पाक से ज्यादा घातक चीनी छद्म युद्ध

india and chinaपुष्परंजन। क्या सचमुच 19 करोड़ 39 लाख की आबादी वाले पाकिस्तान से, एक अरब, 34 करोड़ की आबादी वाला भारत लड़ रहा है? सिफऱ् भारत की जनता को खुला छोड़ दिया जाए तो उसे हमारे लोग चींटियों की तरह रौंद देंगे। मगर, इस पूरी लड़ाई में असल खलनायक को देखते हुए भी हम अनदेखा कर रहे हैं। चीन ने एक बार फिर ‘जैश-ए-मोहम्मदÓ के सरगना मसूद अज़हर को आतंकी घोषित किये जाने के भारतीय प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में ब्लॉक किया है। इससे यह साबित होता है कि पाकिस्तानी आतंकियों को सक्रिय करने में चीन की बड़ी भूमिका रही है। मुंबई हमले के बाद, 2001 में संयुक्त राष्ट्र ने ‘जैश-ए-मोहम्मदÓ को प्रतिबंधित घोषित किया था। यह कितना हास्यास्पद है कि एक आतंकी संगठन को संयुक्त राष्ट्र ने ‘बैनÓ किया और उसका सरगना चीन की नजऱ में संत बना हुआ है। यही चीन आतंकवाद के विरुद्ध बिगुल बजाता है।
दरअसल पाकिस्तान में लड़ाई हम चीन से लड़ रहे हैं। उसके छोटे-छोटे उदाहरण हैं। पाकिस्तान आज की तारीख में चीन की बैसाखी पर खड़ा है, इसे दुनिया जानती है। पांच साल पहले, अगस्त 2011 में पाकिस्तान पहला संचार उपग्रह ‘पाकसेट-वन आरÓ चीन की मदद से छोड़ पाया था। चीन ने इसके लिए पूरी तकनीकी सहायता दी थी और उस संचार उपग्रह पर पाकिस्तानी ठप्पा लगाकर शिचांग प्रक्षेपण केंद्र से छोड़ा था। चीन यदि पाकिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम से पीछे हट जाए तो भारत के इसरो की तर्ज पर बना पाकिस्तानी ‘सुपरकोÓ एक मामूली-सा ‘ट्रांस्पोंडरÓ बनाने की हालत में नहीं है। पाकिस्तान के पास परमाणु हथियारों का जो जख़ीरा जमा है, दरअसल वे चीन के ‘एटमी वेयरहाउसÓ हैं, जहां पेइचिंग ने कबाड़ माल जमा कर रखा है। चीन पीछे हट जाए तो आरामतलबी के आदी पाकिस्तानी वैज्ञानिक और तकनीशियन अपने दम पर लंबी दूरी तक मार करने वाली तोप नहीं बना सकते।
2016 के आखिऱ तक चीन ने पाकिस्तान को 10400 मेगावाट बिजली मुहैया कराने का संकल्प किया था। उड़ी हमले के बाद भारत ने जो रुख़ अपनाया, उससे चीन को अपने मंसूबे पर पानी फिरता दिख रहा है। इसी के दबाव के वास्ते चीन ने ब्रह्मपुत्र की एक शाखा, शियाबुकू नदी की जलधारा मोडऩे का ऐलान किया है। शियाबुकू का पानी चीन के ‘लालहो जल विद्युत प्रोजेक्टÓ के काम आएगा, जिसे 2019 तक तैयार करना है। ‘लालहो हाइड्रो प्रोजेक्टÓ तिब्बत के शिगासे में है।
मई 2013 में चीन ने पाक के कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) में नीलम-झेलम 959 मेगावाट जल विद्युत परियोजना के लिए 2.89 अरब डॉलर लगाने की घोषणा कर दी थी। 2013 में चीनी प्रधानमंत्री ली खछियांग नई दिल्ली आये थे और उन्हें भारत की इस चिंता से अवगत करा दिया गया था, लेकिन फिर भी मुजफ्फराबाद से लगी नीलम-झेलम परियोजना पर काम रुका नहीं। 2016 में ये परियोजना पूरी करनी है। इससे पहले 2010 में ‘पीओकेÓ के 316 मीटर ऊंचे कोहाला हाईड्रो प्रोजेक्ट के लिए 1.10 अरब डॉलर की राशि चीन ने मंजूर की थी। उस समय के चीनी प्रधानमंत्री वेन चियापाओ को यह बताया जा चुका था कि भारत इसे स्वीकार नहीं करता लेकिन ‘कोहाला हाईड्रो प्रोजेक्टÓ पर काम रुका नहीं। बल्कि चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर में सात सौ किलोमीटर सड़कें बनानी शुरू कर दीं। उन दिनों सीमा पार से यही संदेश आया कि भारत विरोध करता रहे, चीन का काम पाकिस्तान में चलता रहेगा।
