष्य के रहने लायक स्थितियां बनाई जा सकती हैं? स्टीफन हॉकिंग जैसे कुछ वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि मंगल को बदला जा सकता है। संभव है अब इस प्रश्न का भी उत्तर मिले कि ब्रमाण्ड में जीवन एक कौंध की तरह प्रकट हुआ या इसके पीछे भी कोई नियम काम कर रहा है।
वैज्ञानिक अपने काम पर जुट जाएंगे, लेकिन लोगों की कल्पना विराम नहीं लेगी। लोग न जाने कब से मंगल के पीछे कल्पना के घोड़े दौड़ाते रहे हैं। 1898 में एचजी वेल्स ने मंगल को लेकर जनमानस की कल्पनाओं पर वार ऑफ वर्ल्ड्स नामक उपन्यास लिखा था, जिसमें मंगल के प्राणी पृथ्वी पर हमला कर देते हैं। यह इतना प्रसिद्ध हुआ कि इस पर अनेक फिल्में, सीरियल्स, रेडियो नाटक कॉमिक्स आदि बनाए गए। 30 अक्टूबर 1938 को सीबीएस रेडियो पर अनाउंसर आर्सन वेलेस ने घोषणा की कि धरती पर मंगलग्रह के निवासियों ने हमला बोल दिया है। इसे सुनते ही हड़कंप मच गया। इसी तरह सन 1950 में कुछ लोगों ने मंगल ग्रह पर अंग्रेजी का विशाल एम बना देखा। हाल में वहां की एक तस्वीर में लोगों को एक महिला चलती हुई दिखी थी। साफ है कि हमारे जेहन में मंगल तरह-तरह से ऊधम मचाता रहता है। मचाता ही रहेगा।