मानवीय हक में नजीर फैसला

Allahabad-High-Courtसंगीता भटनागर।
देश में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं की वजह से गर्भवती हुई पीडि़त से जन्मी संतानों के अधिकारों को लेकर छिड़ी बहस के बीच हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक ऐतिहासिक व्यवस्था दी है। यह व्यवस्था ऐसी संतान को अपने जैविक पिता या यों कहें कि बलात्कार करने वाले व्यक्ति की संपत्ति में अधिकार दिलाती है। ऐसा संभवत: पहली बार हुआ है कि किसी न्यायिक व्यवस्था में बलात्कार की वजह से गर्भवती हुई पीडि़त की कोख से जन्म लेने वाली संतान को उसके जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार दिलाने के साथ ही ऐसी संतान की परवरिश की जिम्मेदारी शासन पर डाली गयी है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के इस निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे और उत्तर प्रदेश से बाहर भी ऐसी घटनाओं के बाद जन्म लेने वाली संतानों के संपत्ति में अधिकार को लेकर उठने वाले विवादों में इस फैसले की नजीर दी जायेगी। न्यायमूर्ति शबीहुल हसनैन और न्यायमूर्ति डी. के. उपाध्याय ने अपने फैसले में कहा है कि हालांकि बलात्कार की घटना की वजह से जन्म लेने वाली संतान बलात्कार के आरोपी की नाजायज संतान होगी, लेकिन कुछ परिस्थितियों में ऐसी संतान का अपने जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार होगा। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि ऐसी संतान को कोई दंपति गोद लेता है तो जैविक पिता की संपत्ति में उसका किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होगा।
न्यायालय की व्यवस्था से स्पष्ट है कि इस तरह के अपराध की वजह से जन्मी संतान अपने जैविक पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा लेने का दावा कर सकती है बशर्ते किसी अन्य परिवार ने उसे गोद नहीं लिया हो। न्यायालय ने दो टूक शब्दों में कहा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बलात्कार पीडि़त से जन्म लेने वाला यह बच्चा परस्पर सहमति से स्थापित यौन संबंधों का नतीजा था या किसी और वजह से उसका जन्म हुआ, लेकिन इस तरह से जन्म लेने वाले बच्चे का अपने जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार होगा और ऐसे मामले में बच्चा अपने जैविक पिता पर लागू होने वाले पर्सनल-लाÓ से शासित होगा।
न्यायालय ने बलात्कार की वजह से गर्भवती हुई एक नाबालिग लड़की के माता-पिता की याचिका पर यह व्यवस्था दी। इस मामले में न्यायालय ने डाक्टरों के एक दल की राय के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं दी। बाद में इस लड़की ने एक बच्ची को जन्म दिया तो इसके भरण पोषण और अधिकारों का सवाल उठा। स्थिति की गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए न्यायालय ने इस बच्ची के लिये बलात्कार की शिकार लड़की को दस लाख रुपए देने का निर्देश उत्तर प्रदेश सरकार को दिया है। यह रकम किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा योजना के तहत रखी जायेगी जो इस बच्ची को 21 साल की होने पर मिलेगी।
न्यायालय ने इस बच्ची की परवरिश की दृष्टि से एक और महत्वपूर्ण निर्देश दिया है, जिसके तहत राज्य सरकार उसे स्नातक स्तर तक किसी छात्रावास में रहकर नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करेगी और फिर इसके बाद उसकी नौकरी की व्यवस्था करेगी। न्यायालय ने तमाम कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करने में पीडि़ता की मदद के लिये वरिष्ठ अधिवक्ताओं का एक दल भी नियुक्त किया है। बलात्कार की वजह से गर्भवती हुई पीडि़त से जन्म लेने वाली संतान के मामले में संभवत: यह पहली सुविचारित व्यवस्था है।
इससे पहले, पहली पत्नी के रहते हुए किसी अन्य महिला से रिश्तों की वजह से जन्म लेने वाली संतान के संपत्ति में अधिकार के मामले में हिन्दू विवाह कानून के प्रावधानों के तहत उच्चतम न्यायालय की कई व्यवस्थायें हैं। इस तरह के मामलों में देश की शीर्ष अदालत ने अपनी व्यवस्थाओं में स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति की नाजायज संतान को पिता की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में वैध वारिसों की तरह ही हिस्सा मिलेगा।
इसी तरह, लिव इन रिलेशन के नाम से चर्चित सहजीवन के रिश्तों पर मुहर लगाते समय उच्चतम न्यायालय ने ऐसे रिश्तों से जन्म लेने वाली संतानों के बारे में भी अपनी व्यवस्था दी है। न्यायालय ने ऐसे रिश्तों के लिये कुछ पैमाने निर्धारित करते हुए कहा है कि इन पर खरा उतरने वाले जोड़ों से जन्म लेने वाली संतानों को न सिर्फ ऐसे पुरुष की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा बल्कि ऐसे रिश्ते निभाने वाली महिला को उसके जीवन साथी के निधन पर भविष्य निधि और पेंशन सहित दूसरे कानूनी अधिकार भी मिल सकेंगे।
देखना यह है कि बलात्कार की वजह से मां बनने वाली पीडि़त की संतान को उसके जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार दिलाने संबंधी उच्च न्यायालय की व्यवस्था का मामला देश की शीर्ष अदालत में पहुंचता है या नहीं। फिलहाल तो उत्तर प्रदेश में इस तरह के किसी भी अमानवीय कृत्य की वजह से जन्म लेने वाली संतान के मामले में उच्च न्यायालय की यह व्यवस्था लंबे समय के लिये एक नजीर रहेगी।