क्या हमें इसके विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र या हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) जाना चाहिए था? भारतीय थिंक टैंक का एक हिस्सा मानता था कि संयुक्त राष्ट्र में इसके विरुद्ध जाने का मतलब है, ख़ुद-ब-ख़ुद पाकिस्तान के बिछाये जाल में फंसना। क्योंकि पाकिस्तान किसी भी तरह कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना चाहता है। ‘पीओकेÓ में अभी पाकिस्तान और चीन, भारत को उकसाने वाली ऐसी कई परियोजनाओं को लेकर आएंगे। इसका इलाज चादर ओढ़कर सोना नहीं है।
पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश के ज़रिये चीन सिफऱ् हमारे देश में आतंकवादी नहीं भेज रहा है, उसने अपने सस्ते बिना गारंटी वाले कबाड़ माल भारतीय बाज़ारों में ठूंस-ठूंस कर यहां के कुटीर उद्योग को ध्वस्त कर रखा है। एसोचेम की रिपोर्ट है कि भारत में खिलौना बनाने वाले साठ से सत्तर फीसदी उद्योग चीन के कारण बंद हो चुके हैं। सस्ते चीनी माल पर हमारे कारोबारी इतने आश्रित हो चुके हैं कि सूई से लेकर शौचालय तक की शीट चीन से मंगा रहे हैं और उस पर भारतीय ब्रांडों की मुहर लगाकर बाज़ार में बेच रहे हैं। तब हमारे राष्ट्र प्रेम को कहां लकवा मार जाता है?
जो लोग ‘भारत माता की जयÓ के गगनभेदी नारे लगाते हैं, वे चीनी माल को रोकने के विरुद्ध देशव्यापी अभियान क्यों नहीं चलाते? वंदे मातरम का नारा जो लोग लगाते हैं, उनमें से कितनों को पता है कि पराधीन भारत में विदेशी माल के बहिष्कार और स्वदेशी अपनाओं के लिए यह नारा चेतना जगाने का काम कर रहा था। मगर, अफसोस कि सस्ते चीनी माल के आगे सब कुछ सिफर हुआ जा रहा है। चीनी पटाखों के कारण शिवकाशी के कितने लाख श्रमिक सड़क पर आ गये, यह सर्वे का विषय है। दीवाली और दूसरे धार्मिक अवसरों पर जिन मूर्तियों की पूजा हम कर रहे हैं, वे ‘मेड इन चाइनाÓ हैं। चीन में बने गणेश जी, लक्ष्मी जी, शंकर भगवान और दूसरे देवी-देवताओं के आगे शीश नवाने पर न तो शिवसेना को आपत्ति है, न ही हिंदू धर्म के ठेकेदारों को।
चीन, भारत के विरुद्ध पाकिस्तान से भी ख़तरनाक साजिश रच रहा है, जिसके आगे हमारे कारोबारी और श्रमिक हथियार डाल चुके हैं। क्या भारत में केवल वही चीनी माल नहीं बिकना चाहिए जो आयात लाइसेंस के ज़रिये यहां आ रहा है और जिसकी पक्की रसीद कट रही हो? अपरोक्ष रूप से हमने चीनी उद्योग को समृद्ध किया है और प्रधानमंत्री मोदी के ‘मेक इन इंडियाÓ कार्यक्रम को ध्वस्त किया है। उसके बरअक्स, चीन में कोई बिना आयात लाइसेंस वाले भारतीय माल को बेचकर तो दिखा दे। ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स डॉट कॉम की सूचना दिलचस्प है। जिसके अनुसार,’ फरवरी 2014 में चीन ने भारत को 23 लाख 26 हज़ार 991 डॉलर का माल निर्यात किया था जो अगस्त 2016 में बढ़कर 56 लाख, 18 हज़ार, 919 डालर का हो गया।Ó चीनी आयात के ये वो आंकड़े हैं, जो मोदी शासनकाल के हैं, और एक नंबर के रास्ते से मंगाये गये हैं। नेपाल, पूर्वोत्तर के रास्ते से आ रहे दो नंबर के चीनी माल का कोई हिसाब नहीं है। क्या सचमुच, हम चीन जैसे खिलाड़ी से लडऩे की स्थिति में हैं?