जातिगत समीकरण को मजबूत करने के मंथन में जुटीं भाजपा व बसपा

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पंकज शर्मा। उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव जनवरी-फरवरी 2017 में सम्भावित है। ऐसे में भाजपा, बसपा, सपा, कांग्रेस आदि सहित छोटे-छोटे राजनीतिक दल अपने-अपने समीकरण को दुरूस्त करने के प्रयास में जुट गये हैं। राजद व जदयू बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनाने के प्रयास में जुटे हैं। कांग्रेस के साथ-साथ बसपा के साथ गठबंधन बनाने की बात चल रही है। यदि ऐसा हो गया तो महागठबंधन बिहार की भांति परिणाम की पुनरावृत्ति कर सकता है। उत्तर प्रदेश में यह वर्ष चुनावी वर्ष है। ऐसे में प्रदेश की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ेगी। उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था व गैर यादव जातियों की नाराजगी का फायदा उठाने की फिराक में बसपा तेजी से जुटी हुयी है। दूसरी तरफ भाजपा व सपा बसपा के परम्परागत दलित वोट बैंक में सेंधमारी के काम में जुटी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 24 जनवरी को लखनऊ आगमन व अम्बेडकर महासभा स्थित डॉ0 भीमराव अम्बेडकर अस्थिकलश पर पुष्पांजलि अर्पित किया जाना इसी का अंश रहा। भाजपा दलित वोट बैंक को किस प्रतिशत में अपने पाले में कर पायेगी, यह भविष्य के गर्भ में है। गैर चमार/जाटव दलित जातियां भाजपा को सत्ता के करीब पहुॅचाने में कितनी योगदान करेंगी, अभी पता पाना सम्भव नहीं है।
उत्तर प्रदेश के सामाजिक समीकरण में सेन्सस 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या में 20.57 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जातियों तथा 0.57 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजातियों की है। अनुसूचित जाति की 20.57 प्रतिशत जनसंख्या में आधे से अधिक यानी 11.46 प्रतिशत जनसंख्या चमार/जाटव/झुसिया/धुसिया की है। गैर जाटव दलित जातियों की संख्या 9.11 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति की 20.53 प्रतिशत जनसंख्या में 15.91 प्रतिशत (3.27 प्रतिशत) दूसरी बड़ी दलित जाति तड़माली पासी की है। दलित वर्ग की कुल जनसंख्या में धोबी 6.51 प्रतिशत, कोरी-5.39 प्रतिशत, वाल्मीकि 2.96 प्रतिशत, खटिक-1.83 प्रतिशत, धानुक-1.57 प्रतिशत, कोल-1.11 प्रतिशत, गोड़-1.05 प्रतिशत तथा अन्य अनुसूचित जातियों की संख्या-5.78 प्रतिशत यानी कुल जनसंख्या की 1.60 प्रतिशत है। कुल जनसंख्या में पासी-3.27, धोबी-1.34, कोरी-1.11, वाल्मीकि-0.61 प्रतिशत, खटिक-0.38 प्रतिशत, कोल-0.23 व धानुक-0.32 प्रति
शत हैं। गैर जाटव अनुसूचित जातियों में वाल्मीकि, धोबी, खटिक, कोल, गोड़, खरवार, मुख्यतया भाजपा के साथ जाती रहीं है तथा पासी, धानुक, गोड़, कोरी आदि अलग-अलग दलों में बंटती रहीं हैं। अब देखना है कि क्या गैर जाटव दलित जातियां भाजपा को सत्ता में पहुॅचाने में कितनी सहयोगी साबित होती हैं।
