इनसे मिलिये ये हैं खोया-पाया तिवारी

rajaram-tiwariइलाहाबाद । बॉलीवुड की कई फिल्मों में आपने देखा होगा कि दो भाई बचपन में कुंभ मेले में बिछड़ जाते हैं और फिर बड़े होने पर मूवी के एंड में मिल जाते हैं, लेकिन यूपी में एक ऐसा शख्स है, जो पिछले 70 साल से रियल लाइफ में बिछड़े हुए लोगों को मिला रहे हैं। 86 साल के राजाराम तिवारी इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ मेले में भूले-भटके शिविर लगाते हैं। उनके जज्बे और सामाजिक कार्य से प्रभावित होकर अमिताभ बच्चन ने भी उन्हें टीवी शो आज की रात है जिंदगी में बुलाया और सम्मानित किया।
मूल रूप से प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले राजाराम तिवारी 16 साल की उम्र में कुंभ मेला घूमने आए थे। इसी दौरान उन्हें एक बुजुर्ग महिला मिलीं, जो अपने परिवार से बिछड़ गई थीं। उस जमाने में लाउड स्पीकर की व्यवस्था भी नहीं थी, जिससे अनाउंस कराया जा सके। उन्होंने महिला को परिवार से मिलाने के लिए कई जगहों पर तलाश किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। काफी जतन करने के बाद आखिरकार उन्हें वह जगह पता चल गई, जहां परिवार ठहरा हुआ था। उस बुजुर्ग महिला को घरवालों से मिलवाने के बाद राजाराम तिवारी को इतनी संतुष्टि हुई कि उन्होंने उसी वक्त ठान लिया कि मेले में एक ऐसा शिविर लगाएंगे, जहां भूले-भटके लोगों को मिलवाया जा सके।
साल 1946 में की शिविर की शुरुआत : साल 1946 में 18 साल की उम्र में राजाराम तिवारी ने गंगा तट पर भूले-भटके शिविर की शुरुआत की। मेले में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक अगर कोई अपने परिवार से बिछड़ जाता है तो उसे भूले-भटके शिविर में भेजा जाता है। यहां पूरी डिटेल्स पूछकर लाउड स्पीकर से अनाउंस किया जाता है। इसके बाद बिछड़ा हुआ व्यक्ति या उसका परिवार नाम सुनकर शिविर पर आ जाता है।
अब बेटा भी संभाल रहा है उनका काम : 86 साल के राजाराम तिवारी अब उम्र की वजह से ज्यादा काम नहीं कर पाते हैं। ऐसे में उनके बेटे उमेश तिवारी इस कार्य में उनकी मदद करते हैं। राजाराम तिवारी बताते हैं कि साल 1954 में कुंभ मेले की भगदड़ उनके सामने हुई थी। उस वक्त कई लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी। घटना को याद कर आज भी उनका मन भारी हो जाता है। उस समय प्रशासन भीड़ को नियंत्रित करने में फेल हो गया था।
टीन काटकर बनाया था भोंपू : उमेश चंद्र तिवारी ने बताया कि उस जमाने में लाउडस्पीकर न होने की वजह से उनके पिता ने टीन काटकर उसका भोंपू बनाया था। नौ लोगों की टोली के साथ वह दिनभर मेले में पैदल घूमकर भूले.भटकों को मिलाते थे। तब उनके इस कार्य की जिला प्रशासन ने काफी सराहना भी की थी।
शिविर से जुड़ते गए कई सामाजिक कार्यकर्ता : राजाराम तिवारी बताते हैं कि समय काफी बदल गया है। अब लोग सामाजिक कार्य के लिए आगे आने लगे हैं। कुंभ और अर्ध कुंभ मेले में भारत और अन्य देशों के लोग भी आते हैं। वहीं विदेशियों को हिंदी समझने में काफी दिक्कत होती है। इसीलिए कुछ सामाजिक कार्यकर्ता भूले-भटके शिविर से जुड़ गए हैं, जो क्षेत्रीय भाषा के जानकार हैं। उनकी मदद से बाहर से आए कई लोगों को बिछडऩे पर उनके परिवार से मिलाया है।