व्यक्ति पूजा से नहीं चलता लोकतंत्र

s.nihal singhएस. निहाल सिंह।
भारतीय जनता पार्टी की हाल ही में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला प्रसंग यह देखने में आया कि इसमें नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत पूजा-उपासना को बढ़ावा दिया गया है। अखबारों के पाठक यह पढ़कर मुग्ध हो रहे थे कि कैसे मैडम तुसाड के विश्वविख्यात मोम-पुतला संग्रहालय में रखे जाने वाले अपने बुत के लिए मोदी बड़ी नम्रतापूर्वक अपना नाप दे रहे थे। गौरतलब है कि इस अजायबघर में संसार भर की सबसे प्रसिद्ध हस्तियों के मोम से बने पुतले रखे जाते हैं। इस सम्मान के लिए मोदी के सहयोगी वेंकैया नायडू ने उनके कसीदे पढ़ते हुए कहा कि मोदी भारत के लिए ईश्वर प्रदत्त उपहार हैं! इस तरह की ईश्वरीय अनुकंपाÓ का गुणगान इससे पहले मार्च के पहले हफ्ते में भाजपा शासित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भाजयुमो के एक समारोह में किया था, लेकिन इसे सामान्य महिमामंडन कहकर रफादफा कर दिया गया था।
इस तरह की व्यक्ति पूजा में कालांतर के उस प्रसंग की झलक मिलती है जिसमें तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरूआ ने उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शान में अपना कुख्यात नारा दिया था : इंदिरा इज इंडियाज्इंडिया! अब मोदी की यह हालिया स्तुति महिमामंडन के उस स्तर की याद भी दिलवाती है जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग के गुजरात दौरे के दौरान चीनी मीडिया ने उनके विलक्षण गुणों का बखान कर शान में कसीदे पढ़े थे।
भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का ताना-बाना काफी सावधानी से बुना गया था। इससे पहले जहां इस तरह के आयोजनों में प्रधानमंत्री विकास पर जोर देने का बखान बढ़ चढ़कर किया करते थे वहीं इस सम्मेलन में वे राजनीतिक प्रस्ताव के नाम पर नव-राष्ट्रवाद के नए अवतार का बिगुल बजाते दिखे और जारी किए गए मुख्यपत्र की जानकारी मीडिया को देने का काम राजनाथ सिंह और अरुण जेटली के जिम्मे लगाया गया था।
इसके अलावा मोदी भी अपनी छवि चमकाने में जुटे हुए हैं। हाल ही में संपन्न हुए विश्व सूफी सम्मेलन में उन्होंने सहिष्णुता पर काफी विस्तार से जोर दिया था, हालांकि आमतौर पर वे अल्पसंख्यकों के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर कुछ भी टिप्पणी करने से कतराते हैं। जो कोई भी व्यक्ति हिंदुत्ववादी गुटों द्वारा खींची गई लकीर का अतिक्रमण करता है, वह उनका कोपभाजन बन जाता है। जो भी खूबियां मोदी ने सूफीवाद की गिनाई हैं, ऐसा लगता है उन पर उन्हीं के चेलों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
इसी तरह बाबा साहेब अंबेडकर समारोह में मोदी ने कहा था कि दलितों को दिया जाने वाला आरक्षण जारी रहेगा। (यह काम उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक की विचारधारा के विरुद्ध जाकर किया है)। भले ही यह बात भाजपा के अन्य लोगों पर छोड़ दी गई है कि कैसे वे राजनीतिक खेल के नए नियम-कानून की व्याख्या करें और जिसमें ‘रÓ से राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाया जाता है और इसके इम्तिहान के तौर पर भारत माता की जयÓ का नारा लगवाना है। जब ऐसा करने से अखिल भारतीय मुस्लिम-ए-इतिहाद-उल-मुसलमीन के नेता असादुद्दीन ओवैसी और महाराष्ट्र विधानसभा में उनकी पार्टी के सदस्य वारिस पठान ने मना कर दिया तो पठान को सदन से निलंबित कर दिया गया।
