नेताजी की कहानी: बॉडीगार्ड की जुबानी

nizamuddin

वाराणसी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत प्लेन क्रैश में हुई या वो आज भी जिंदा है, इसे लेकर पूरी दुनिया में रहस्य बरकरार है। आजाद हिंद फौज के दस्तावेजों के मुताबिकए भारत में केवल कर्नल निजामुद्दीन ही ऐसे जिंदा शख्स हैं जो नेताजी के करीबी थे। 114 साल की उम्र के निजामुद्दीन यूपी के आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर के रहने वाले हैं। नेताजी के निधन की विवादास्पद तारीख पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें उनके एक मात्र जिंदा सहयोगी से मिली जानकारी के आधार पर बता रहा है।
कर्नल निजामुद्दीन आज भी नेताजी की बात करते हुए फक्र महसूस करते हैं। नेताजी की बातें करते वक्त उनकी आंखें भर आती हैं। वो बताते हैं कि बर्मा में छितांग नदी के पास 20 अगस्त 1947 नेताजी को उन्होंने आखिरी बार नाव पर छोड़ा था। इसके बाद से आज तक उनसे मुलाकात नहीं हुई।
कर्नल निजामुद्दीन बताते हैं कि आजाद हिंद फौज के गठन की भूमिका के साथ नेताजी ने आजादी का बिगुल पूरे भारत में फूंका और ज्यादा से ज्यादा लोगों को रंगून के जुबली हॉल में इक_ा होने को कहा। जुलाई 1943 को बर्मा, सिंगापुर, रंगून के प्रवासी भारतीयों ने आजाद हिंद फौज के फंड के लिए 26 बोरे सोने, चांदी, हीरे-जवाहरात और पैसों से नेता जी को तराजू में तौल दिया था। निजामुद्दीन के मुताबिक हमने पीठ पर लादकर बोरों को कोषागार में रखा था। सबने शपथ ली थी कि देश की आजादी के लिए सब कुछ कुर्बान कर देंगे। लोगों का स्नेह देखकर नेताजी भावुक हो उठे थे। 9 जुलाई 1943 को नेताजी ने नारा दिया करो सब न्योछावर बनो सब फकीर। इस नारे के बाद रंगून में आजाद हिंद फौज बैंक में एक दिन में 20 करोड़ रुपए जमा हो गए। इसके बाद अक्टूबर 1943 में आजाद हिंद सरकार को मान्यता मिल गई।