अमेठी के लिए सपना बना फूड पार्क

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अमृतांशु मिश्र
लखनऊ। अमेठी से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का फूड पार्क बनाने का सपना अधूरा ही रह गया। दस साल तक केन्द्र की सत्ता पर काबिज रहने वाली पार्टी के सांसद राहुल गांधी ने करीब 200 करोड़ की लगात से बनने वाले इस फूड पार्क की नींव 2013 में रखी थी मगर उसके बाद वह भूल गये और जब सरकार चली गयी तो उनको इसकी याद आयी। अपने 56 दिनों के अज्ञातवास से लौटने के बाद राहुल गांधी ने इस पार्क की सुधि ली तो पता चला कि मोदी सरकार ने इसको निरस्त कर दिया है तो वह आग बबूला हो उठे। उनकी विरोधी स्मृति ईरानी ने कहा कि खुद राहुल की लापरवाही से यह पार्क नहीं बना और वही इसके लिए जिम्मेदार हैं। राहुल और स्मृति की इस जुबानी जंग की तपिश में अमेठी जल रहा है। मालूम हो कि साल भर पहले अमेठी के चुनावी मैदान में आमने सामने थे। अमेठी के युवराज राहुल गांधी और बीजेपी की ओर से स्मृति ईरानी। साल भर पहले स्मृति ईरानी राहुल गांधी से वो लोकसभा की चुनावी जंग हार गई थीं। उस हार की वजह से दोनों में तल्खी भी काफी बढ़ गयी है। फूड पार्क की असली कहानी जानने के बाद अब अमेठी की जनता राहुल से भी तरह तरह के सवाल पूछ रही है। पिछले दिनों दौरे के समय अमेठी में भले ही उन्होंने इस पार्क को निरस्त करने को लेकर मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया मगर जनता का कहना है कि अगर राहुल चाहते तो यह पहले ही बन जाता। बहरहाल अमेठी के लोग हाई प्रोफाइल सियासी जंग में पिस रहे हैं और उनकी समस्याओं का निस्तारण करने वाला कोई रहनुमा नजर नहीं आ रहा है।
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आखिर क्या है फूड पार्क
2013 में राहुल गांधी ने शक्तिमान मेगा फूड पार्क प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था। साल 2013 में इसी प्रोजेक्ट के शिलान्यास के वक्त राहुल ने 30 हजार किसानों की किस्मत बदलने का दावा किया था। शक्तिमान मेगा फूड पार्क के नाम से सबसे बड़े फूड प्रोसेसिंग प्रोजेक्ट में कच्चे कृषि उत्पादों को बाजार में बिकने वाले जैम, जेली, दलिया, चिप्स, पापड़ और ऐसे ही उपभोक्ता सामान में बदलना और बाजार तक पहुंचाने की योजना थी। योजना ये थी कि इस पार्क में 35 प्रोसेसिंग यूनिट यानी अलग अलग उत्पादों को बनाने के लिए 35 बड़ी फैक्ट्रियां लगेंगी जो करीब 50 एकड़ जमीन पर फैली होंगी। इसके अलावा करीब 22 एकड़ में गोदाम और परिवहन के लिए भी सुविधाएं विकसित की जाएंगी। इस योजना में आसपास के किसानों को कैश क्राप के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाना था जिससे उनको उनकी फसल के अच्छे दाम मिल सकें और रोजगार भी।