हिंदुत्व के हितों को बढ़ावा देने के फेर में जो भी विवाद खड़े हो रहे हैं, उनसे मोदी खुद को कब तक अलहदा बता सकते हैं, यह देखना अभी बाकी है। उनकी पार्टी ने नव-राष्ट्रवाद की जो परिभाषा इन दिनों चला रखी है और जिसे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दोहराया गया है, वह मोदी की उस आकांक्षा के विपरीत है, जिसमें वे खुद को देश का निर्विवाद नेता दर्शाना चाहते हैं। दरअसल भारत जैसे विविधता भरे देश का प्रधानमंत्री, जिसमें केवल मुस्लिम ही कुल आबादी का 14 प्रतिशत हैं, वह संकीर्ण हिंदुत्ववादी एजेंडे को अपनाकर देशवासियों का दिल और मन कैसे जीत सकता है।
भले ही भाजपा समर्थक खुद को झूठी तसल्ली देते हों कि भारत माता की जयÓ के नारे के मामले पर कांग्रेस को उन्होंने फंसा लिया है और इस सिलसिले में बेशक उन्होंने बड़े उत्साह से महाराष्ट्र विधानसभा में वारिस पठान को निलंबित भी करवा लिया है, फिर भी उन्हें अपनी इस उद्घोषणा से इसलिए पीछे हटना पड़ा क्योंकि वे भी मानते हैं कि सिर्फ एक नारा लगाने से मना करना किसी के राष्ट्रवाद की कसौटी नहीं हो सकता।लेकिन भाजपा की एक अन्य समस्या यह है कि आरएसएस और अन्य संघ परिवार की शह पर यह पार्टी उदारवादी रास्ते से हटने को मजबूर है। इसका हालिया उदाहरण यह है कि उर्दू के लेखकों को निर्देश दिए गए हैं कि उन्हें यह वादा करना होगा कि वे सरकार के खिलाफ नहीं लिखेंगे। इसे मनवाने के लिए अपरोक्ष दंड यह बनाया गया है कि अन्यथा केंद्र सरकार से अनुदान प्राप्त करने वाले संस्थान उनकी पुस्तकें नहीं खरीदेंगे।भारत एक लोकतांत्रिक देश है। इसका जीवंत उदाहरण यह है कि अपने विकास वाले एजेंडे से समझौता करते हुए मोदी को आरक्षण नीति जारी रखने का भरोसा देना पड़ा परंतु प्रधानमंत्री यह अच्छी तरह जानते हैं कि यदि भाजपा ने आरक्षण जारी रखने के खिलाफ कोई मंशा जाहिर की तो यह आगामी चुनावों में आत्मघाती सिद्ध होगा।
इस बीच राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बहस तूल पकड़ती जा रही है, क्योंकि युवा खासकर विश्वविद्यालयों के छात्र इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। यह आदेश जारी किए जाने के बाद कि केंद्र सरकार से मदद प्राप्त सभी शिक्षा संस्थानों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा, मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को आरएसएस ने आगे यह शह दी है कि वे छात्रों को संकीर्ण राष्ट्रवाद के सांचे में ढालने का काम सिरे चढ़ाएं।
इससे पहले दुनिया को यह यकीन था कि सालों तक चले ढीले-ढाले कांग्रेसी राज के बाद सत्ता में आए मोदी ठोस निर्णय वाले नेता हैं लेकिन उसे यह साफ नहीं है कि हिंदुत्व की जो गठरी उन पर लाद दी गई है, उसकी वजह से अपने ध्येय को पाने के लिए उन्हें कितने समझौते करने पड़ेंगे। दुनिया भर में किए गए मोदी के ताबड़तोड़ विदेशी दौरों से यह साफ हो जाता है कि अब उन्होंने आशातीत सफलता पा ली है। भारत को आगे ले जाने के अपने सपनों से मोदी ने आप्रवासी भारतीयों के बीच काफी इज्जत अर्जित की है, परंतु उनकी पार्टी द्वारा देश को धर्म के आधार पर बांटने वाले प्रयास भी उसी दुनिया के जेहन में काफी ताजा हैं।