मीरजापुर । हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर विंध्य क्षेत्र में ही आदि शक्ति विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रैलोक्य न्यारी शिवधाम काशी में प्रवेश करती है । हजारों मील लम्बे विंध्य पर्वत एवं गंगा नदी मिलन माता के धाम विंध्याचल में ही होता है । आगे जाकर गंगा उत्तर वाहिनी जाती
है जबकि विंध्य पर्वत दक्षिण दिशा की ओर मुड जाता है । त्रिकोण पथ पर केंद्र में स्थापित सदाशिव के तीनों कोण में विराजमान माता लक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती अपने भक्तों को दर्शन उनकी समस्त मनोकामना पूरी कर रही है । मीरजापुर में पूर्व वाहिनी गंगा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का दर्शन व त्रिकोण करने से भक्तो की सारी मनोकामनायें पूरी होती है । संगम स्थल पर आदिशक्ति अपने तीनो स्वरूप महाकाली , महालक्ष्मी व महासरस्वती के रूप में विराजमान होकर भक्तो की सारी मनोकामनाए पूर्ण कर रही है द्य विंध्य क्षेत्र की महिमा अपरम्पार है । आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने भक्तो को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती है । रक्तासुर का वध करने के बाद माता काली एवं कंस के हाँथ से छूटकर महामाया अष्टभुजा सरस्वती के रूप में त्रिकोण पथ पर विंध्याचल विराजमान है द्य अनादिकाल से सिद्धपीठ विन्ध्याचल धाम ऋषि मुनियों की तप स्थली रहा है । माता के धाम में त्रिकोण पथ पर संत देवरहा बाबा, नीम करौरी बाबा, गीता स्वामी , माता आनंदमयी, बाबा नरसिंह, अवधूत भगवान राम , पगला बाबा , बंगाली माता आदि अनेक सिद्ध साधकों की तपस्थली है । इनके आश्रम में आज भी भक्तों का ताँता लगा रहता है । तीन रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तो को सब कुछ मिल जाता है जो उसकी कामना होती है द्य भक्त नंगे पांव व लेट -लेटकर दंडवत करते हुए चौदह किलोमीटर की परिक्रमा कर धाम में हाजिरी लगाते है। जगत जननी माता विंध्यवासिनी अपने भक्तो का कष्ट हरण करने के लिए विन्ध्य पर्वतके ऐशान्य कोण में लक्ष्मी के रूप में विराजमान है द्य दक्षिण में माता काली व पश्चिम दिशा में ज्ञान की देवी सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान है। जब भक्त करुणामयी माता विंध्यवासिनी का दर्शन करके निकलते है तो मंदिर से कुछ दूर काली खोह में विराजमान माता काली का दर्शन मिलता है द्य माता के दरबार में उनके दूत लंगूर व जंगल में विचरने वाले पशु पक्षियों का पहरा रहता है। माता काली का मुख आकाश की ओर खुला हुआ है द्य माता के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन रक्तासुर संग्राम के दौरान देवताओं को मिला था द्य माता उसी रूप में आज भी अपने भक्तो को दर्शन देकर अभय प्रदान करती है द्य माता के दर्शन पाकर अपने आप को धन्य मानते है द्य मंदिर से निकलकर विन्ध्य पर्वत की उचाई चढने के लिए भक्त सीढियों के रास्ते आगे बढ़ते है द्य पर्वत पर निवास करने वाली माता अष्टभुजा ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में भक्तो को दर्शन देती है द्य माता का भव्य श्रृंगार उनके रूप को ओर मनोहारी बना देता है द्य माता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुचे भक्त माला -फूल , नारियल व चुनरी के साथ ही प्रसाद अर्पण कर मत्था टेकते है। शक्ति पीठ विन्ध्याचल धाम में नवरात्र के दौरान माता के दर पर हाजिरी लगाने वालो की तादात प्रतिदिन लाखो में पहुच जाती है द्य औसनस पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया हैद्य विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है द्य भक्तो पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुचने वाले भक्तो के सारे कष्ट मिट जाते है द्य त्रिकोण पथ पर निकले भक्तो को माता के दरबार में आदिशक्ति के तीनो रूपों का दर्शन एक ही परिक्रमा में मिल जाता है द्य त्रिकोण परिक्रमा के आखिरी पड़ाव में बटुक भैरव का दर्शन कर भक्त तृप्त हो जाते हैं । विद्वान पुरोहित पं0 कृपाशंकर चतुर्वेदी के अनुसार विन्ध्य क्षेत्र में दर्शन पूजन व त्रिकोण करने से अनंतगुना फल की प्राप्ति होती है द्य भारतीय धर्म शास्त्र में ऐशान्य कोण को देवताओ का स्थान माना गया है द्य विन्ध्य पर्वत के इसी कोण पर शिव के साथ शक्ति अपने तीनो रूप में विराजमान होकर भक्तो का कल्याण कर रही है द्य माता के दर पर हाजिरी लगाने व हाँथ फैलाने वाले को कभी निराश नही होना पड़ता द्य माता तो अपने भक्त की पुकार सुनकर ही उसके दर्द कोजान जाती है और फिर ममतामयी माँ की कृपा बरस पड़ती है।