अब तो साफ हो गंगा

narendra-modis-mission-to-clean-gangaलगभग ढाई साल के जुबानी जमाखर्च के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट नमामि गंगे पर अब जाकर कुछ काम शुरू होने की उम्मीद बंधी है। देखना है, इन उपायों से गंगा सचमुच अविरल और निर्मल हो पाती है या नहीं। भारतीय सभ्यता की जीवन रेखा कहलाने वाली गंगा को इस रूप में देखना एक सपना ही हो गया है। न जाने कितनी बार, कितनी सरकारों ने इसे साफ करने की कवायद शुरू की, लेकिन गंगा लगातार पहले से ज्यादा प्रदूषित होती गई। बीजेपी ने गंगा की सफाई को अपना चुनावी मुद्दा बनाया था।
पार्टी के वाराणसी घोषणापत्र में इसे खासा महत्व मिला था। सरकार बनने पर उमा भारती जैसी कद्दावर नेता को इसका दायित्व सौंपा गया। फिर भी इस पर ठोस काम के नाम पर दिखाने को कुछ भी नहीं है। सरकार की सुस्ती से सहयोगी देश जापान नाराज हो गया। इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई और पूछा कि अपने कार्यकाल में वह गंगा सफाई का काम पूरा कर पाएगी या नहीं? बहरहाल, अब 231 परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ है, जिनके तहत कई जगह सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएंगे। घाटों की मरम्मत, श्मशानों का आधुनिकीकरण किया जाएगा और नदी में मिलने वाले नालों के मुहानों पर आधुनिक उपकरण लगाए जाएंगे।
गंगा के किनारे आठ जैव विविधता संरक्षण केंद्रों का भी विकास किया जाएगा। इन परियोजनाओं की लगातार मॉनीटरिंग की जरूरत है। केंद्र सरकार को राज्यों से तालमेल बनाकर इनके कामकाज पर नजर रखनी होगी ताकि समय पर लक्ष्य पूरे किए जा सकें। फिर परियोजनाओं के मेनटेनेंस की भी जरूरत पड़ेगी। यह नहीं कि संयंत्र खड़े कर लिए और फिर उन्हें चलाना ही भूल गए। एक नदी की सफाई का मामला पूरी जीवनशैली से जुड़ा है। शहरों के उचित रख-रखाव की बात भी इसमें शामिल है। आज आलम यह है कि कई शहरों की सीवर लाइनें ही दुरुस्त नहीं हैं। कई शहरों में कचरे के निपटान के लिए कोई निश्चित व्यवस्था नहीं है। क्या इन पहलुओं पर विचार कर लिया गया है? फिर चमड़ा, रसायन, चीनी और शराब जैसे उद्योगों के अपशिष्ट सीधे नदियों में छोड़ देने के चलन पर पूरी तरह रोक लगानी होगी।
अभी तो पर्याप्त कानूनों के अभाव में उद्योग बेलगाम हो रहे हैं। पिछले एक साल में एनवॉयरनमेंट मिनिस्ट्री को पर्यावरण उल्लंघन के 400 केस सिर्फ इसलिए छोड़ देने पड़े क्योंकि उनसे निपटने के लिए कड़े कानून ही नहीं हैं। जाहिर है, गंगा सफाई का मामला सिर्फ जल संसाधन और पर्यावरण का मुद्दा नहीं है। यह एक बहुस्तरीय अभियान की मांग करता है और इसका एक सिरा जनता से भी जुड़ता है। क्या लोग आधुनिक प्रणाली वाले श्मशानों में अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए इतनी आसानी से तैयार हो जाएंगे? क्या वे मूर्ति विसर्जन, स्नान आदि में सावधानी बरतने लगेंगे? नमामि गंगे मिशन को एक जन आंदोलन की शक्ल देकर ही इन सवालों के कारगर जवाब खोजे जा सकेंगे।