सुरक्षा में सेंध की न रहे गुंजाइश

terrorismज्ञाानेन्द्र रावत। अर्से से आशंका व्यक्त की जा रही है कि देश की बंदरगाहों पर कभी भी आतंकी हमला हो सकता है। केन्द्रीय खुफिया एजेंसियां देश में 26/11 के मुंबई हमले की तर्ज पर समुद्री रास्ते से आतंकी हमले और हवाई रास्तों से हमलों की आतंकियों की योजना से महीनों पहले ही आगाह कर चुकी हैं। यह भी कि आतंकी तटीय स्थलों जैसे बंदरगाहों एवं नौसैना के प्रतिष्ठानों को निशाना बना सकते हैं।
असल में हमारी तटीय सुरक्षा में बहुत खामियां हैं। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मानें तो सरकार देश के बड़े बंदरगाहों एवं उनकी सेवाओं को उन्नत बनाने के लिए उन्हें कंपनी कानून के दायरे में लाने के प्रस्ताव से भी आगे के विकल्पों की तलाश कर रही है और बंदरगाहों को आधुनिक रूप देने और उनका विकास किए जाने के अपने निर्णय पर आमादा है। लेकिन उन्हें इससे पहले यह सोचना होगा कि देश के 187 बंदरगाहों की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त हुआ जा सकता है? गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गोवा और ओडिसा जैसे राज्यों में स्थित बंदरगाहों पर सुरक्षा में गंभीर खामियों को लेकर लम्बे अरसे से सवाल उठते रहे हैं। इन बंदरगाहों में गुजरात के 21 पोर्ट, महाराष्ट्र के 9, आंध्र प्रदेश के 5, तमिलनाडु के 6, कर्नाटक और पुडुचेरी के 2-2, और उड़ीसा, अंडमान-निकोबार, केरल और गोवा के एक-एक बंदरगाह शामिल हैं। ये खामियां ही आतंकी समूहों की ताकत बन सकती हैं।
पिछले साल ही खुफिया ब्यूरो ने आगाह किया था कि देश के अलग-अलग राज्यों में करीब 203 बड़े बंदरगाहों से इतर या छोटे बंदरगाहों में से 75 पर कोई विशेष सुरक्षा बल मौजूद नहीं है। इसके अलावा 45 बंदरगाहों पर परिचालन नहीं है। परिचालन न होने वाले बंदरगाहों को घाट के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इन बंदरगाहों पर न सीसीटीवी कैमरे लगे हैं और कुछ पर तो एक्सरे मशीन तक नहीं है। संचार का इनकमिंग-आउटगोइंग रिकार्ड नहीं है। पहरेदारी के लिए अंदर और बाहर ट्रैक तक नहीं बने हैं। समय-समय पर मॉक ड्रिल का अभाव है। अकसर बंदरगाहों का इस्तेमाल मछली पकडऩे के काम में होता है जबकि बंदरगाहों को ऐसे कामों से निषिद्ध क्षेत्र के रूप में घोषित कर देना चाहिए। पोर्ट पर विदेशियों के संबंध में यथा उनका नाम, पासपोर्ट की जानकारी, रुकने का समय और उद्देश्य का रिकार्ड तक नहीं रखा जाता। न कर्मचारियों के टिफिन बॉक्स की पूरी जांच होती है। गौरतलब है कि इन खामियों का खुलासा करते हुए गृह मंत्रालय की संसदीय समिति की रिपोर्ट में इस बात पर अचम्भा जाहिर किया कि मुंबई हमले के बाद भी देश में 187 छोटे बंदरगाहों पर सुरक्षा में बड़ी खामियां हैं।
हमारी समुद्री सीमा 7516 किलोमीटर लम्बी है जो देश के 9 राज्यों और 4 केन्द्र शासित प्रदेशों की सीमा से लगती है। इसमें सबसे ज्यादा 1600 किलोमीटर सीमा अकेले गुजरात में है जबकि 720 किलोमीटर समुद्री सीमा महाराष्ट्र में है। यह हालत तब है जब 10,440 जवान, 143 पोत और 60 एयरक्राफ्ट कोस्टगार्ड के पास हैं। इसके अलावा मुंबई पुलिस के पास तटीय सुरक्षा के लिए कोयना, भीमा, कावेरी और पूर्णा नामक बुलेटप्रूफ बोट हैं। इसमें संदेह नहीं है कि नवम्बर 2008 के बाद भारतीय तटरक्षकों को काफी सुविधाएं मुहैया करायी गईं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार इंडियन कोस्ट गार्ड की कार्यप्रणाली लचर है। एक हजार टन वजनी व्यावसायिक जहाज एमवी पविट और 9000 टन वजनी जहाज एमवी विजडम के मुंबई के जुहू बीच पर डूबने की घटनाएं इसकी सबूत हैं।
असल में बंदरगाहों की सुरक्षा की दृष्टि से आज सैकड़ों की तादाद में बड़़ी नौकाएं, इंटरसेप्टर नौकाएं, मरीन ऑपरेशन सेन्टर, इन्पलेटेबल नौकाओं की बेहद जरूरत है। विशेष श्रेणी की 75 नौकाओं से कुछ नहीं होने वाला, जिनके निर्माण का जिम्मा हाल ही में गोवा शिपयार्ड लिमिटेड को सौंपा गया है। यह बात दीगर है कि सरकार अब छोटे बंदरगाहों की सुरक्षा में सेंध की संभावना को देखते हुए और समुद्री इलाकों की निगरानी के लिए 150 से ज्यादा आधुनिक खुफिया उपकरणों से लैस समुद्री नौकाएं तैनात करने पर विचार कर रही है।
भारतीय नौसेना की चुनौतियों का पुनर्विचार कर सामना करने के लिए और एकल बिंदु नेशनल मैरीटाइम की स्थापना करने के लिए ब्ल्यूरिबन टॉस्क फोर्स का गठन करना चाहिए। इसी टॉस्क फोर्स पर तटीय सुरक्षा का पूरा दारोमदार होना चाहिए। साथ ही उन संस्थानों को चिन्हित किया जाना चाहिए जो तटीय सुरक्षा और निगरानी में चूक के लिए जिम्मेदार हैं। भारतीय नौसेना देश की दो लाख नावों में ÓपेइसÓ यानी पायलट ऑटोमेटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम लगाने जा रही है ताकि देश की समुद्री सीमा के 12 नॉटिकल मील तक तटरक्षक बल द्वारा निगरानी रखी जा सके। अब देखना यह है कि सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी इस योजना को कब तक अपनी मंजूरी देती है।