नेता ले सकतें हैं बीसीसीआई के कामकाज में हिस्सा

supreem courtनई दिल्ली, (एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका इरादा बीसीसीआइ की स्वायत्तता में दखल देने का नहीं है, बल्कि वह सिर्फ यह चाहता है कि उसकी गातिविधियां ऐसी हों जिससे देश में खेल का विकास हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को साफ किया कि वह नेताओं के बीसीसीआइ के कामकाज में हिस्सा लेने के खिलाफ नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह जानना चाहती है कि देश की शीर्ष क्रिकेट संस्था ने अपने लेखा परीक्षकों से राज्य क्रिकेट संघों को दिए जा रहे पैसे का ऑडिट करने को कहा है या नहीं। अदालत ने बीसीसीसीआइ और उसके सदस्य संघों द्वारा लोढ़ा समिति की कुछ सिफारिशों को लागू करने के खिलाफ की गई अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।
बीसीसीआइ लोढ़ा समिति द्वारा एक राज्य एक वोट, अधिकारियों के कार्यकाल को सीमित करने और बीसीसीआइ बोर्ड में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) का प्रतिनिधि शामिल करने की सिफारिशों के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, हम बीसीसीआइ के फैसले की समीक्षा नहीं कर रहे हैं। जैसे, अगर वह टीम का चयन करते हैं तो उसमें तेज गेंदबाज और स्पिनर होना चाहिए या नहीं, हम इसमें दखल नहीं दे सकते।
अपने जवाब में बीसीसीआइ ने अदालत में कहा कि उसे किस तरह अपना कामकाज करना चाहिए, इसको लेकर कोई उसे निर्देश नहीं दे सकता। बीसीसीआइ ने कहा कि अगर अदालत बोर्ड के अस्तित्व, संविधान, सदस्यता और सदस्यों की योग्यता में दखल देती है तो यही बात उसे देश के 64 राष्ट्रीय खेल संघों पर भी लागू करनी चाहिए। पीटीआई के अनुसार क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार के सचिव आदित्य वर्मा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नलिनी चिदंबरम ने बीसीसीआइ के नवनियुक्त अध्यक्ष अनुराग ठाकुर पर सवाल खड़े किये और दावा किया कि वह तीन आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं और फिर भी उन्हें बीसीसीआइ का प्रमुख निर्वाचित किया गया है। इस मामले में अदालत की ओर से न्यायमित्र नियुक्त किए गए सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम ने उनकी दलीलों का समर्थन किया कि लोढ़ा समिति ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोपपत्र दायर है तो यह गंभीर मुद्दा है और उसे खेल संस्था के मामलों से दूर रखना चाहिए।