एक गांव ऐसा: जहां पैदा हुए 27 फ्रीडम फाइटर्स

15-august-greetingsपटना। बिहार के सीवान जिले के महाराजगंज में एक गांव ऐसा है जहां एक-दो नहीं, बल्कि 27 स्वतंत्रता सेनानी हुए। यह गांव है बंगरा, जहां के स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। महाराजगंज मुख्यालय से ठीक सटा है गांव बंगरा। स्वतंत्रता सेनानियों के गांव के रूप में चर्चित। गांव के कई योद्धाओं ने मातृभूमि की आजादी के लिए अपने को कुर्बान कर दिया, तो कई ने अंग्रेजों की प्रताडऩा के बावजूद अपना सिर नीचा नहीं किया। फिरंगियों के दांत खट्टे करने वाले अमर शहीद देवशरण सिंह अंग्रेजी हुकुमत की गोली का शिकार हो गए। यही कारण है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में बंगरा गांव का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
लोगों के बीच चर्चा होती है कि देश का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां 27 स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी लिस्ट होगी। देवशरण सिंह के अलावा रामलखन सिंह, टुकड़ सिंह, गजाधर सिंह, रामधन राम, रामपृत सिंह, सुंदर सिंह, रामपरीक्षण सिंह, शालीग्राम सिंह, गोरख सिंह, फेंकु सिंह, जुठन सिंह, काली सिंह, सूर्यदेव सिंह, बमबहादुर सिंह, राजनारायण उपाध्याय, रामएकबाल सिंह, तिलेश्वर सिंह, देवपूजन सिंह, रघुवीर सिंह, नागेश्वर सिंह, शिव कुमार सिंह, झूलन सिंह, राजाराम सिंह, सीता राम सिंह, मुंशी सिंह व सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ बंगरा गांव की मिट्टी को धन्य कर दिया था। गोरख सिंह, सीताराम सिंह व राजाराम सिंह को अंग्रेज गिरफ्तार नहीं कर सके तो इनके घर फूंक डाले। बावजूद इनकी देशभक्ति में कोई कमी नहीं आई।
सीताराम सिंह, मुंशी सिंह व सुरेन्द्र प्रसाद सिंह आज भी जीवित हैं। 96 वर्षीय सीताराम सिंह अंग्रेजों के जुल्म की कहानी सुनाते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वे बताते हैं कि देशभक्तों ने अपनी कुर्बानियां देकर देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराया। हालांकि देश की मौजूदा परिस्थिति को देख जीवित स्वतंत्रता सेनानियों के दिलों में टीस भी है। सीताराम सिंह कहते हैं कि आज देश में भ्रष्टाचार व घोटाला चरम पर है। राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए नेता लोगों को आपस में बांट रहे हैं। देश में साम्प्रदायिकता का जहर घोला जा रहा है। बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, सड़क, पेयजल आदि के लिए लोग तरस रहे हैं। क्या ऐसे ही दिन के लिए अपनी जानों की बाजी लगा लोगों ने देश को आजादी दिलाई थी।
महाराजगंज में जब अंग्रेजी हुकूमत का विरोध शुरू हुआ तो नौजवानों की टोली का नेतृत्व उमाशंकर प्रसाद ने किया। नमक बनाओ आंदोलन, सत्याग्रह और अपने स्कूल में छात्रों को अंग्रेजों से लडऩे की शिक्षा देने के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 1942 में देखते ही गोली मार देने का आदेश जारी किया था। इस आदेश के बाद उमाशंकर बाबू भूमिगत हो गए। भूमिगत होने के बाद उमाशंकर बाबू ने आंदोलन में लगे लोगों की आर्थिक सहायता देनी शुरू कर दी। 1928 में महाराजगंज पहुंचे महात्मा गांधी को 1001 रुपये की थैली उमाशंकर प्रसाद ने दी ताaकि देश को आजाद कराने में धन की कमी न हो। इस राष्ट्र प्रेम को देखकर अंग्रेज सैनिकों ने उमाशंकर प्रसाद हाई स्कूल में आग लगा दी और उनकी दुकान लूट ली। आजादी के बाद देशहित में मुआवजा लेने से इंकार कर दिया।