सहवाग की नवाब-सी विदाई नहीं

sahwag

हमने उन्हें कभी मुल्तान का सुल्तान कहा तो कभी नजफगढ़ का नवाब। मगर उनके जन्मदिन पर जिस तरह से उनके क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास लेने की खबर आई, उसने हर क्रिकेट प्रेमी को हतप्रभ किया। अभी उनका क्रिकेट बाकी था और अच्छा होता यदि वे किसी यादगार पारी को खेलते हुए दर्शकों के बीच से गौरवपूर्ण विदाई लेते। मगर सहवाग हमेशा अपने अंदाज में खेले और अपने अंदाज में अलविदा कह गए। कहीं न कहीं पिछले तीन साल से क्रिकेट की मुख्यधारा से अलग-थलग रहना उन्हें टीस दे रहा था। यह ठीक है कि वे फॉर्म में नहीं थे मगर क्रिकेट जीने वाले के लिए ऐसा जीना आसान नहीं। दरअसल, सहवाग का खेल व जीवन स्वाभाविक है। वे अपनी मौलिक शैली में खेलते थे। हर गेंद की ठुकाई समभाव से करते थे। उन्होंने क्रिकेट में रन बनाने की रफ्तार को हकीकत बनाया। गेंद उनसे डरती थी। यह सहवाग के लिए संभव था कि शतक के करीब पहुंचकर चौक्का-छक्का लगा दें। याद कीजिये पाकिस्तान में 2004 के उस मैच को जब उन्होंने 294 के स्कोर पर पहुंचकर छक्का जड़ा। हर खिलाड़ी इस स्कोर पर पहुंचकर ऐसा रिस्क नहीं ले सकता। उनके कई रिकॉर्ड हमेशा क्रिकेट की किताब में दर्ज रहेंगे।
सहवाग के दो तिहरे शतक उन्हें भारतीय क्रिकेट के शीर्ष पर बैठाते हैं। एक दिवसीय क्रिकेट में उनका तेज शतक याद रहेगा। 104 टेस्टों में 8500?और 251 वन डे में बनाए गए 8273 रन उनके उत्कृष्ट खेल की कथा बयां करते हैं। एक अच्छे इनसान और जुनूनी खिलाड़ी के रूप में सहवाग हमेशा याद किये जाते रहेंगे। वे हमेशा किसी भी तरह के विवाद से दूर रहे। क्रिकेट का ग्लैमर उन्हें छू तक न सका। उन्होंने स्वाभाविक क्रिकेटर का जीवन जिया और स्वाभाविक खेल खेला। उनकी फिटनेस को लेकर सवाल उठे। उन्हें तमाम तरह की नसीहतें दी गईं। मगर उन्होंने सहवाग को सहवाग ही रहने दिया। विदा लेते वक्त उन्होंने कहा भी कि बीते सालों में क्रिकेट को लेकर मुझे कई सलाहें दी गईं। मैं ज्यादातर की सलाह न मानने के लिए माफी मांगता हूं। मेरे पास सलाह न मानने की वाजिब वजह थी। मैं अपनी तरह का क्रिकेट खेलता हूं। बहरहाल सहवाग के ठेठ हरियाणवी अंदाज के क्रिकेट की छाप क्रिकेट प्रेमियों के दिल पर हमेशा बनी रहेगी।