विदेशों में महक बिखेर रहा अबूझमाडिय़ा शिल्पियों का जादू

shilp 2जगदलपुर (आरएनएस)। नारायणपुर जिले के दूरस्थ अबूझमाड़ ईलाके के झारावाही से 9 वर्ष पहले नक्सली पीडि़त जनकाय उसेण्डी नारायणपुर आयी, तो उसके पास सबसे पहले रोजी-रोटी की समस्या थी, लेकिन उसने आड़े वक्त में हिम्मत नहीं छोड़ी और जनकाय ने परम्परागत बांस शिल्प को जीवन का आधार बनाया। उसकी कला को परख कर शिल्पग्राम ने उसे काम के साथ आसरा दिया। यहां जनकाय ने अपने हुनर को निखारा और अपनी कला को नई ऊंचाई दी, जिसके चलते आज वह राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कारों की हकदार हो गयी है।
इसी तरह अबूझमाड़ क्षेत्र के कुतुल निवासी मालेबाई वड़दा, कोहकामेटा की बुधनीबाई, मुरनार निवासी रमूलाबाई आदि महिलायें शिल्पग्राम में अपनी कला को निखार रही हैं। इनके बांस शिल्प का काम और नाम देश-विदेश में देखने तथा सुनने को मिल रहा है। छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड के प्रबंधक श्री बीके साहू ने बताया कि जनकाय उसेण्डी सहित शिल्प ग्राम की अनेक महिलायें देश भर में विभिन्न प्रदर्शनी, दिल्ली हाट, सूरजकुंड, नागपुर, शिमला, रांची, तिरूअनंतपुरम सहित अनेक स्थानों में आयोजित शिल्प मेला के जरिये अपनी कला-कृतियों की ख्याति बिखेर चुकी हैं।
उन्होंने बताया कि बस्तर के अनेक शिल्पी स्विटजरलैंड, फ्रांस, इग्लैण्ड, इटली तथा अमेरिका जैसे देशों में अपनी कला-कृति प्रदर्शित कर चुके हैं और अब सारी दुनिया अबूझमाड़ के कलाकृति का लोहा मानने लगी है। यही कारण है कि इस दूरस्थ अंचल के पंडीराम मंडावी, जयराम मंडावी, बेलगुर मंडावी आदि कई सिद्धहस्त शिल्पियों ने पुरस्कृत होकर अपनी अलग पहचान स्थापित किया है। शिल्पग्राम में रहकर अपनी कलाकृति तैयार करने वाली नक्सली पीडि़त पदमकोट की सरपंच श्रीमती कोसीबाई और गुमियाबेड़ा निवासी सीताबाई सलाम ने बताया कि सरकार ने हमें आसरा दिया। हम बांस शिल्प बनाते हैं, उन्हें बड़े शहरों के प्रदर्शनियों में दिखाते हैं और उनको बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं।
इन महिलाओं ने बताया कि बीते वर्ष असम की ख्यातिप्राप्त बांस शिल्प रूपांकन विशेषज्ञ श्रीमती नीरा शर्मा के जरिये बांस से आधुनिक ज्वेलरी तथा अन्य कलात्मक वस्तुओं का निर्माण करने का प्रशिक्षण लिया। जिससे अब चूड़ी, हार, कंगन, बाली, ब्रेसलेट इत्यादि बांस के गहने तैयार कर रहे हैं, जिसे स्थानीय महिलाओं के अलावा दूसरे क्षेत्र की महिलाओं द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है। शिल्पग्राम में अपनी कलाकृति तैयार करने वाली अबूझमाड़ क्षेत्र की अन्य महिलाओं ने अवगत कराया कि वे गांव में थे, उस समय से ही बांस शिल्प में सिद्धहस्त थीं। लेकिन दूरस्थ क्षेत्र होने के साथ ही छोटी जगह होने के कारण उनकी कला को वैसा सम्मान नहीं मिल पा रहा था, जैसा सम्मान पाने की इच्छा कलाकार को होती है। अब उन्हें मंत्री, अधिकारी सब नाम से जानते हैं और उनकी कला को सराहते हैं। साफ है कि शिल्पग्राम ने इन आदिवासी शिल्पकारों की कला को परखने सहित उसे समुचित मान दिलाया है। इन कलाकारों की आय अब भी उतनी नहीं है, जिससे इनका बेहतर तरीके से गुजारा हो सके, फिर भी धीरे-धीरे इनकी आमदनी बढ़ रही है। इन अबूझमाडिय़ा महिलाओं से प्रोत्साहित होकर क्षेत्र के नक्सली पीडि़त ग्रामीण महिलायें और पुरूष अब भी इस शिल्पग्राम में आकर शिल्प कला की बारीकियों को सीखने के साथ हुनरमंद बनने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उनका आने वाला कल बेहतर और सुखद हो सके।
शिल्पग्राम केे प्रबंधक श्री साहू ने इस बारे में बताया कि क्षेत्र की संवेदनशील परिस्थिति को मद्देनजर रखते हुए नक्सली पीडि़तों को सीखने तथा समझने का अवसर मुहैय्या कराने प्राथमिकता दी जा रही है। वहीं इनके लिए आवास की व्यवस्था भी शिल्प ग्राम परिसर में किया गया है। शिल्पग्राम के अनेक शिल्पियों को जिला प्रशासन के सकारात्मक पहल के फलस्वरूप इंदिरा आवास भी सुलभ कराया गया है। इसके साथ ही परिसर में शिल्पियों के लिए सामुदायिक भवन और पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित किया गया है। उन्होंने बताया कि शिल्पकारों की लगन एवं मेहनत को देखकर अब शिल्पग्राम में नई मशीनों के साथ ही प्रसंस्करण यूनिट भी लगायी गयी है। जिससे शिल्पियों को काम में सुविधा होने के साथ ही उनकी कलाकृतियों में निखार आ रहा है।
बहरहाल शिल्पग्राम में 70 से अधिक शिल्पी रहकर स्वयं हुनरमंद होकर आत्मनिर्भर बनने संकल्पबद्ध हैं। अपने गांव-घर से बिछुडऩे का दुख इन्हें है, लेकिन शिल्पग्राम का पारीवारिक वातावरण इनके गुजरे हुए जख्मों में मल्हम लगा देता है।