मीडिया समझे अपनी ज़िम्मेदारी

shalini sri

शालिनी श्रीवास्तव

समाज को नज़रिया देने और बदलने में मीडिया की बड़ी भूमिका होती है | सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का विचार आजकल मीडिया द्वारा प्रसारित किया जा रहा है | जबसे न्यू जर्नलिज्म का कॉन्सेप्ट आया है, तबसे मीडिया प्राइवेटाइजेशन और कार्पोरेटाइजेशन की दिशा में बहुत आगे बढ़ चूका है | ये हाल सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का नहीं है, बल्कि प्रिंट और वेब यानि डिजिटल मीडिया भी इससे अछूता नहीं है | समय के साथ-साथ खबरों की दिशा बदली है | साथ ही खबरों को प्रसारित करने की रणनीति भी बदली है | कुछेक मीडिया घरानों या  मीडिया प्रचारकों या संरक्षकों को छोड़ दें, तो बाकि सभी खबरों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने में आगे है | जिन  मीडिया इथिक्स की बात मीडिया संस्थानों में पढ़ाई जाती है, उनका असल मीडिया जगत में कोई वास्ता नहीं दिखता |अन्य संस्थानों के भ्रष्टाचार को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर दिखने वाले खुद अपने संस्थान में पनपे भष्टाचार की बात नहीं करते | अन्य कॉर्पोरेट संस्थानों की तरह मीडिया संस्थानों में भी रिश्वत ,शोषण, जातिवाद जैसी सामाजिक बुराई  है, लेकिन दुःख इस बात का है कि इसकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है | मीडिया के पास जो असीम शक्ति है, उसी शक्ति का आज मीडिया नाजायज़ उपयोग करती दिख रही है | हैरत की बात है कि आज बड़े से बड़े न्यूज़ चैनलों के पास समाचारों की इतनी कमी है कि वह मात्र दो-चार खबरों को पूरे दिन तोड़-मरोड़ कर ब्रेकिंग न्यूज़ के तौर पर प्रस्तुत कर रहे है और तो और न्यूज़ सलेक्शन में कोई रचनात्मकता या नयापन देखने को नहीं मिलता | सभी मीडिया चैनलों का एक मात्र झुकाव राजनीति की तरफ दिखने लगा है | इससे इतर या तो बेतुकी, बेबुनियाई बातों को चैनल की टी.आर.पी बढ़ाने को दिखाया जाता है या फिर सास-बहु सीरियल या रियलिटी शोज को न्यूज़ बनाकर दिखाया जाता है | अभी हाल ही में एक चैनल में ८०० साल पुरानी मोबाइल फ़ोन की ख़बर प्रसारित की गयी ,जिसका अगले ही दिन हिंदुस्तान अखबार के सम्पादकीय में खंडन किया गया | ऐसी ही तमाम खबरें बिना प्रमाणीकता जांच किये, इलेक्ट्रॉनिक चैनलों द्वारा आयेदिन दिखाया जाता है | ख़बरों को तूल देने में, तिल का ताड़ बनाने में ,खबरों को मशालेदार बनाने में आज मीडिया ने अपनी हदें पार कर ली  है | यहाँ तक की देश की सुरक्षा तक को भी मीडिया ने दाव पर लगा रखा है | देश के धार्मिक सौहाद्र को बिगड़ने में, राजनितिक लाभ पाने, अपने चैनल का टी.आर.पी. बढ़ाने एवं जनता के बीच असंतोष एवं भय का माहौल पैदा करने में मीडिया किसी से कम नहीं है |गंभीर बात यह है आजकल लोगों की निर्भरता टी.वी. पर पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ गयी है | लोगों का टी.वी.  देखने का प्रतिशत भी बढ़ता जा रहा है | लोग जहाँ पहले अड़ोसी-पडोसी या फिर घरेलू कामों में व्यस्त रहते थे, आज उनकी इन चीजों में व्यस्तता घटकर टी.