बसपा अपने परम्परागत दलित वोट बैंक को समेटने के साथ-साथ अतिपिछड़ों व अल्पसंख्यक जातियों के साथ ही साथ सवर्ण वोट बैंक को भी साधने के प्रयास में लगी हुयी है। गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण कोटा व 17 अतिपिछड़ी जातियों को संविधान संशोधन कर व अनुसूचित जाति का कोटा बढ़ाकर अनुसूचित जाति में शामिल करने की बसपा सुप्रीमों मायावती की मांग इसी का हिस्सा है। वैसे वर्तमान सरकार से गैर यादव अतिपिछड़ी जातियां काफी असंतुष्ट व नाराज हैं, जिन्हें अपने पाले में करने के लिए भाजपा व बसपा दोनों तेजी से जुटे हुए हैं। भाजपा का सामाजिक न्याय मोर्चा गैर यादव पिछड़ी जातियों को भाजपा के साथ गोलबंद करने की कवायद कर रहा है।
आगामी विधान सभा चुनाव में भाजपा सामाजिक न्याय समिति-2001 की रिपोर्ट यानी राजनाथ सिंह की आरक्षण नीति को लागू करने की मांग को मुद्दा बनाकर अतिपिछड़ों को भाजपा के साथ जोडऩे के काम में जुटेगा। जब राजनाथ सिंह की सरकार में सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के आधार पर पिछड़ों को तीन श्रेणियों तथा दलितों को दो श्रेणियों में बांटने का निर्णय लिया तो सपा व बसपा दोनों ने विरोध किया था। 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का लॉलीपाप सपा द्वारा एक दशक से दिखाया जा रहा है परन्तु कोई परिणाम नहीं दिखने से अब ये जातियां सपा के खेल को समझ गयी हैं। आगामी विधान सभा चुनाव में ये सपा से कन्नी काट सकती हैं।
उत्तर प्रदेश के जातिगत सामाजिक समीकरण में अन्य पिछड़े वर्ग की 54.05 प्रतिशत आबादी में यादव/अहिर-19.40 प्रतिशत, कुर्मी-4.03 प्रतिशत, गूजर-0.92 प्रतिशत, जाट-1.94 प्रतिशत, लोधी-3.60 प्रतिशत हैं। उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में यादव-10.48 प्रतिशत, अतिपिछड़ी (लोधी, जाट, गूजर, अरख, सोनार, कलवार, गोसाई, कुर्मी)-10.22 प्रतिशत तथा अत्यन्त पिछड़ी जातियां-33.34 प्रतिशत हैं। अत्यन्त पिछड़ों की कुल जनसंख्या में 10.25 प्रतिशत संख्या-निषाद, मल्लाह, केवट, मांझी, कहार, धीवर, रायकवार, कश्यप आदि की है। उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या में कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, माली, सैनी, काछी, कोयरी-4.85 प्रतिशत, लोधी, किसान, खागी-3.60 प्रतिशत, पाल/बघेल-2.39, कुम्हार/प्रजापति-1.84, बढ़ई/विश्वकर्मा-1.28 , राजभर-1.32 प्रतिशत, चैहान-1.26, लोहार-0.98 प्रतिशत, भुर्जी/कानू-0.77 प्रतिशत हैं। सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार अन्य पिछड़े वर्ग में कुर्मी-7.46, लोधी/किसान-6.06, काछी/कुशवाहा/मौर्य/सैनी/शाक्य-8.35 प्रतिशत, कुम्हार-3.42, सविता/नाई-3.01, तेली/साहू-4.01, राजभर-2.44, बढ़ई-2.37, लोहार-1.81, चैहान-2.33, कन्डेरा-1.61 व भुर्जी/कान्दू-1.43 प्रतिशत हैं।
उत्तर प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनाव में अतिपिछड़ों व अत्यन्त पिछड़ों की ही अहम भूमिका रहेगी। असवर्ण अगड़ी या नव सवर्ण पिछड़ी जातियों से त्रस्त व उपेक्ष्ज्ञित अतिपिछड़ों के भाजपा के साथ जाने की ज्यादा सम्भावना है। उस तरह बसपा भी अतिपिछड़ों को अपने साथ जोडऩे के काम में जुटी है। टिकट वितरण में बसपा ने निषाद, काछी, लोधी, कुशवाहा, पाल, राजभर, चौहान, बिन्द, कश्यप, मौर्य, आदि को खासा स्थान दिया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार ऑवला के विधायक घर्म पाल सिंह लोधी को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने