दांव पर लगी है हस्ती हमारी

chama sharmaक्षमा शर्मा।
दुनिया में बहुत कम देश ऐसे होंगे जहां प्रकृति के इतने अनोखे नजारे मौजूद हैं, नदियां हैं , पहाड़ हैं, बर्फ से ढके तो बिल्कुल ऐसे भी जिन पर किसी वनस्पति का नामो निशान तक नहीं। तरह-तरह के पत्थर कहीं संगमरमर तो कहीं लाल। नदियां, झरने, झील, तालाब, पोखर, कुएं, बावड़ी। एक तरफ लहराता समुद्र तो दूसरी तरफ रेत के टीलों को इधर से उधर ले जाती रेगिस्तानी हवाएं और इस रेत से बना विशालकाय रेगिस्तान। छह प्रकार की ऋतुएं। जिनके वर्णनों से हमारा पूरा साहित्य भरा पड़ा है।
हर ऋतु और उससे जुड़ी फसलों यहां तक कि गीत और संगीत की अलग पहचान। लोकगीत, लोककथाएं और लोकसंगीत। इतनी फसलें-गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, जई, जौ तो तरह-तरह की दालें। मिठाइयां। नमकीन। पकवान। अचार-पापड़-बडिय़ां। आम, अमरूद, लीची, पपीता, अंगूर,मौसमी, संतरे, सेब और हजारों प्रकार के फल। हजारों प्रकार की शाक-भाजियां और उन्हें बनाने के भी उतने ही ढंग। इतनी तरह के वाहन-तांगे, इक्का, बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी। कितनी तरह के दूध और घी-गाय का, भैंस का, बकरी और ऊंट का। गाय, भैंस, बकरियां, कुत्ते, बिल्ली, हाथी, शेर चीते, बंदर, भालू, लंगूर और न जाने कितने प्रकार के जानवर। एक से एक इंद्रधनुषी रंगों से सजी चिडिय़ां, तोते, चील, कोयल, मोर, बतख और इतनी कि गिनती मुश्किल। हर प्रदेश की अपनी भाषा और उनसे निकली ढेरों बोलियां।
कहा जाता है कि कुछ किलोमीटर पर बोली बदल जाती है और नए रूप-रंग धर लेती है। जितनी भाषाएं, बोलियां, प्रदेश, उतने ही पहनावे, रीति, रिवाज और पूजा पद्धतियां। इतने धर्म, उनके मानने वाले, उनके त्योहार। मेले-ठेले, नाच। हर प्रदेश के अलग-अलग नाच-कहीं कुचिपुड़ी तो कहीं भरत नाट्यम। न जाने कितनी प्रकार की कलाएं, पेंटिंग, भित्ति चित्र, मूर्ति शिल्प, काष्ठ शिल्प, धातु और मिट्टी की मूर्तिंयां। गहने, जेवर और शृंगार। कितनी प्रकार की साडिय़ां और सिर्फ साडिय़ां ही नहीं, उन्हें बांधने के तरीके अलग-अलग। बाल बनाने के अनगिनत प्रकार और उनमें फूल खोंसने के भी अनेक ढंग।
चेहरे को आकर्षक दिखने के मानक भी अलग-अलग। कहीं बड़ी आंखें सौंदर्य की निशानी तो कहीं सांवला रंग। सिंदूर और बिंदी लगाने के तरीके भी अलग-अलग। पुरुषों की पोशाकें भी तरह-तरह की। कहीं पगड़ी तो कहीं टोपी तो कहीं धोती तो कहीं कुर्ता और खाना अलग-अलग। दक्षिण भारतीय व्यंजन, बांग्ला रसोई तो पंजाबी और उत्तर प्रदेश का खाना। छोले-भठूरे से लेकर चाट, पकौड़े, समोसे, कचौड़ी, इडली, दोसा ,चावल रोटी से लेकर मांसाहारी व्यंजन तक। मकान बनाने के तरह-तरह के तरीके। तरह-तरह के रंग, खिड़कियां, दरवाजे, ऊंचाई, लम्बाई, चौड़ाई सब अलग। झोपडिय़ों के न जाने कितने रंग, कितने कितने डिजाइन। सच तो यह है कि एक लेख में सब चीजों को समेटना मुश्किल है।
ऊपर जो बातें लिखी हैं असलियत तो शायद इनसे लाखों-करोड़ों गुनी बड़ी होगी। एक बात जो बहुत गम्भीर रूप से महसूस होती है, वह यह कि अब हमारी विविधता, उसकी पहचान खतरे के दौर से गुजर रही है। हो सकता है कि आज से पचास साल बाद लोग यह भूल ही जाएं कि इस देश में कितनी तरह के पहनावे थे, संगीत और राग-रंग था, भाषा और बोलियां थीं। मातृभाषाओं को छोड़कर अंग्रेजी की तरफ बढ़ता रुझान और नौकरी पाने तथा पढ़े-लिखे दिखने के लिए उसका आदर्शीकरण इस देश की हजारों बोलियों के ऊपर खतरे की तरह मंडरा रहा है। अपनी किसी भाषा को दोयम दर्जे का मानना और उसके बरअक्स किसी और विदेशी भाषा को बहुत महत्वपूर्ण दर्जा देना शायद अपने ही देश में सम्भव है। इसके अलावा महिलाओं के जो तरह-तरह के परिधान दिखते थे, अब उनमें खासतौर से शहरों में बहुत ही एक आयामीपन दिखता है। जब से पश्चिमी वेशभूषा को शक्तिशाली औरत का प्रतीक बनाया गया है, तब से बाकी परिधान कम होते जा रहे हैं। साड़ी तो जैसे मध्य वर्ग के रोजमर्रा के जीवन से तो क्या किसी उत्सव और त्योहार के मौके से भी गायब हो गई है। यही नहीं, लम्बे बालों और चोटी के मुकाबले कटे बाल भी इसी ताकतवर औरत की पहचान बन गए हैं। अब शहरों में तो क्या गांवों में भी कोई लड़की लम्बे बाल नहीं रखना चाहती।
यही बात खान-पान के सम्बंध में भी है। आज घरेलू खाने के मुकाबले बाहर का खाना ज्यादा पसंद किया जाता है। खान-पान की ये चीजें सिर्फ महानगरों में ही नहीं, छोटे से छोटे कस्बों और गांवों में भी घरों के अंदर पूरी तरह से अपनी जगह बना चुकी हैं। हर शहर के अपने अनोखे मिजाज और भाषा, बोली और पहनावे को मीडिया, फिल्मों और सीरियलों के जरिए ग्लोबलाइजेशन या भूमंडलीकरण ने अपनी चपेट में ले लिया है। स्थानीयता के लेवाल नहीं बचे हैं। क्योंकि स्थानीय खान-पान भाषा और बोली के बारे में बार-बार यह बताया गया है कि ये किसी काम की नहीं और सफलता की राह में रोड़ा हैं। और इस दुनिया में आखिर कौन ऐसा है जो सफल नहीं होना चाहता, जो सफलता के मुकाबले असफलता की ओर दौडऩा चाहता है।