असमानता के लिए आरक्षण ज़िम्मेदार

shalini sriशालिनी श्रीवास्तव।
हमारे देश में तीन मुद्दे ऐसे है जिसपर सरकार तो सरकार आम आदमी की भी बहस कभी ख़त्म नहीं होती। सबसे पहले आता है मँहगाई दूसरे नम्बर पर है राजनीति और तीसरा है आरक्षण। आयेदिन हमारे देश में आरक्षण को लेकर कोई न कोई बखेड़ा खड़ा होता रहता है। ताज़ा मामला है जाट आरक्षण का। इसके पहले भी न जाने कितने ऐसे ही आरक्षण के मामले आते जाते रहे।
हमारे देश के शुभ चिंतको ने जिस सोच के मद्देनजऱ आरक्षण की वकालत की थी, अब न वो सोच रही, न ही वह माहौल। उन्होंने कभी न सोचा होगा की आरक्षण की वजह से दंगे फसाद होंगे, विधालयों ,कॉलेजों में पढ़ाई छोड़ नारेबाजी होगी, आरक्षण के लिए कोई नवजवान अपनी जान दे देगा और अंत में आरक्षण केवल राजनीति का हिस्सा बनकर रह जायेगा। आरक्षण के नाम पर जिन पिछड़े वर्ग को सहूलियत और आगे ले जाने की बात की जाती है आज उनका भी सच सबके सामने है। लाखों योजनाओ में लगा पैसा किस हद तक या कितना वंचितो तक पहुँचता है यह भी बताने की जरुरत नहीं है। आलम ये है कि जो वर्ग सच में वंचित और पिछड़ा है उनके हक़ में कुछ नहीं जाता है। आरक्षण का फायदा आमतौर पर उनलोगो को मिलता है जो सच में न तो वंचित है न ही उपेक्षित। अनुसूचित जातियों -जनजातियों ,पिछड़े वर्ग के लिए चलाये जा रहे सैकड़ों स्किल योजनाओ का सच यह है कि अब उनको भी लगने लगा है कि ये मात्र एक छलावा है। शायद इसी वजह से पैसा ,किताबे सब उपलब्ध करवाने के बावजूद ये लोग क्लास से नदारद पाये जाते है और नामांकन भी गिने चुने ही आते है। वह बात चाहे किसी कॉलेज में दाखिले की हो या फिर प्रधानमंत्री स्किल योजना की।
जिस आधार पर आजकल आरक्षण बाटा जा रहा है उससे यह साफ़ तय होता है कि राजनेता अपने निजी स्वार्थ के लिए लोगो को उनके जाति, धर्म-संप्रदाय,लिंग के आधार पर बाट रहे है। और उनके लिए आरक्षण की वकालत करके उनका मसीहा बनाने कि कोशिश में जुटे है। आजादी के पहले देश की समस्या यह थी कि हमारा देश विभिन्न रियायतों ,धर्म ,जातियों में बाटा था। हम एक नहीं थे, इसलिए गुलामी झेलनी पड़ी। आज़ादी के 68 साल बाद भी हम आरक्षण के आधार पर बटे हुए है। हमारा संविधान बताता है कि हम सब एकसमान है और यह हमे अनुच्छेद 14-18 के तहत समानता का अधिकार भी देता है। बावजूद इसके आज विभिन्न तरीको से अपना देश बटा हुआ है। एक ही देश में विभिन्न राज्यों में अलग अलग शिक्षा प्रणाली है। राज्यों के हिसाब से भाषाओँ के आधार पर भी हम बटे हुए है। धर्म के आलावा हम अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा वर्ग आरक्षण,स्कूल, कॉलेज, यहाँ तक कि नौकरी में भी आरक्षण, महिला,विधवा,पत्रकार और नेता- विधायकों और उच्च प्रसाशनिक अधिकारी वर्ग के लिए आरक्षण,गुर्जर आरक्षण,विकलांग आरक्षण,सैनिक आरक्षण,अब हाल ही में जाट आरक्षण ऐसी ही न जाने कितनी ही आरक्षित श्रेणियों में हम विभक्त हैं।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आरक्षण की वजह से पिछड़ी जातियों को आगे बढऩे का मौका मिला। समाज में उनकी भूमिका सक्रिय हुई। अब वे उपेक्षित न होकर देश के हर क्षेत्र में उच्चतम प्रदर्शन कर पाने में सक्षम एवं समर्थ हुवे हैं। लेकिन क्या अब वह समय नहीं आ गया है कि इनलोगो को भी बिना किसी आरक्षण के योग्यता साबित करने का मौका दे दिया जाये। आत्मसम्मान से अपना हक़ लेने के लिए इन्हें साधारण वर्गों से प्रतियोगिता करनी ही होगी। क्योंकी आरक्षण की व्यवस्था बहुत दिनों तक कायम नहीं रह सकती। इस व्यवस्था से जहाँ एक तरफ अल्पसंखयकों को बढ़ावा मिला है, वहीं दूसरी तरफ गुणवत्ता में गिरावट दर्ज हो रही है। जहाँ एक तरफ यह पिछड़े छात्रों को मदद मिली , वहीं दूसरी तरफ यह योग्य और प्रतिभावान छात्रों के प्रतिभा के हनन का कारण भी बन रही है। शिक्षा एवं नौकरी में पिछड़े छात्रों के लिए आरक्षण बाकि छात्रों के लिए भेदभाव का विषय हो चूका है जिससे नवजवान निराशा के घेरे में आते जा रहे है। बढ़ते भ्रष्टाचार ने आरक्षण को न पचने वाले भोजन की तरह बना दिया है। जहाँ कोई भी नकली प्रमाणपत्र के जरिय खुद को वंचित एवं पिछड़ा साबित कर सकता है और आरक्षण का लाभ उठा सकता है।
आरक्षण के रहते देश में समानता नहीं आ सकती ,यह तो तय है। या तो इसे पूर्णत: समाप्त कर दिया जाना चाहिए या फिर इसका आधार आर्धिक रूप से पिछड़ापन होना चाहिए न की धर्म ,जाति लिंग के आधार पर। आर्थिक रूप से पिछड़ापन देखने के लिए एक भ्रष्टाचार मुक्त संगठन की जरुरत भी होगी। अगर सरकार वास्तव में किसी विशेष वर्ग का कल्याण चाहती है तो उसे निशुल्क शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा का स्तर बढ़ेगा एवं सुधरेगा तो लोग धर्म, जाति से ऊपर उठकर सोचेंगे। संकीर्ण विचारधारा का नाश होगा। अगर लोग शिक्षित होंगे तो समाज में व्याप्त बुराइयाँ ,कुरीतियाँ अपने आप समाप्त होती जाएँगी।
देश के नवजवानों की दो प्रमुख समस्याएं है एक शिक्षा और दूसरी नौकरी। हमारी सरकार अगर शिक्षा और शिक्षित लोगो को उनके मुताबिक नौकरी व् काम देने पर विचार कर ले तो आरक्षण की कभी जरुरत ही न पड़े।

लेखिका: पूर्व रिसर्च एसोसिएट
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान,लखनऊ