सुषमा स्वराज की नेक सलाह माने पाकिस्तान

sushma-_new_imgकृष्णमोहन झा। पाकिस्तान सरकार के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ एक बार फिर हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अमेरिका में थे परंतु दोनों के बीच बातचीत नहीं हुई। सिर्फ हाथ हिलाकर दोनों ने एक दूसरे का अभिवाद किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने पाकिस्तानी समकक्ष से बातचीत में कोई गुरेज नहीं था परंतु नवाज शरीफ के मन में यह कसक अवश्य थी कि प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट की दावेदारी के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का समर्थन जुटाने में सफल हो चुके हैं। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा शिखर सम्मेलन में दोनों प्रधानमंत्रियों का आमना सामना होने के पूर्व ही अमेरिका ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी को अपना समर्थन दोहरा दिया था। तीन महाशक्तियों के द्वारा भारत के दिए गए इस समर्थन के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सुधार प्रक्रिया में भारत अपना पक्ष और मजबूती के साथ पेश करेगा। यही कसक नवाज शरीफ के मन में थी जिसकी अभिव्यक्ति उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में करने से परहेज नहीं किया। लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यह भूल गए कि उनकी इस शरारत का माकुल जवाब देने के लिए भारत पहले से ही तैयार है। भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने जब आक्रामक शैली में नवाज को दो टूक जवाब दिया तो नवाज के पास कुछ कहने के लिए नहीं बचा था। नवाज शरीफ ने अपने भाषण में यह साबित करने की कोशिश की थी कि भारत के साथ शांति संबंध कायम करने के लिए पाकिस्तान तो तैयार है परंतु भारत की ओर से ही इसमें बाधा डाली जा रही हे। हद तो तब हो गई जब नवाज शरीफ ने भारत के साथ शांति प्रक्रिया शुरू करने के लिए चार शर्ते भी पेश कर दी। नवाज की ये चार शर्ते थी- कश्मीर से भारत सेना हटाए, सियाचिन से बिना शर्त सैन्य वापिसी हो, भारत संघर्ष विराम का उल्लंघन न करें और सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या न बढ़ाई जाए। जाहिर सी बात है कि भारत के सामने ये चार शर्ते पेश कर पाकिस्तान प्रधानमंत्री ने भारत को चिढ़ाने की ही कोशिश की थी। सारी दुनिया जानती है कि संघर्ष विराम का उल्लंघन हमेशा से ही पाकिस्तान करता रहा है और उसके द्वारा अलगाववादी संगठनों को संरक्षण दिए जाने के कारण भारत को वहां सेना को तैनात रखना पड़ रहा है। सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी को महाशक्तियों के जोरदार समर्थन से पाकिस्तान बौखला उठा है इसलिए वह सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाए जाने का विरोध करने पर उतर आया है। उसे सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाए जाने के लिए प्रारंभ होने वाली सुधार प्रक्रिया से एकमात्र आपत्ति यही है कि भारत इस मामले में बाजी मार ले जाने की स्थिति में आ चुका है। इसलिए नवाज शरीफ के भाषण में उनके मन की भड़ास तो निकलना ही थी। नवाज शरीफ इसलिए भी खीजे हुए है कि जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह का मुद्दा जब उन्होंने संयुक्तराष्ट्र महासचिव बान की मून के साथ बातचीत में उठाया तो उन्हें कोई हमदर्दी नहीं मिल सकी। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता से ही सुलझाने पर जोर दिया। अमेरिकी विदेश मंत्री जान केरी के साथ हुई बातचीत से भी नवाज को निराशा हाथ लगी थी। अमेरिका में लगभग एक साथ पहुंचे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की वहां जो आवभगत हुई उसमें भी मोदी अपने पाकिस्तानी समकक्ष पर इतने भारी पड़े कि पाकिस्तान के ही एक प्रमुख अखबार डान ने नवाज की कटु शब्दों में आलोचना कर डाली। अखबार का मानना था कि नवाज शरीफ ने वहां एक राष्ट्राध्यक्ष के रूप में अपेक्षित सम्मान अर्जित करने की कोई कोशिश ही नहीं की। नवाज के मन में घर कर चुकी यहीं कुंठा दरअसल संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में दिए गए भाषण में उजागर हो गई जिसका उन्हें माकूल जवाब भी भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिल गया जब सुषमा स्वराज ने दो टूक लहजे में कहा कि चार सूत्र छोडकऱ बस एक सूत्र अपनाए- वह यह कि आतंक छोड़ो, बैठकर बात करो। गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के बीच दो बार वार्ताएं केवल पाकिस्तान की इस शरारत के कारण आयोजित नहीं हो सकी कि उसने भारत के साथ वार्ता के पूर्व कश्मीर के अलगाववादी संगठनों के नेताओं से बातचीत करना मुनासिब समझा। वार्ता टूटने का दोष भी पाकिस्तान ने भारत के सिर मढऩे की हिमाकत करने से परहेज नहीं किया।
पाकिस्तान के पास कश्मीर का रोना रोने के अलावा कोई काम नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसने हमेशा कश्मीर का राग अलापा है परंतु उसकी बेसुरी तान सुनने के लिए अब महाशक्तियां तैयार नहीं है। धीरे धीरे अब तो यह स्थिति बनती जा रही है कि पाक अधिकृत कश्मीर में भी पाकिस्तान सरकार के प्रति असंतोष पनपने लगा है। खबरें तो यह भी हैं पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर के जिस हिस्से को आजाद कश्मीर का नाम देता आया है वहां की आबादी का एक वर्ग अब पाकिस्तान से ही आजाद होने के लिए छटपटाने लगा है। इस स्थिति ने पाकिस्तान सरकार का सुख चैन छीन लिया है। इसलिए पाकिस्तान का एकमात्र एजेंडा यही रह गया है कि वह भारत के खिलाफ दुष्प्रचार जारी रखे।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जो शर्ते पेश की थी उस पर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के दो टूक जवाब ने पाकिस्तान की हालत खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे जैसी कर दी है। नवाज शरीफ जहां पूरे अमेरिका प्रवास के दौरान कश्मीर का राग अलापते रहे वहीं सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में कश्मीर का केवल एक बार जिक्र किया। सुषमा स्वराज ने यह भी कहा कि मुंबई के आतंकी हमले के मुख्य आरोपी पाकिस्तान में बेखौफ घूम रहे हैं और पाकिस्तान सरकार उन पर कोई कार्रवाई नहीं करना चाहती। सुषमा स्वराज के जवाब से मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान की बौखलाहट का अनुमान भी उसकी इसी शरारत से लगाया जा सकता है कि उसने भारत के विरूद्ध एक डोजियर संयुक्त राष्ट्र महासभा सचिव बान की मून को सौंपने में तनिक भी देर नहीं की। इसमें उल्टे भारत पर आरोप लगाया गया है वह आतंकवाद का इस्तेमाल कर दोनों देशों के बीच माहौल खराब कर रहा है। कुल मिलाकर वास्तविकता यह है कि हमेशा ही कश्मीर के मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की कोशिश में लगे पाकिस्तान को इस बार भी जो असफलता हाथ लगी है उससे वह इस कदर बौखला उठा है कि उसकी शरारतें और बढऩे की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान की परेशानी दरअसल भारत में प्रधानमंत्री पद की बागडोर नरेन्द्र मोदी के हाथों में आने के बाद से ही बढ़ी है। उसकी हर नापाक हरकत का माकुल जवाब अब भारत सरकार से मिल रहा है, लेकिन वह यह समझने के लिए तैयार ही नहीं है कि इन हरकतों से तौबा कर लेने में ही उसकी भलाई है और इस क्षेत्र में शांति का माहौल बनाने में सहयोग देकर वह स्वयं अपनी समस्याओं से निजात पा सकता है। लेकिन यह भी तय है कि पाकिस्तान से ऐसी उम्मीद करना बेमानी साबित होगा कि वह भारतीय विदेश मंत्री की नेक सलाह पर अमल करने में दिलचस्पी दिखाएगा।