तिरंगा सड़कों पर बिकता है…

shalini sri

शालिनी श्रीवास्तव,
दिल मेरा उसवक्त यारों बहुत दुखता है।
देश का तिरंगा जब सड़कों पर बिकता है।
बेमोल झंडे का मोल देते है यहाँ सभी ,
और नेताओं का झंडा बेमोल बिकता है।
अमीरी,गरीबी की खाई गहरी होती गई,
गली-गली में अब तो भ्रष्टाचार दिखता है।
आज़ादी के नाम पर यह क्या देखती हूँ,
असहिष्णुता पर कैसे हिन्दुस्तान चीखता है।
राष्ट्रीय पर्व को महज़ छुट्टी, मस्ती समझना,
युवा पीढ़ी की बदली कैसी मानसिकता है।
देश का झंडा उसवक्त खुद ही झुकता है,
गरीब और बेरोजग़ार जब दर-दर भटकता है।
फर्ज और कर्ज याद रखो देश चलाने वालों,
बड़ी कुर्बानियों के बाद ही गुलशन महकता ह।
बुज़ुर्गो का सम्मान,महिलाओं की कद्र नहीं
आते-जाते यह तमाशा किसको नहीं दिखता है।
आना होगा आगे, मिटाना होगा अत्याचार,
बढ़ता वही है आगे, जो ठोकरों से सीखता है।
झंडा सम्मान है इसे बिकने मत दो,खुद बना लो
क्यूकि देश के लिए दिल आज भी धड़कता है।