भाजपा में पिछड़ों, दलितों के नहीं आए अच्छे दिन

bjp-logoयोगेश श्रीवास्तव,
लखनऊ। पिछड़ों दलितों को मुख्यधारा में रखने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित केन्द्रीय नेतृत्व की मंशा भाजपा में धूल फांक रही है। केन्द्र में सत्तारूढ़ होने से पूर्व पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपनी कई चुनावी रैलियों में कहा था कि सरकार बनी तो देश में तो अच्छे दिन आएंगे ही पार्टी में वर्षो से उपेक्षित पिछड़े दलितों को उनकी योग्यता क्षमता के अनुसार अवसर दिए जाएंगे। देश की जनता तो अच्छे दिनों का इंतजार करते-करते थक गई। अब पार्टी के पिछड़े दलितों को भी लगने लगा है कि उन लोगों को जो आश्वासन मिला था वह भी चुनावी वादे की ही तरह निकला। प्रदेश में मुख्यमंत्री रहते राजनाथ सिंह द्वारा सामाजिक न्याय की शुरू की गई लड़ाई तो अंजाम तक पहुंची नहीं। पीएम नरेन्द्र मोदी की भी पार्टी में पिछड़ों दलितों को आगे लाने की मंशा भी दरकिनार हो गई है। प्रदेश में संगठन से लेकर विधानमंडल के दोनों सदनों में जिम्मेदार पदों पर ही अगड़ी जातियों का ही वर्चस्व है। संगठन में उन्हीं अपरकास्ट के लोगों का खास ध्यान रखा जाता है। इसके अलावा परिक्रमा करने के साथ ऊंचे ओहदों पर बैठे नेताओं को आवलाइज करने वालों को खासी तवज्जों मिलती है। जो इसमें पिछड़ जाते है फिर वो आगे की रेस से बाहर हो जाते है। जब पार्टी में एक तरफा अपरकास्ट मनी पावर वालों का वर्चस्व हो तब पिछड़े दलित नेताओं कार्यकर्ताओं के अग्रिम पंक्ति में आने की बात सोचना ही बेमानी है। इस वर्ग के प्रति आज भी पार्टी का नजरिया अछूतो से जैसा है। प्रदेश प्रभारी ओममाथुर, प्रदेशाध्यक्ष डा.लक्ष्मीकांत बाजपेयी, प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल, विधानसभा में नेता विधानमंडल सुरेश कुमार खन्ना, विधानपरिषद में नेता सदन हृदय नारायण दीक्षित, महिला मोर्चे की अध्यक्ष डा.मधु गुप्ता, काबिज है। ओबीसी के नाम पर बतौर मुखौटे के रूप में केवल युवा मोर्चे का प्रदेशाध्यक्ष आशुतोष राय को रखा गया है। अपरकास्ट के कई ऐसे है जो वर्षो से जमे है और पार्टी को कोई लाभ नहीं पहुंचा पाए। दिल्ली दरबार में खासा दखल रखने वाले कई ऐसे नेता भी है जिनकी क्षेत्र में कोई पहचान नहीं है लेकिन गणेश परिक्रमा और अपनी बाकी खूबियों अग्रिम पंक्ति में बने हुए है। ऐसा नहीं है कि ओमप्रकाश सिंह,कल्याण सिंह और विनयकटियार के बाद पार्टी में पिछड़े और दलित नेताओ का अभाव हो गया है। जो है उन्हे आगे आने नहीं दिया जाता है और जो आगे बढ़ गए उनकी टांग घसीटने वालों की कमी नहीं है। हालांकि सपा-बसपा के ओबीसी कार्ड के जवाब में भाजपा में भी इस बार संभावना है कि किसी ओबीसी या एससी को संगठन की बागडोर दी जाए। लेकिन इसकों लेकर पार्टी में ही दो राय है। देखना यह है कि प्रदेशाध्यक्ष सहित पार्टी के बाकी मोर्चो कहां तक और कितनी मोदी की मंशा पर अमल होता है। भाजपा में कल्याण, कटियार, ओमप्रकाश के बाद कोई प्रदेशाध्यक्ष ओबीसी से नहीं बना। पार्टी में ओबीसी के इन नेताओं के अलावा भी कई नाम थे लेकिन उन्हे मौका नहीं दिया गया। जो बीच में शमिल भी हुए उनसे इंतजार करने को कहा जाता है। पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल सहित कई अन्य दलों के प्रमुख पिछड़े और दलित भाजपा में शामिल हुए लेकिन उन्हे हाशिए पर रखा गया है।