ड्रैगन की हुंकार: भारत का विरोध उचित

india and china

बीजिंग। चीन ने कहा है कि एनएसजी में भारत के प्रवेश के प्रयास का उसकी ओर से विरोध करना नैतिक रूप से उचित है और पश्चिम ने अंतरराष्ट्रीय मामलों में नई दिल्ली को दंभी बनाकर उसे बिगाड़ दिया है।
चीन के सरकारी समाचार पत्र द ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में कहा कि 48 सदस्यीय समूह में भारत के प्रवेश को चीन ने नहीं बल्कि नियमों ने रोका। करीब 10 देशों ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को एनएसजी में शामिल करने का विरोध किया। भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं लेकिन एनएसजी में शामिल होने के लिए वह सबसे अधिक सक्रिय था।
सोल बैठक से पहले भारतीय मीडिया ने भारत के प्रयास को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया। कुछ ने तो यहां तक दावा कर दिया कि चीन को छोड़कर एनएसजी के अन्य 47 सदस्यों ने भारत का समर्थन किया था। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक भारत एनपीटी पर हस्ताक्षर किए बिना एनएसजी में शामिल होकर अपवाद बनना चाहता है। यह चीन और दूसरे सदस्यों के लिए नैतिक रूप से उचित है कि वे सिद्धांतों के बचाव में भारत के प्रस्ताव को गिराएं।
अपने राष्ट्रवादी रूख की पहचान रखने वाले ग्लोबल टाइम्स ने भारत के एनएसजी के नाकाम प्रयास को लेकर भारतीय मीडिया और जनता की प्रतिक्रिया की आलोचना की। समाचार पत्र ने कहा कि भारत सरकार ने विनम्रतापूर्वक व्यवहार किया लेकिन इस मामले में भारतीय जनता की प्रतिक्रिया काफी तीखी रही। भारत के कुछ मीडिया घरानों ने चीन को गोली देना शुरू कर दिया। कुछ भारतीयों ने चीन में बने उत्पादों के बहिष्कार की बात कही। साथ ही ब्रिक्स ग्रुप से भारत के हटने की मांग भी की गई।
कुछ भारतीय बहुत अधिक आत्मकेन्द्रित और आत्म असंतुष्ट हैं। दूसरी तरफ भारत सरकार ने विनम्रतापूर्वक व्यवहार किया और बातचीत का इच्छुक है। भारत के राष्ट्रवादियों को यह सीखना चाहिए कि उनको कैसे व्यवहार करना है। अगर वे चाहते हैं कि उनका देश बड़ी ताकत हो तो उनको यह जानना चाहिए कि कैसे बड़ी ताकतें अपना काम करती है। छींटाकसी करना नई दिल्ली के लिए कोई विकल्प नहीं होगा।
भारत को एनएसजी में बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किए शामिल होने की शक्ति अमरीकी समर्थन से मिली। दरअसल वॉशिंगटन और भारत के रिश्तों में चीन को रोकना निहित है। अमरीका ही पूरी दुनिया नहीं है। अमरीकी समर्थन का मतलब यह नहीं हुआ कि भारत ने पूरी दुनिया का समर्थन हासिल कर दिया। यह बुनियादी तथ्य है भले ही भारत ने इसकी पूरी तरह से उपेक्षा की। भारतीयों का चीन पर आरोप का कोई मतलब नहीं है। चीन के कदम अंतरराष्ट्रीय नियमों पर आधारित है लेकिन भारत की प्रतिक्रिया उसके राष्ट्रीय हित से जुड़ी है। हाल के वर्षों में साफ दिखा है कि पश्चिम की दुनिया ने भारत को खूब शाबाशी दी है और चीन का विरोध किया है। भारत इनका दुलारा बन गया है। हालांकि दक्षिण एशियाई देशों की जीडीपी चीन का महज 20 फीसदी है। पश्चिमी देशों की आखों में चीन चुभता है। भारत की अंतरराष्ट्रीय चापलूसी इनके लिए सुखद है।
मिसाइल टेक्नॉलजी कंट्रोल रेजीम में भारत को नया सदस्य बनाया गया है। चीन को इसमें जगह नहीं दी गई है। इस खबर को लेकर चीनी नागरिकों में लहर नहीं फैली। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में धक्कों से निपटने में चीनी नागरिक ज्यादा परिपक्व हैं। कई भारतीय आत्मकेन्द्रित और आत्मसंतुष्ट हैं। दिलचस्प यह है कि भारत सरकार ने इस मामले में सभ्य तरीके से बातचीत की। जाहिर है कि नई दिल्ली के लिए झल्लाना कोई विकल्प नहीं हो सकता। भारत के राष्ट्रवादियों को को व्यवहार सीखाना चाहिए। ये देश को बड़ी शक्ति बनाना चाहते हैं लेकिन इन्हें महाशक्तियों के खेल की समझ नहीं है।