सच्चा अध्यापक: संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

sant raviभारतीय इतिहास में एक राजा की कहानी आती है जिसके पाँच पुत्र थे। दुर्भाग्य से वे चतुर नहीं थे और उन्हें कुछ भी सिखाना बहुत कठिन था। वास्तव में राजा उन सबको मूर्ख समझता था। वे अपने कार्य के प्रति गंभीर नहीं थे, यहाँ-वहाँ मसखरी करते रहते थे और अपनी पढ़ाई में से एक भी बात नहीं सीखना चाहते थे।
एक दिन राजा अपनी रानी के साथ मिलकर विचार-विमर्ष करने लगा कि बच्चों का क्या किया जाए? आखिरकार, एक दिन उनमें से कोई एक राजा का उत्तराधिकारी होगा और राजा अपना राज्य किसी अनपढ़ पुत्र के हाथों में नहीं सौंपना चाहेगा। वे अनेक निजी षिक्षक परख चुके थे पर कोई भी उनके बच्चों को बदल नहीं पाया था। बच्चे कुछ भी सीखने को तैयार नहीं थे।
उन्होंने एक बड़ा ईनाम देने का फैसला किया। घोषण की गई कि उनके राज्य का कोई भी व्यक्ति जो उनके पुत्रों को षिक्षित कर पाएगा, उसे वे आधा राज्य सौंप देंगे। एक के बाद एक अध्यापक, निजी षिक्षक, विद्वान और बुद्धिजीवी पाँचों राजकुमारों को षिक्षित करने के लिए आगे आए, पर हर एक निराष ही हुआ क्योंकि वे सफल नहीं हो सके। राजकुमारों ने कुछ भी सीखने से मना कर दिया।
राजा और रानी और अधिक हतोत्साहित हो गए। उनके पुत्र मूर्खों जैसा व्यवहार दर्षा रहे थे और उस राज्य के सर्वोत्तम व्यक्तियों द्वारा दिया गया प्रषिक्षण उन पर कोई प्रभाव नहीं डाल रहा था।
एक दिन एक प्रसिद्ध विद्वान एवं अध्यापक महल में आया और उसने बच्चों को पढ़ाने की कोषिष करने के लिए राजा से अनुमति माँगी। राजा सहमत हो गया। राजकुमारों के दिलों तक पहुँचने के लिए अध्यापक ने पढ़ाने के नए तरीके इस्तेमाल किए। उसने रोचक कहानियों के माध्यम से उन्हें पढ़ाया जिससे उनका ध्यान आकर्षित हुआ।
लड़कों को कहानियों में आनंद आया। चार महीने गुजर गए। वे अध्यापक के साथ अपने सबक का इंतजार करने लगे। पर चार महीनों के अंत में जब अध्यापक ने उनकी परीक्षा ली तो उसने पाया कि किसी को भी एक भी कहानी याद नहीं थी। वे कुछ क्षणों के लिए कहानी का आनंद लेते, पर उनके दिमाग में कुछ बैठ नहीं रहा था। इसलिए अध्यापक ने एक दूसरा तरीका इस्तेमाल किया। इस बार बच्चों को कहानी सुनाने के बाद उसने उनसे कहा कि अगर वे एक और कहानी सुनना चाहते हैं तो उन्हें पहली कहानी एक-दूसरे को सुनानी होगी ताकि वह उन्हें याद हो सके। उसने बच्चों को चतावनी दी कि अगर वे कहानी नहीं सुना सके तो उन्हें और कहानियाँ नहीं सुनाई जाएँगी।
पुत्रों ने कहानियों को और ध्यान से सुनना शुरू कर दिया पर यह तरीका भी कहानियाँ याद कराने में सफल नहीं हुआ।
अंत में अध्यापक राजकुमारों को कुँए के पास ले गया।
देखो यह मोटी रस्सी कुँए की मुंडेर के ऊपर से कुँए के अंदर जा रही है, इसके एक ओर बाल्टी बँधी है। जब रस्सी को खींचो तो पानी की बाल्टी ऊपर आ जाती है, अध्यापक ने बताया। देखो समय के साथ रस्सी ने पत्थर की मुंडेर पर गहरा निषान बना दिया है। जैसे कि पत्थर पर निषान बना दिया, मैं चाहता हूँ कि तुम हर कहानी म नही मन बार-बार दोहराओ, जब तक कि तुम्हें हर कहानी याद नहीं हो जाए। कहानियों को तुम्हारे मन पर एक निषान छोड़ देना चाहिए।
क्योंकि राजकुमार और अधिक कहानियाँ सुनना चाहते थे, उन्होंने वैसा ही किया, जैसा कि उनके अध्यापक ने उन्हें बताया था। कहानियों को म नही मन बार-बार दोहराकर वे अंत में उन्हें याद करने में सफल हो गए। समय के साथ उनकी एकाग्रता में सुधार आया और वे वह सब कुछ सीख पाए जो उनके अध्यापक ने उन्हें सिखाया।
राजा अध्यापक के नतीजों से बहुत प्रसन्न ुहआ। उसने अध्यापक को अपना आधा साम्राज्य देने की पेषकष की, पर अध्यापक ने उसे अस्वीकार कर दिया।
अध्यापक ने कहा, हे महान राजा! मैं एक अध्यापक हूँ। मुझे राजपाट से क्या लेना? मैं पढ़ाकर प्रसन्न होता हूँ। मैं संतुष्ट हूँ कि मैंने अपना कत्र्तव्य निभाया है। यह कहकर, वह अपने रास्ते चल दिया।
अध्यापक का यह दृष्टिकोण ऐसा है, जैसा कि इस संसार में आए महान आध्यात्मिक गुरुओं का होता है। उनका काम है भटकी हुई रूहों को अध्यात्म का पाठ पढ़ाना।
अगर वे हमारी आत्मा को आध्यात्मिक सच्चाई जैसे कि ध्यान-अभ्यास और सदाचार के पाले की षिक्षा दे पाते हैं तो वे संतुष्ट हो जाते हैं। अगर हम भगवान बुद्ध, ईसा मसीह, गुरु नानक, मोहम्मद साहब, भगवान महावीर, हजऱत मूसा और दूसरे महान संतों का जीवन देखें तो हम पाएँगे कि उन्होंने स्वयं को मानवता की सेवा में नि:स्वार्थ समर्पित कर दिया था।