भारतीय वन क्षेत्र में आकड़ों का खेल

forestकुलिंदर सिंह यादव। भारतीय वन सर्वेक्षण ने देश के वन क्षेत्रो का मापन पहली बार वर्ष 1987 में किया था। जिसके लिए उसने बस 1981-83 के दौरान संग्रहित उपग्रह डेटा का प्रयोग कियाहाल ही में जारी उसकी दिवार्षिक रिपोर्ट से पता चलता ह। पिछले तीन दशक में भारत के क्षेत्र में 60854 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। जबकि सघन वन श्रेणी के अंतर्गत 43907 वर्ग किलोमीटर के वृद्धि दर्ज की गई पिछले 2 वर्षों में जहां समग्र वन क्षेत्र में 3775 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है वही हमारे सघन वन क्षेत्र में मात्र 654 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। इन आंकड़ों की ओर ध्यान दिलाकर सरकार यह दावा कर रही है कि भारत के वन क्षेत्र में कुल मिलाकर स्थिरता की स्थिति है। दरअसल तेजी से बढ़ती आबादी की कृषिगत और औद्योगिक और आधारभूत आवश्यकताओं के लिए वन भूमि पर पड़ते भारी दबाव पर विचार करें तो वन क्षेत्र की वर्तमान स्थिति एक उल्लेखनीय उपलब्धि है किंतु हम इस उपलब्धि का जश्न मनाएं इससे पहले इन आंकड़ों पर फिर से एक बार नजर डालना समाचीन होगा भारतीय वन सर्वेक्षण हरित क्षेत्र की पहचान के लिए उपग्रह चित्रों का उपयोग करता है और वह प्राकृतिक बनो वृक्षारोपण जूलीफ्लोरा लैंटाना जैसी झाडिय़ां और नारियल कॉफी गन्ना जैसे वाणिज्यिक फसलों में कोई अंतर नहीं करता 1980 के दशक में उपग्रह चित्रण से वनों का मापन 1:1 मिलियन स्केल पर किया गया था और उसमे 4 वर्ग किलोमीटर से छोटी भूमि इकाइयों का ब्यौरा नहीं था अब परिष्कृत 1.50000 स्केल 1 हेक्टेयर के छोटे खंड को भी स्कैन कर लेता है और कोई भी ऐसी इकाई जो 10त्न तक का हरित क्षेत्र घनत्व दिखाती हो उसे वन क्षेत्र में गिना जाता है इस प्रकार भूमि के ऐसे लाखो टुकड़े जो पहले नजरअंदाज किए गए थे अब भारत के आधिकारिक वन क्षेत्र की वृद्धि में योगदान कर रहे हैं गणना के इस तरीके के रोचक परिणाम सामने आ रहे हैं अगर हम दिल्ली का उदाहरण ले तो पहली रिपोर्ट में राजधानी में मात्र 15 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र दर्ज किया गया था जबकि हाल की रिपोर्ट में इसे 189 वर्ग किलोमीटर बताया गया है इसका अर्थ यह है कि नई रिपोर्ट में 3 दशकों में इसमें 12 गुना वृद्धि हुई है इसमें से लगभग एक तिहाई को सघन वन श्रेणी गिन7 गया है इसी प्रकार सघन कृषि क्षेत्र पंजाब और हरियाणा दोनों के वन क्षेत्र में 1980 के दशक के बाद से अभी तक प्रत्येक में 1000 वर्ग किलोमीटर की बृद्धि दिखाई गई है अपेक्षाकृत सूखा चित्र राजस्थान के वन क्षेत्र में भी 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है तमिलनाडु के वन क्षेत्र का तीसरा हिस्सा निजी भूमि पर है और राज्य के सघन वन का पांचवां हिस्सा भी निजी भूमि पर दर्शाया गया है भले ही तेजी से फैलती झाडिय़ों वाणिज्यिक वृक्षारोपण को बन के रूप में जोड़ लिया गया है किंतु तथ्य यह है की भारत अपने महत्वपूर्ण सघन बन क्षेत्र खोता जा रहा है सबसे बुरी स्थिति यह है कि यह नहीं दिखाया गया है कि सघन वन में वास्तविक कमी कितनी आई है एक सघन वन में गिरावट होते होते वह खुला वन बन सकता है अथवा पूरी तरह नष्ट होकर गैर वन क्षेत्र में परिवर्तित हो सकता है दूसरी तरफ खुले वन के घनत्व में सुधार आ सकता है और गैर वन क्षेत्र खुले वन में और लंबे समय के बाद सघन वन में परिवर्तित हो सकता है वर्ष 2003 से भारत के सघन वन का 9513 वर्ग किलोमीटर से नष्ट होकर गैर वन क्षेत्र में परिवर्तित हो चुका है वन रिपोर्ट में इस कमी को गैर वनक्षेत्र के सघन वन क्षेत्र में परिवर्तित होने से प्रति संतुलित होते हुए दिखाया गया है वर्ष 2003 से4809 वर्ग किलोमीटर गैर वनक्षेत्र सघन वन क्षेत्र में परिवर्तित हुआ है सिर्फ पिछले 2 वर्षों में ही 1135 वर्ग किलोमीटर को सर्वोत्कृष्ट वन वर्ग में शामिल किया गया है जबकि वास्तविकता यह है कि यह सभी तेजी से हो रहे वृक्षारोपण हैं जो आरंभिक चरण में उपकरण द्वारा स्कैन किए जाने से छूट गए थे लेकिन जब अब दिखने लगे हैं तो इन्हें सघन वन समझा जा रहा है मिश्रित देसी प्रजातियों का रोपड़ संभवता नए वनो के सिरजन में सबसे अच्छा साधन हो सकता है लेकिन वह भी लंबी समयावधि में विकसित हुए प्राकृतिक वन क्षेत्रो में आ रही कमी को भरपाई नहीं कर सकते कम से कम निकट भविष्य में तो ऐसा होना संभव नहीं है बीते 3 दशकों से हमारा सकल सघन वन क्षेत्र दस्तावेजों में अपरिवर्तित दिखाई दे रहा है बन रिपोर्ट में या नहीं दर्शाया गया है कि 2005 तक वास्तविक रुप से हमने कितना वन क्षेत्र खो दिया है और इसमें से कितनी भरपाई हमने वृक्षारोपण से की किंतु पिछले एक दशक का आंकड़ा यह दर्शाता है कि हमने प्रतिवर्ष 1000 वर्ग किलोमीटर सघन वन की हानि की और वृक्षारोपण द्वारा इसमें से आधे की ही पूर्ति की अब यह नजरिए की बात है कि कोई आंकड़े के आधार पर सोचे की हमने कम ही खोया है या किसी को लगे कि वास्तविक नुकसान बहुत अधिक है किंतु आंकड़े में प्रकट वृद्धि या कमी तक सीमित रहने के बजाय महत्वपूर्ण है कि वन क्षेत्र की स्थिति पर गंभीरता से विचार हो।