मोदी साहब: शहीद सौरभ कालिया को क्यों नहीं मिला इंसाफ

saurabh-kalia

नई दिल्ली। देश पर जान न्यौछावर करने वाले अमर वीर सपूतों की कमी नहीं हैं मगर कुछ शहीद ऐसे भी हैं जिन्होंने दुश्मन की कैद में रहकर भी देश के साथ गद्दारी नहीं की और सेना के हर वो राज अपने सीने में दफन कर मौत के आगोश में समा गये। क्या ऐसे शहीद को देश भूल सकता है। मगर शायद सरकार भूल गयी तभी आजतक इन शहीदों को न्याय नहीं मिला। देशभक्ति का जज्बा पैदा करने वाले पीएम नरेन्द्र मोदी से आज देश की जनता सवाल पूछ रही है कि आखिर इन शहीदों की शहादत को क्यों भुला दिया गया जिन्होंने अपने देश की खातिर जान दे दी।
हम बात कर रहे हैं कारगिल वार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सौरभ कालिया की। अपने देश की खातिर कुर्बान हो जाने का जुनून हर किसी में नहीं होता लेकिन सौरभ कालिया इसी जुनून के साथ इंडियन आर्मी में ज्वाइन हुए थे। सौरभ कालिया इंडियन आर्मी में 4-जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे। उन्हें इंडियन आर्मी ज्वाइन किए हुए बस एक ही महीना हुआ था कि उन्हे कारगिल वार में लडऩे का मौका मिला। जिसमें उन्होनें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होनें कारगिल में पाकिस्तानी फौज के नापाक इरादों की सेना को जानकारी दी। सौरभ कालिया की कारगिल में तैनाती के बाद 5 मई 1999 को वह अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ लद्दाख की बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया।
सौरभ कालिया ने पाक अफसरों की खुफिया जानकारी इंडियन आर्मी तक पहुंचाई इस बात का पता पाक अफसरों को भी चल गया था। उन्हें बंदी बनाने के बाद उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया जिसे सुनकर आपकी रूह कांप जाएगी। ऐसी प्रताडऩाएं दी गई जिसे सुनकर आप का दिल दहल जाएगा। इन्हे पाकिस्तानी सेना ने 22 दिनों तक बंदी बनकर रखा और अमानवीय यातनाएं दी। उनके शरीर पर अफसरों ने गर्म सरिए से दाग कर अपना गुस्सा निकाला। इतना ही नहीं उनकी आंखे भी फोड़ दी गई। उनके शरीर के अंगों को भी काट दिया गया। जब सौरभ का शव मिला तो वह बहुत ही बुरी हालत में था। जिसे देखकर उनके साथ हुई यातनाओं का अंदाज़ा लगाया जा सकता था। ठोस सबूत के बावजूद शांत है सरकार ये मामला तब प्रकाश में आया जब एक पाकिस्तानी सैनिक ने ऐसी नृशंसता की बात को स्वीकार किया था। ठोस प्रमाण के बावजूद सरकार आज तक शांत है और यह दु:ख की बात है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने विपक्ष में रहते हुए इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन सत्ता में रहने पर उनकी राजनीति व कार्यनीति में अंतर साफ नजऱ आता है। 17 साल पहले अपने 23 साल के बेटे कैप्टन सौरभ कालिया को देश के लिए कुर्बान करने वाले माता-पिता अब न्याय की आस में बची हुई जिंदगी काट रहे हैं। उनके पिता डॉ. एन. के. कालिया रूंधे गले से कहते हैं अब मैं 68 साल का हो गया हूँ। हमारी लड़ाई पैसे के लिए नहीं है, ये लड़ाई है सम्मान की। मेरा बेटा कारगिल युद्ध का पहला शहीद था। उसके साथ और पांच लोग थे, ये लड़ाई उनके सम्मान की है। हमारे पड़ोसी से जब हमारी नहीं बनती तो कुछ दिन एडजस्ट करने के बाद हम अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। मुझे समझ नहीं आता कि हम पाकिस्तान से क्यो डरते हैं, हम क्यों कभी दोस्ताना मैच खेलते है और कभी उनके कलाकारों को सम्मानित करते हैं जबकि उन्होनें एक सोल्जऱ जो कि युद्धबंदी था उसका भी सम्मान न किया। देखते हैं कि अब ये सरकार क्या करती हैं। सौरभ ने अपनी जिंदगी इसलिए कुर्बान कर दी ताकि हम चैन की नींद सो सकें और हमारा कल सुरक्षित हो। लेकिन 22 दिनों की भीषण यातना सहने के बाद जान गंवा देने वाले देश के इस सपूत को अपने ही देश से न्याय का इंतजार है।