आकर्षक कैरियर विकल्प बने सेना

pak borderज्ञाानेन्द्र रावत।
आज भारतीय सेना अधिकारियों की कमी से जूझ रही है। सेना में अधिकारियों की कमी का यह सिलसिला पिछले दशक से जारी है। यह समस्या इसलिए और विकट हो गई है कि आने वाले पांच सालों में बड़े पैमाने पर अफसर और सैन्यकर्मी सेना से रिटायर हो रहे हैं। इन पांच सालों में तकरीबन आठ हजार अफसर और ढाई लाख जवान सेना से अवकाश ले रहे हैं। अभी तकरीबन दस हजार से ज्यादा पद अफसरों के सेना में खाली पड़े हैं जो हर साल सेना के तीनों अंगों की अकादमियों, आफिसर्स ट्रेनिंग एकेडेमी मेंस और आफिसर्स ट्रेनिंग एकेडेमी वीमेंस द्वारा कमीशन प्राप्त नए अधिकारियों की भर्ती के बावजूद भरे नहीं जा सके हैं।
भूमण्डलीकरण के दौर में सेना की नौकरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाखों के वेतनमान, अनगिनत सुविधाओं के मुकाबले उपेक्षा का कारण बन गयी है। एक साल पहले संसद की एक समिति ने यह सिफारिश की थी। समिति का मानना है कि केन्द्रीय सेवा के अतिरिक्त राज्य सेवाओं में हर साल सैकड़ों अधिकारियों की भर्ती होती है। यदि उनकी सेवाएं पांच साल तक सैन्य बलों को मिलती रहें तो सेना में अफसरों की कमी को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। रक्षा मंत्रालय का मानना है कि यह फैसला लेना इतना आसान नहीं है। यदि इस प्रस्ताव पर सहमति बनती है तो ऐसे अधिकारियों को गैर युद्धक कार्यों में तैनात किया जा सकता है।
देखा जाये तो भारतीय सेना के तीनों अंगों में 72,824 पद अफसरों के लिए स्वीकृत हैं। इनमें तकरीबन साढ़े दस हजार अफसरों के पद खाली पड़े हैं। बीते दिनों इन 10,500 अफसरों के खाली पड़े पदों की कमी को दूर करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने सैन्य बलों को अतिरिक्त प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार करने को कहा है। असलियत यह है कि जवानों की भर्ती प्रक्रिया में उतनी दिक्कत नहीं है। असल दिक्कत प्रशिक्षण सुविधाओं में कमी के कारण अफसरों की भर्ती में आती है। होता यह है कि सैन्य बल कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज के जरिये 400-500 अफसरों की ही भर्ती कर पाते हैं। फिर तकनीकी पदों पर प्रमोशन के जरिये जो भर्ती होती है, वह भी ज्यादा नहीं है। जबकि पिछले सालों के मुकाबले इस साल से तकरीबन डेढ़ हजार अफसर हर साल रिटायर हो रहे हैं।
इस समय थल सेना में 8455, नौसेना में 1672 और वायु सेना में 523 अफसरों की कमी है। यदि तीनों सेनाओं में अफसरों से नीचे के जवानों और जूनियर कमीशंड अफसरों की बात करें तो हालात और खराब हैं। वहां करीब 33 हजार पद खाली पड़े हैं। इसके चलते ही रक्षा मंत्रालय को जवानों और अफसरों की भर्ती में तेजी के साथ प्रशिक्षण सुविधाओं में विस्तार करने के लिए सैन्य बलों से कहना पड़ा है। दरअसल सेना को उस स्तर के नौजवान नहीं मिल रहे हैं। यह चिंता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के कार्यकाल से संसदीय सलाहकार समिति बराबर व्यक्त करती रही है कि अन्य क्षेत्रों में आकर्षक अवसरों के कारण अब रक्षा क्षेत्र में कैरियर बनाने में युवा वर्ग की रुचि कम हो रही है। साथ ही सेना सेवा परीक्षा में बड़ी संख्या में उम्मीदवारों के परीक्षा उत्तीर्ण करने के बावजूद सेवा चयन बोर्ड के निर्धारित मानदण्डों पर उम्मीदवार खरा नहीं उतर पाते। नतीजतन सशस्त्र बलों में रक्षा अधिकारियों की लगातार कमी हो रही है।
उस दौरान संसदीय सलाहकार समिति ने भर्ती प्रक्रिया की समीक्षा की मांग की थी ताकि अधिकारी वर्ग में भर्तियों की ओर युवा वर्ग को आकर्षित किया जा सके। तब रक्षा अधिकारियों ने समिति को स्पष्ट कर दिया था कि वे भर्ती मापदण्डों में किसी भी प्रकार की ढील दिये जाने के पक्ष में नहीं हैं। गौरतलब है कि वर्ष 1997 से ही छोटे कस्बों तथा ग्रामीण इलाकों में सेना भर्ती सम्बंधी प्रचार अभियान चलाये जाने के बावजूद स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। आज भी बहुतेरी रेजीमेंटों और बटालियनों में एक-तिहाई अधिकारियों से ही काम चलाया जा रहा है। नतीजतन वे दवाब में काम कर रहे हैं। यह स्थिति पैदल सेना से लेकर आर्टिलरी, आर्म्ड आदि सभी कोर में बरकरार है।
सेना के सामने सबसे बड़ी समस्या अधिकारियों, सैनिकों तथा अन्य कार्मिक अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मियों के सेना से पलायन की बढ़ रही प्रवृत्ति को लेकर भी है। अधिकारियों के साथ-साथ वीआरएस चाहने वाले नौसेना और वायु सेना के अधिकारी तो हैं ही, तीनों अंगों के जेसीओ और जवान भी हैं। सेना द्वारा आंतरिक रूप से कराये एक अध्ययन का मानना है कि खाली पड़े पद आने वाले दो दशकों में उस हालत में भरे जा सकते हैं जब अकादमियों की प्रशिक्षण क्षमता बढ़ाई जाये और समय से पहले अधिकारियों की सेवानिवृत्ति पर प्रतिबंध लगे। इस अध्ययन के आधार पर भारतीय सैन्य अकादमियों की भर्ती क्षमता बढ़ाने के लिए अकादमियों को तीन साल का समय चाहिए। आज भूमण्डलीकरण के दौर में कैरियर के लिहाज से सबसे बड़ी आवश्यकता सेना को आकर्षक विकल्प बनाने की है।