वी. और इंटरनेट में ज्यादा बढ़ी गयी है | अगर ऐसे में कोई व्यक्ति दिन-भर में महज़ दो घंटे भी टी.वी. देखता है, तो महीनें में वह ६० घंटे टी.वी देखेगा | और इस ६० घंटे में मीडिया द्वारा  दिखाए गए तत्वों का असर ५० प्रतिशत अवश्य पड़ेगा, जो की काम नहीं है | यह सिर्फ एक न्यूनतम आँकड़ा है .लेकिन एक सर्वे की रिपोर्ट को माने, तो एक दिन में औसतन एक व्यक्ति तीन से चार घंटे टी.वी. देखता है | मतलब यह है कि मीडिया द्वारा प्रसारित चीजों का और भी गहरा असर हमारे मष्तिष्क पर पड़ता है | इससे न सिर्फ उस व्यक्ति के दृष्टिकोड में बदलाव होता है , बल्कि उसकी सकारात्मकता और नकारत्मकता भी तय होती है , देश, समाज और परिवार के प्रति  | अतः मीडिया को अपने दिखाए जा रहे चित्रों एवं शब्दों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए | क्यूकि इससे लोगों में अहम एवं महत्वपूर्ण बदलाव आता है | अगर नकारात्मक चीज़ो का प्रसारण यूँ ही जारी रहा, तो जाहिर है आगे, आने वाली पीढ़ी उसी तरह होगी |आज देश में नकारात्मकता,असंवेदनशीलता,असहनशीलता बढ़ रही है|  जीके लिए मीडिया भी ज़िम्मेदार है | क्या पूरे भारतवर्ष  में केवल नकारात्मक चीज़े ही रह गयी है प्रसारित करने को ? क्या पहले पृष्ठ की न्यूज़ को क्राइम के जरिये ही लीड दिया जा सकता है ? जिन चीज़ो को गायब और संरक्षण न देने का आरोप मीडिया सरकार पर मढ़ती  है, वह स्वं उन चीज़ों के प्रति खुद कितना संवेदनशील है | साहित्यिक कार्यक्रमों, छोटे स्तर पर विकास कार्यों, कृषि प्रयासों, वैज्ञानिक रुझानों की तरफ मीडिया का रवैया इतना सूखा क्यों है ? क्या हुआ उन पत्रकाओं को जो समाज सेवा के लिए इस क्षेत्र  में आये थे ? क्यों किसी गरीब, मज़बूर की कोई सुनवाई नहीं है ? और क्यों पैसे के बल पर किसी गलत ख़बर के लिए  फ्रंट पेज खाली है ? मीडियाकर्मी आज वह बिकाऊ क्यों है? जिस नैतिकता की बात आम जनता और नेताओं से होती है क्या किसी मीडियाकर्मी से नहीं किया जानी चाहिए? आज मीडिया में भाषा की अस्पष्टता से लेकर तमाम नैतिक बुराइयाँ  है | इसे कौन दूर करेगा ? दिनों-दिन इसके प्रसारण एवं भाषाई स्तर में गिरावट एवं समाचारों में खोखलापन इस बात को साबित करता है कि आने वाले दिनों में लोगों का विश्वास मीडिया से भी उठ जायेगा | समय रहते सबकुछ ठीक करना होगा | मीडिया को अपनी गरिमा और मर्यादा पुनः प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए |तभी पत्रकारिका की रक्षा हो सकेगी | और पत्रकारों को पुनः वही सम्मान हासिल हो सकेगा जो कुछ दसक पहले था | देश को सही दिशा देने की ज़िम्मेदारी मीडिया की भी  है | अगर आज देश में जातिवाद, हिंसा,आतंकवाद , अशिक्षा,कुशासन जैसी बीमारियाँ  है तो इसके लिए परोक्ष रूप से मीडिया ज़िम्मेदार है | अगर देश के विकास में  इसकी भागीदारी है तो देश की बुराई के लिए भी इसे ज़िम्मेदार समझना चाहिए | अतः मीडिया को अपने मूल्यों को बचाकर रखना चाहिए,ताकि वह  दूसरों की मूल्यों की रक्षा कर सकें और सामाजिक हितों की रक्षा करते हुए ,देश को आगे ले जा सके |

पूर्व रिसर्च एसोसिएट

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी  संस्थान, लखनऊ