यूपी में नीतीश फार्मूला अपनायेगी भाजपा

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उत्तर प्रदेश में विधान सभा का चुनावी समर 2017 में होगा। बिहार के बाद सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश उत्तर प्रदेश पर सभी दलों की निगाहे हैं। उत्तर प्रदेश में क्या होगा, पंचायत चुनाव के नतीजे बसपा के पक्ष में सकारात्मक रूप में दिखे। राजनीतिक विश्लेषक बसपा की बढ़त की बात कर रहें हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के माथे पर चिन्ता की लकीरे हैं और भाजपा व संघ के रणनीतिकार जनाधार में वृद्धि के मुद्दे पर काफी गम्भीरता से विचार मंथन में जुटे हैं।
भाजपा सूत्रों से ऐसी जानकारी मिल रही है कि बिहार की अप्रत्याशित हार से खबराई भाजपा यू0पी0 में नीतीश फार्मूूला की नकल करने पर विचार कर सकती है। नीतीश ने जो सामाजिक फार्मूला अपनाया उसके आगे अमित शाह का माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला फेल हो गया। इसका सबसे बड़ा कारण रहा कि भाजपा ने चेहरे के आधार पर नहीं बल्कि संगठन के आधार पर चुनाव लडऩे का निर्णय लिया, जिसके कारण पिछड़ा, अतिपिछड़ा तबका भाजपा से दूर हो महागठबंधन के साथ धु्रवीकृत हो गया। भाजपा ने बिहार के जातिगत आकड़ों का भी अध्ययन किया है। बिहार में पार्टी के लिए काम करने वाले मानते हैं कि अगर भाजपा ने नीतीश कुमार की नकल न की तो यू0पी0 में भी भाजपा की नैया डूब सकती है। जब बिहार की स्थिति पर नजर डालते है तो बिहार में 11.5 प्रतिशत यादव व 16.5 प्रतिशत सवर्ण हैं। वोट देने की दृष्टि से यादव 16.5 फीसदी सवर्णों से अच्छे माने जाते हैं क्योंकि यह समाज जमकर वोटिंग करता है। बिहार में 14.5 प्रतिशत मुसलमान हैं और 32 प्रतिशत से अधिक अतिपिछड़े व लगभग 16 प्रतिशत दलित/महादलित। मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का नाम घोषित
था, जो स्वयं कुर्मी जाति के हैं और इस कारण कुर्मी समाज में शतप्रतिशत नीतीश कुमार के पक्ष में मतदान किया। कुर्मियों की संख्या बिहार में 3.75 प्रतिशत है और लवकुश फार्मूला के कारण 4.25 कुशवाहा भी महागठबंधन के साथ ही बहुमत के साथ जुड़ा। बिहार में गड़ेरिया, कोयरी, निषाद आदि स्वयं को कुर्मी के अधिक निकट पाती हैं क्योंकि सवर्ण उनसे अपमान जनक व्यवहार करते है परन्तु उत्तर प्रदेश में अतिपिछड़ी जातियां यादव के साथ-साथ कुर्मी, जाट को भी सवर्णों से अधिक खतरनाक मानती है, क्योंकि इनके आरक्षण का अधिकांश हिस्सा ये ही राजनीतिक रूप से ताकतवर व असवर्ण पिछड़ी जातियां हड़प कर जा रही हैं।
साफ है कि उत्तर प्रदेश में भी जाति के आधार पर चुनाव होगा, तो भाजपा का पत्ता साफ ही होना है परन्तु बिहार जैसा वर्गीय धु्रवीकरण इस प्रदेश में बिल्कुल असंभव है, कारण कि सपा, बसपा कभी गठबंधन नहीं कर सकती। बिहार में भाजपा ने पिछड़ों की उपेक्षा की जिसका परिणाम उसे मिल चुका है। विदित हो कि बिहार में एक भी पिछड़ा जिलाध्यक्ष नहीं था। आरक्षण का लाभ उत्तर प्रदेश में यादव, जाट, कुर्मी, जाटव ही उठा रहेहैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अवगत कराया गया है कि यूपी में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का लाभ यादव, जाट व 21 फीसदी दलित आरक्षण का लाभ सिर्फ जाटव ही उठा रहें हैं। आरक्षण के लाभ से वंचित अतिपिछड़ों व अति दलितों को इस सच्चाई को बताकर सामाजिक न्याय समिति-2001 की आरक्षण नीति को समझाने की जरूरत है। राजनाथ सिंह ने अपने यू0पी0 के मुख्यमंत्रीत्व काल में जातियों का समूह बनाकर आरक्षण की व्यवस्था का प्रयास किया था।
जिसका विरोध सपा और बसपा दोनों ने किया था, जिसको सही ढंग से पिछड़ों व दलितों के मध्य प्रचारित करने में भाजपा असफल रहीं। भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री प्रकाश पाल से जब यह पूछा गया कि- भाजपा मिशन-2017 में कौन सा मुद्दा लेकर पिछड़ों के बीच जायेगी, तो उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी के पास अतिपिछड़ों व अति दलितों के हितों से जुड़ा सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट है और सपा व बसपा के कार्यकाल में अतिपिछड़ों व अति दलितों के आरक्षण की जो हक मारी हुयी है उस सच्चाई को प्रचारित किया जायेगा।
