मुजफ्फरनगर दंगों में,प्रदेश सरकार की प्रशासनिक नाकामी और विफलता को उजागर

लखनऊ मार्च। उप्र के मुजफ्फरनगर में सितंबर 2013 में हुए दंगों की एक सदस्यीय न्यायीक जांच आयोग की रिपोर्ट में प्रदेश सरकार की प्रशासनिक नाकामी और विफलता को उजागर कर दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति विष्णु सहाय की रिपोर्ट में 14 बिन्दुओं में कहा गया है कि तनाव के दौरान अधिकारियों के तबादले, संदिग्धों को छोड़ा जाना और नेताओं के द्वारा लगातार माहौल खराब करना दंगें का कारण था। इन दंगों में 64 लोगों की मौत हुई थी, और 50 हजार से अधिक लोग बेघर हो गए थे।
दंगों के कारण उप्र का सियासी माहौल पूरी तरह बदल गया। दंगों के बाद पुर्नवास, मुआवजा आदि पर प्रदेश सरकार को 100 करोड़ से अधिक खर्च करना पड़ा था। राहत शिविरों में ठंड से बच्चों की मौतें हुई, तथा 45 निकाह भी हुए। सरकार ने पीडि़त परिवारों को 5-5 लाख की आर्थिक सहायता दी थी।
रविवार को उप्र विधानसभा में पेश विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट पर राज्य सरकार की एक्शन टेकेन रिपोर्ट पेश की गई है। विष्णु सहाय न्यायिक जांच आयोग की सात सौ पेज की रिपोर्ट को छह खंडों में बांटा गया है। रिपोर्ट में कुल 14 कारण बताए गए है। जिनमें बताया गया है कि सरकार व प्रशासन के फैसलों से जनता के बीच दो समुदायों में भेदभाव करने का संदेश गया। आयोग ने कहा कि मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में 27 अगस्त को शाहनवाज की दो लडक़ों ने पीट कर हत्या कर दी क्योंकि वह उनकी बहन को छेड़ता था। इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने दोनों भाइयों को पीट-पीट कर मार डाला। आयोग ने कहा है कि 27 अगस्त की रात में डीएम सुरेंद्र सिंह व एसपी मंजिल सैनी को हटा दिया गया। इससे संदेश गया कि सचिन व गौरव की हत्या के संबन्ध में, इन अधिकारियों के आदेशों पर ही उन 8 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया जो तत्संबन्धी एफआईआर में नामजद नही थे। अधिकारियों के स्थानांतरण से हिन्दू समाज में सरकार के खिलाफ आक्रोश बढ़ गया, जो दंगों का मुख्य कारण बना। हालांकि आयोग ने बताया है कि क्षेत्राधिकारी जगतराम जोशी के कहने पर इंस्पेक्टर इंचार्ज थाना जानसठ को हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को छोडऩे का निर्देश दिया था। लेकिन यह सवाल अनुत्तरित है कि क्षेत्राधिकारी ने किसके कहने पर छोडऩे के निर्देश दिये।
न्यायिक आयोग ने कहा है कि सचिन गौरव की हत्या में हिरासत में लिए गए 8 व्यक्तियों को नही बल्कि 14 व्यक्तियों को छोड़ा गया जो एफआईआर में नामजद नही थे। इनके खिलाफ संदेह नही था, लेकिन इन व्यक्तियों को छोड़ दिये जाने से संदेश गया कि सरकार मुस्लिमों की पक्षधर है तथा उनके प्रभाव में काम हो रहा है। आयोग का कहना है कि शाहनवाज की हत्या में सचिन व गौरव के परिवार के सदस्यों का नाम डाला जाना। इसके साथ ही नये डीएम व एसपी द्वारा सचिन व गौरव की हत्याओं में हिरासत में लिए गए उन 8 व्यक्तियों को जिन्हे छोड़ दिया गया था गिरफ्तार करने व शाहनवाज की हत्या में दर्ज गलत नामजदगी से इंकार किया जाना। आयोग ने प्रिंट व सोशल मीडिया, भडक़ाऊ भाषणों, खुफिय जानकारी की विपफता को भी दंगों का कारण माना है। आयोग की रिपोर्ट पर कार्यवाही की जानकारी देते हुए उप्र मुख्यमंत्री ने बताया है कि तत्कालीन एसएसपी मुजफ्फरनगर सुभाषचंद्र दूबे, इंस्पेक्टर एलआईयू प्रबल प्रताप सिंह के खिलाफ विभागीय कार्रवाई और तत्कालीन डीएम कौशल राज शर्मा से स्पष्टीरण के बाद निर्णय लिया जाएगा।
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