अ से अमर और आ से आजम

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अरविंद त्रिपाठी।
अ और आ में कोई खास अंतर नहीं। दोनों में सिर्फ एक मात्रा का भेद है। देखने में मामूली लगने वाला यह अंतर राजनीतिक कारोबार के क्षेत्र में भारी, निर्णायक और तकदीर को बनान-बिगाडऩे वाला है। पीछे एक छोटी सी मात्रा न होने के कारण अ, अ, ही रहकर अ से अमर और अदना आदि बन जाता है जबकि जब कि अपने पीछे उसी मात्रा के जुड़ जाने से अ, आ बनकर आजम और आला आदि हो जाता है। देखने में यह एक छोटी सी मात्रा बिहारी के सतसईया के दोहरे की तरह गम्भीर घाव करती है। गम्भीर प्रभाव छोड़ती है। एक अदद यह मात्र हैसियत में भारी अंतर ला देती है। किताबों में इस मात्रा का सम्बंध व्यंजनों (व्याकरण) से है जबकि राजनीति की किताब में इस मात्रा का आशय जनसंख्यात्मक मात्रा (समर्थन) से है। अ के साथ जुड़कर यह मात्रा (मुस्लिम मतदाताओं की संख्या) एक को आजम खान और आलाकमान आदि तक बना देती है जबकि उसी मात्रा (जनसमर्थन) से विहिन होने के कारण अमर सिंह, अकेले और अदना से हो गये हैं।
सपा मुखिया इससे पूरी तरह सहमत नहीं हैं। वह जानते हैं कि अ से अफलातून भी होता है। उनके जेहन में अमर सिंह केवल अकेला, अदना ही नहीं बल्कि अफलातून भी हैं।
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव अमर और आजम नामों में शब्दों की समानता का गहन विश्लेषण कर चुके हैं। दोनों नामों में शब्दों की समानता और असमानता को वह सुडोकू के दिमागी खेल की तरह सुलझाकर हकीकत जान चुके हैं। अपने इस गहन विश्लेषण में उन्होने पाया है कि
अमर नाम में अ, म, र जैसे तीन शब्दों की तरह ही आजम नाम में भी अ, ा, ज, और म जैसे साढ़े तीन शब्द ही हैं। दोनों नामों में अ और म कॉमन हैं। जो शब्द शेष बचते हैं वह हैं- र, ा और ज। बचने वाले इन शब्दों को मिलाने से जो अल्फाज तैयार होता है वह है राज यानि रहस्य। आजम और अमर के बीच रस्साकशी में भला सपा मुखिया को फंसने की क्या जरूरत? लेकिन दोनों के नामों में असमानता वाले शब्दों से मिलकर बनने वाला शब्द राज ही सपा सुप्रीमों के उलझाव का कारण है। यह रहस्य दोनों के बीच मात्रा (जनसंख्यात्मक मात्रा) से सम्बंधित है। नेता जी ‘अ’ और ‘आ’ के इसी रहस्य को सुलझाने में लगे हैं।
आजम खान उत्तर प्रदेश की राजनीति के माहिर खिलाड़ी कहे जाते हैं, जो वह हैं भी। ऊर्जा और पोटाश (दमखम) के बिना कोई खिलाड़ी नहीं बन सकता है। आजम खान को मुस्लिम समाज के समर्थन ने ऊर्जावान के अलावा मनसरहंग खिलाड़ी बना दिया है। अपने इसी दमखम के बल पर वह समाजवादी पार्टी के दो कद्दावर नेताओं (बेनी प्रसाद वर्मा और अमर सिंह) को पार्टी से किनारे करवाने के बाद अनेकों अवसरों पर सपा के शीर्ष नेतृत्व तक को झुकने के लिए विवश कर चुके हैं। यह उनकी हैसियत का ही जलवा है कि सपा सुप्रीमों की चौखट पर जाकर बार-बार स्वयं को मुलायमवादी कहते हुए थक जाने के बाद भी अमर सिंह, सपा के भव्य-भवन में प्रवेश कर पाने से वंचित होते जा रहे हैं। अभी हाल में ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी में भी मंच साझा करने की जगह नीचे रोजेदारों के साथ बैठकर आजम खान ने वहां अमर सिंह की उपस्थिति पर अपनी नाराजगी से मुलायम सिंह को अवगत करा दिया है।
मुलायम की सबसे बड़ी समस्या आजम और अमर में से किसी एक को चुनने की है। सपा सुप्रीमों आजम के वोट बैंक की हैसियत को जानते हैं लेकिन वह देश से लेकर विदेशों तक अमर सिंह के उपयोगी अफ्लातूनी व्यक्तित्व के लाभ से भी वंचित नहीं होना चाहते। लेकिन करें तो क्या करें फिलहाल अभी समस्या बड़ी है।