उत्तर प्रदेश के मिशन-2017 के लिए सभी दल अभी से तैयारियों में जुट गये है तथा गठबंधन की हवा गरम है। उत्तर प्रदेश चुनाव के संदर्भ में जब अतिपिछड़ों के सामाजिक न्याय व आरक्षण के मुद्दे पर लम्बे समय से संघर्ष करते आ रहें चै0 लौटन राम निषाद से पूछा गया कि क्या 17 अतिपिछड़ी जातियों का आरक्षण मुद्दा विधान सभा चुनाव-2017 में चुनावी मुद्दा बनेगा, तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह अत्यन्त संवेदनशील मुद्दा है और 2017 के चुनाव में काफी अहम भूमिका निभायेगा। उन्होंने कहा कि यदि सपा सरकार में 17 अतिपिछड़ी जातियों को 7.5 प्रतिशत आरक्षण कोटा शिक्षा, सेवायोजन में दे दिया तो सपा की पुनर्वापसी का कारण बनेगा, अन्यथा इन जातियों का बिदकना स्वाभाविक तौर पर दिखेगा। उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव 2007 व 2012 को देखा जाय तो लगभग 4 प्रतिशत मतों के हेर फेर से सपा बसपा की सरकारें बनती रहीं हैं। विधान सभा चुनाव-2007 में सपा को 25.75 प्रतिशत व बसपा को 29.65 प्रतिशत, 2014 में सपा को 29.13 प्रतिशत व बसपा को 25.91 प्रतिशत मत मिला था। लोक सभा चुनाव-2014 में सपा को 22.6, बसपा को 19.95 तथा भाजपा को 42.63 प्रतिशत मत मिला था। विधान सभा चुनाव 2007 व 2012 में सपा बसपा में सरकार का परिवर्तन लगभग 4 प्रतिशत मतों के बदलाव से हुआ, ऐसे में 17 अतिपिछड़ी व निषाद मछुआरा जातियों की संख्या का काफी महत्व है। ऐसे में 17 अतिपिछड़ी जातियों के 17 प्रतिशत मत को नकारा नहीं जा सकता। भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के लिए अपने नये अध्यक्ष की तलाश में जुटी है और बिहार में मार खाने के बाद उसे पिछड़े, अतिपिछड़े मत का महत्व मालूम पड़ गया है। ऐसे में पूरी सम्भावना है कि भाजपा किसी अतिपिछड़े चेहरे को प्रदेश में आगे कर मिशन-2017 के समर में उतरेगी। प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में अतिपिछड़े वर्ग के कई नेताओं का नाम चर्चा में है जिसमें पूर्व संगठन मंत्री प्रकाश पाल, केन्द्रीय राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, स्वतंत्र देव सिंह, केशव मौर्य, धर्म पाल सिंह लोधी का नाम दौड़में शामिल है। भाजपा सूत्रों से पता चला है कि पार्टी नेतृत्व व संघ उत्तर प्रदेश में निषाद, बिन्द, कश्यप, रायकवार समाज के वोट बैंक को देखते हुए साध्वी निरंजन ज्योति को बागडोर सौप सकती है। साध्वी के नाम पर भाजपा व संघ सहमत बताये जा रहें हैं। अन्य अतिपिछड़ों में संगठन का काम लम्बे समय तक देख चुके व अतिपिछड़ों में अच्छी पहचान रखने वाले प्रकाश पाल व कल्याण सिंह की लोधी बिरादरी से तालुक रखने वाले आवला के विधायक धर्म पाल सिंह लोधी का नाम भी गम्भीरता से चल रहा है। उत्तर प्रदेश में लोधी, किसान लगभग 4.5 प्रतिशत व निषाद जातियों की संख्या 10 प्रतिशत से अधिक व पाल बघेल गड़ेरिया, धनगर की आबादी 4.43 प्रतिशत हैं।
कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश चुनाव भाजपा के लिए मोदी-शाह की प्रतिष्ठिा से जुड़ा है, ऐसे में मोदी-शाह टीम अतिपिछड़े को ही आगे देने का मन बनाये हुए है। मुख्यमंत्री के रूप में सवर्ण समाज से गृह मंत्री राजनाथ सिंह से बेहतर कोई चेहरा नहीं है। यदि राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में आगे नहीं आये तो किसी अतिपिछड़े को भी आगे किया जायेगा। मुख्यमंत्री की दौड़ में वरूण गांधी, योगी आदित्य नाथ, लखनऊ के मेयर डॉ. दिनेश शर्मा का भी नाम चर्चा में है परन्तु वोटों के धु्रवीकरण की दृष्टि से ये नाम प्रभावी नहीं हैं।
सी लाल
वरिष्ठ पत्रकार/टिप्पणीकार