अमेरिका में ट्रंप काल

trump1उतार-चढ़ाव और कटुता से भरे चुनाव प्रचार अभियान के बाद डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति चुन लिए गए। उन्होंने न केवल अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलरी क्लिंटन को भारी अंतर से पराजित किया, बल्कि संसद के दोनों सदनों में अपनी पार्टी का बहुमत भी सुनिश्चित कर लिया। इस लिहाज से ट्रंप की अप्रत्याशित जीत बराक ओबामा की पिछली जीत से ज्यादा बड़ी है।
बहरहाल, अब सवाल इन चुनाव नतीजों की अलग-अलग तरह से की जा रही व्याख्याओं को परखने का नहीं, इस तथ्य को स्वीकार करके आगे बढऩे का है कि ट्रंप विश्व के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं। अब तक उनका जो व्यक्तित्व सामने आया है, उसे लेकर दुनिया में कई तरह की आशंकाएं-कुशंकाएं चल रही हैं। लेकिन एक अच्छी बात गौर करने लायक है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से डॉनल्ड ट्रंप की करीबी बताई जाती रही है।
जिस तरह आज सीरिया और यूक्रेन में अमेरिकी तथा रूसी सैन्य हित एक-दूसरे से टकरा रहे हैं, उसे देखते हुए किसी भी पल एक छोटी सी चिंगारी किसी बड़े अग्निकांड का रूप ले सकती है। इसे देखते हुए ट्रंप और पुतिन की नजदीकी दुनिया के लिए एक बड़ी राहत की बात है। दोनों नेता आपसी समझ का फायदा उठाते हुए टकराव टालने वाला कोई फॉर्म्युला ज्यादा आसानी से निकाल सकते हैं।
चूंकि ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान बार-बार कहा कि उनका जोर दुनिया भर में अपनी नाक घुसेड़ते रहने के बजाय घरेलू मामलों पर ध्यान केंद्रित करने पर रहेगा, इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वक्त में अमेरिका विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मसलों में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करेगा। वैश्विक मामलों में अमेरिकी हित इस कदर समाहित हैं कि इन्हें पूरी तरह भुलाना किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए संभव नहीं है, लेकिन अगर दखलंदाजी की अमेरिकी प्रवृत्ति में कमी आती है तो यह भी कोई छोटी बात नहीं होगी।
जहां तक भारत और अमेरिका के आपसी रिश्तों की बात है, तो अब तक उजागर हुई ट्रंप की प्राथमिकताओं से अच्छे संकेत ही सामने आ रहे हैं। वे खुद एक कामयाब बिजनसमैन हैं, इसलिए उनसे यह उम्मीद स्वाभाविक है कि वह ठोस हितों से संचालित होंगे और वैचारिक आग्रहों पर आधारित टकराव के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं बनने देंगे।