आईएसआईएस का अर्थशास्त्र नहीं है अस्वाभाविक

Islamic_Stateविचार डेस्क। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आतंकी संगठन आईएसआईएस को कई देशों से मदद मिलने की जो बात कही है, वह अस्वाभाविक नहीं लगती। इस संगठन का इतने समय तक इतना बड़ा इलाका कब्जा करके रहना और अपने गढ़ से हजारों मील दूर इतनी बड़ी कार्रवाइयों को अंजाम दे पाना बिना किसी बाहरी सहयोग के संभव नहीं है।
पुतिन ने कहा है कि आईएसआईएस को 40 देशों से पैसा पहुंच रहा है, जिसमें जी-20 से जुड़े देश भी शामिल हैं। पुतिन ने यह भी कहा कि आईएसआईएस कच्चे तेल का गैरकानूनी कारोबार करता है, जिसे तुरंत खत्म करने की जरूरत है। यह एक कड़वा सच है कि आईएसआईएस का सालाना अरबों डॉलर के टर्नओवर वाला एक मजबूत आर्थिक ढांचा तैयार हो गया है। सीरिया और इराक में 90 हजार वर्ग किलोमीटर के विशाल इलाके पर उसका कब्जा है, जिसमें इन देशों के 60 फीसदी तेल कुएं हैं। सीरिया से वह करीब 30 हजार बैरल जबकि इराक से 10 हजार से 20 हजार बैरल तेल रोजाना निकाल रहा है। यह तेल पड़ोसी तुर्की के एक बंदरगाह पर बिचौलियों को बेचा जा रहा है।
आईएसआईएस तस्करों को 35 डॉलर प्रति बैरल और कभी-कभी 10 डॉलर प्रति बैरल की दर से तेल बेच देता है, जबकि इंटरनैशनल मार्केट में 50 डॉलर प्रति बैरल का रेट चल रहा है। यह संगठन कई देशों से चंदा लेकर भी फंड जुटाता है। पोर्नोग्राफी, लूटपाट, तस्करी, हथियारों की बिक्री, नकली माल और दवाओं की बिक्री से भी वह पैसे बना रहा है। क्या अमेरिका की खुफिया एजेंसियों को यह सब पता नहीं था?
सोमवार को पहली बार अमेरिकी बमवर्षकों ने सीरिया में आईएसआईएस के उन सैकड़ों ट्रकों पर हमला किया, जिनमें कच्चा तेल भर कर तस्करी के लिए ले जाया जा रहा था। क्या यह कार्रवाई पहले नहीं की जा सकती थी? ऐसा होता तो इस संगठन की कमर पहले ही टूट गई होती और वह फ्रांस जैसी कार्रवाई करने की हालत में ही न होता। अमेरिका ने अल कायदा और तालिबान के साथ भी यही किया था। पहले उन्हें फलने-फूलने दिया, फिर खुद पर बन पाई तो उसके खिलाफ ऐक्शन लिया। यही कहानी अब आईएसआईएस के साथ दोहराई जा रही है।
उसे पैसे कहां से मिल रहे हैं, इसका अंदाजा सबको है। सुन्नी हुकूमतों में यह बात बैठ गई है कि अमेरिका और उसके साथी मुल्क अपने सामरिक कारणों से इराक और सीरिया के ईरान समर्थित शिया गुटों को मदद दे रहे हैं। इस मसले को कूटनीति के जरिए साफ किया जा सकता है, लेकिन अमेरिका और यूरोप सऊदी अरब और तुर्की से मतभेद का जोखिम नहीं उठाना चाहते।
भारत ने स्पष्ट कहा है कि आतंक से निपटने में किसी तरह का दोहरा रवैया नहीं अपनाया जाना चाहिए। सभी जिम्मेदार देश अगर मिलकर काम करें, ईमानदारी के साथ सूचनाएं साझा करें और आपस में तालमेल बिठाकर कार्रवाई करें तो आईएसआईएस को पाई-पाई का मोहताज बनाकर जल्द ही उसे घुटने टेकने को मजबूर किया जा सकता है।