का निर्णय लिया जा चुका है, सिर्फ घोषणा ही होनी है। जिसकी घोषणा 24 जनवरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा के बाद की जायेगी। स्वतंत्र देव सिंह पिछले विधान सभा कालपी से भाजपा उम्मीदवार के रूप में अपनी जमानत भी नहीं बचा पाये तो तथा इनकी जाति के ओम प्रकाश सिंह व विनय कटियार को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा परिणाम को देख चुकी है। धर्म पाल सिंह का नाम आगे आने के बाद भाजपा में सवर्ण-असवर्ण के मुद्दे पर शह-मात का खेल शुरू हो गया है। भाजपा में एक जाति विशेष काफी गुस्से में है पर उनका गुस्सा जायज नहीं है। क्योंकि कोई पिछड़ा ही सपा व बसपा का सामना कर सकता है।
दिल्ली, बिहार विधान सभा में मात खाने के बाद भाजपा एक-एक कदम फॅूक्-फूॅक कर रख रही है। उत्तर प्रदेश का चुनाव उसके लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी के परिणाम पर लोक सभा चुनाव-2019 का आकलन किया जा सकता है। भाजपा को अच्छी तरह पता है कि बिना अतिपिछड़ों के भाजपा को मुख्य संघर्ष में शामिल नहीं किया जा सकता। राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह, केन्द्रीय मंत्री , उमा भारती या निरंजन ज्योति को मुख्यमंत्री के तौर पर भी पेशकर भाजपा पिछड़ा कार्ड खेल सकती है। वैसे पिछड़ों में कल्याण सिंह व सवर्णों में राजनाथ सिंह ही बेहतर विकल्प हो सकते हैं। ये दोनों नेताओं के व्यक्तित्व कृतित्व से पिछड़े दलित वर्ग के साथ सवर्ण समाज को धु्रवीकृत किया जा सकता है। भाजपा का सामाजिक न्याय मोर्चा लौटन राम निषाद को पार्टी में वापसी के काम में जुटा हुआ है। वैसे सपा में उपेक्षा झेल रहें निषाद का अगला कदम क्या होगा, वहीं बता सकते हैं।
वरूण गांधी, योगी आदित्यनाथ भी कवायद में जुटे हैं परन्तु इनके नाम पर निर्णायक वोट बैंक धु्रवीकृत नहीं हो सकता और डॉ0 दिनेश शर्मा तो लखनऊ के अलावा अन्य क्षेत्रों में अपरिचित चेहरा की भांति हैं। भाजपा में उत्तर प्रदेश के जिला अध्यक्षों के चुनाव में 23 पिछड़ों व 3 दलितों को अध्यक्ष बनाकर पिछड़ों को जोडऩे का काम किया है। एक आदिवासी सहित तीन पिछड़े भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष हैं। 16 वीं लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से भाजपा के 15 राजपूत, 16 ब्राह्मण, 5-5 लोधी, कुर्मी, जाट, 3-3 निषाद, कश्यप व मौर्य कुशवाहा, सैनी, 2-2 गूजर, तेली व 1 राजभर सांसद चुना गया। 17 दलित सांसदों में 6 पासी, 2-2 चमार/जाटव, धोबी, वाल्मीकि तथा एक-एक मल्लाह, खरवार, धोबी सांसद हैं। सामाजिक न्याय चिन्तक लौटन राम निषाद ने विधान सभा चुनाव 2017 के बारे में स्पष्ट तौर पर कहा कि अतिपिछड़े ही इस चुनाव में निर्णायक रहेंगे और अतिपिछड़ों का बहुमत जिस दल की ओर होगा, वहीं दल बड़े दल के रूप में उभरेगा। उत्तर प्रदेश की राजनीति में सत्ता परिवर्तन 3-4 प्रतिशत मतों के अन्तर से होता आ रहा है।, ऐसे में अत्यन्त पिछड़ी मल्लाह, केवट, निषाद, राजभर, चैहान, शाक्य, कुशवाहा, मौर्य, तेली, नाई, कुम्हार, बढ़ई, लोहार, लोधी, किसान आदि जातियों की मतहत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।

लेखक-सामाजिक/ राजनीतिक विश्लेषक