देश भर के कालेजों में पसरी विरासत को सहेजने में जुटा यूजीसी

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इलाहाबाद। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी देश भर के कालेजों में पसरी विरासत को सहेजने में जुटा है। वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ता अपनी गौरवशाली धरोहर को धूल में मिलाने को आमादा है। बात हो रही है विश्वविद्यालय के स्वीमिंग पूल की। अपने में इतिहास संजोए इस धरोहर को विश्वविद्यालय प्रशासन ने तोडऩे की पूरी जमीन तैयार कर ली है, सिर्फ कार्रवाई शुरू होना भर शेष है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय परिसर में स्वीमिंग पूल स्थित है। इस 25 मीटर लंबे एवं 18 मीटर चौड़े पूल को कुंवर सर महराज सिंह ने सन 1941 में बनवाया था। ये वही कुंवर सर महराज हैं जिनका लखनऊ विश्वविद्यालय के निर्माण में योगदान रहा और सेंट्रल प्राविंस के वह पहले इंडियन गवर्नर थे। इलाहाबाद के इस पहले स्वीमिंग पूल की युवा कभी पूरे हनक के साथ चर्चा करते थे। यह पूल वर्ष 1992.93 तक निरंतर चलता रहा। बाद में किन्हीं कारणों से इस पूल को बंद कर दिया गया। वर्ष 2000 में बने विश्वविद्यालय के मास्टर प्लान में इस स्वीमिंग पूल को तोड़कर वहां लेक्चर कांप्लेक्स बनाने की योजना तैयार हुई और एक दूसरा स्वीमिंग पूल प्रवेश भवन क्षेत्र में बनाने पर सहमति बनी। 2009 में विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग के डॉ. डीसी लाल ने इस पूल को फिर से संचालित कराया। इसका एलाइनमेंट इतना बेहतर है कि एक गिलास पानी भी आसानी से बह जाता है। पूल की सफाई में इसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
विश्वविद्यालय का दावा है कि इसकी जगह पर 50 मीटर लंबा नया स्वीमिंग पूल बनाया जाएगा लेकिन यूनिवर्सिटी स्तर पर 25 मीटर लंबाई का स्वीमिंग पूल प्रतियोगिता आदि के लिए पर्याप्त माना जाता है। शायद इसीलिए पिछले दिनों जोधपुर यूनिवर्सिटी ने यूजीसी को 50 मीटर लंबे स्वीमिंग पूल के निर्माण के लिए मिला धन वापस लौटा दिया। वैसे भी जब यूजीसी विरासत कालेज योजना शुरू करके ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित कर रहा है, तब चल रहे स्वीमिंग पूल को तोडऩा कहीं से जायज नहीं है। उधर, विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो. बीपी सिंह ने कहा कि वित्त समिति समेत कई समितियों ने मास्टर प्लान के अनुसार विश्वविद्यालय का विकास करने पर सहमति जताई है। ऐसे में पूल की जगह पर लेक्चर कांप्लेक्स बनेगा जबकि स्वीमिंग पूल के लिए दूसरी जगह आरक्षित की गई है।