कब मिलेगी मुल्क को काले अंग्रेजों से आजादी

kisan sookhaविमल शंकर झा। आजादी की लंबी लड़ाई के बाद हमारे देश में सत्तर सालों से एक और जंग चल रही है । यह है यह लड़ाई है गरीबी के खिलाफ जो शोषक और शोषितों के बीच चल रही है । पिछले पचास सालों में यह जंग 1990 के आर्थिक उदारीकरण शुरु होने के बाद से तेज हो चली है । अपने ही मुल्क में अपने ही लोगों के खिलाफ लडऩे लड़ाने की यह लड़ाई जितनी अमानवीय अवैधानिक और अनैतिक है उतनी है घातक भी है । इसके आत्मघाती होने से मुल्क को दूरगामी परिणाम भोगने होंगे । टुकड़े -टुकड़े में अलग -अलग क्षेत्रों में चल रहा वर्ग संघर्ष आगे चल कर घातक हो सकता है । गरीबी की एक बड़ी वजह सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रहा भ्रष्टाचार है । इंदिरा के गरीबी हटाओ से लेकर मोदी की नोटबंदी से गरीबों के जनधन खातों को खरीदे जाने तक गरीबी का मखौल तो खूब उड़ा मगर गरीबी नहीं मिटी । अलबत्ता गरीबी दूर करने बनी योजनाएं नेताओं और उनके गठजोड़ को ही अमीर दर अमीर करती रहीं । आधी सदी में आर्थिक असमानता इस कदर बढ़ी है कि इसने अमीरों और गरीबों के बीच खाई को निरंतर गहरा किया । शोषक और शोषितों के बीच खंदक बढ़ रही है । इसके लिए डायलिसिस पर पड़ी मरणासन्न व्यवस्था के साथ अमरबेल की तरह बढ़ रहा भ्रष्टाचार और इसे बढ़ाने वाले काले अंग्रेज जिम्मेदार हैं । स्वतंत्रता के पहले हम विदेशी हुक्मरान अंग्रेजों से इस आशा में लड़े कि आजादी के बाद गुलाम देश पूरी तरह स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के नए युग में प्रवेश करेगा । मगर लाखों लोगों की कुर्बानी के बाद करोड़ों देशवासियों का सपना लहूलुहान होते देर नहीं लगी । हमें महज भौगोलिक, संप्रभु और प्रशासनिक स्वतंत्रता ही मिली, बाकी तो स्थिति पहले से भी बद से बदतर होती जा रही है । गोरे अंग्रेज तो चले गए काले अंग्रेज उनसे भी खतरनाक है जो अपने ही मुल्क को विदेशी हमलावरों की तरह लूटने खसोटने में लगे हुए हैं । इन सफेदपोशों का लूटपाट का तरीका बदल गया है । इस लूट का ताजातरीन प्रमाण नोटबंदी के बाद काले धनकुबेरों के गुप्त खजाने से निकल रही काली कमाई है । लाखों करोंड़ों की बजबजा रही इस ब्लैक मनी में चोरों और डाकुओं में सत्तारुढ़ भाजपा और 50 साल राज करने वाली कांग्रेस से लेकर तमाम दलों के नेताओं समेत अफसर, व्यवसायी, उद्योगपति, बिल्डर, ठेकेदार, कार्पोरेटर, दलाल, शराब-खनिज माफिया आदि अधिकारसंपन्न लोग शुमार हैं । इनके पास से बंद हो चुके लाखों करोड़ों के हजार और पांच सौ के नोट बरामद हो रहे हैं । सियासी नेताओं और उद्योगपतियों के इसी तबके के अरबों रुपए विदेशी बैंकों में जमा हैं जिसे देश में लाकर पंद्रह लाख हर भारतीय की जेब में डालने का वादा कर मोदी सरकार सत्ता में काबिज हुई थी । अब तक तीन लाख करोड़ से अधिक काली कमाई या तो बरामद हो चुकी है या फिर काले चोर नष्ट कर चुके हैं । पांच लाख करोड़ को दो सौ टन सोना और चालीस फीसदी कमीशन जैसे तरीकों से वाईट मनी में बदल चुके हैं । हाल में दो सौ करोड़ नोटों को पैंतीस परसेंट कमीशन में बदलने के बड़े घोटाले में दो लोगों को ईडी ने पकड़ा है । यह आंकड़े इस बात का सबूत हैं जिसमें कहा जाता रहा है कि अंग्रेजो ने दो सौ सालों में इस मुल्क को जितना लूटा उससे कई गुना स्वतंत्रता के बाद सत्तर सालों में सियासी दलों के नेताओं और उनके लोगों ने लूट डाला । बरामद काली कमाई से आप यह अंदाज लगा सकते हैं कि भ्रष्टाचारियों की यह फौज किस तेजी से अवाम की गाढ़ी कमाई पर डाका डाल रही है । जनता हंसें कि रोए कि यह पतित जमात पसीना बहाने वाले किसान, मजदूरों और ईमानदार आम लोगों को मंचों और चैनलों पर नैतिकता की नसीहत देती हैं । इन भ्रष्ट सियासी लोगों के मुंह से नैतिकता की बात सुन ऐसा ही लगता है जैसे कोई वृहन्नलला दर्जनभर बच्चे पैदा करने का दावा करे । सियासतमंदों का इन सालों में देश में विकास,सुशासन और सुराज के नाम पर एक सूत्रीय अभियान ही चलता रहा भ्रष्टाचार बढ़ाओ अभियान । हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे । सरकारों के लिए विकास देश के लिए जरुरत नहीं बल्कि कमीशन के लिए उनकी मजबूरी हो गया है । केंद्र और राज्यों की सभी सरकारें विकास के नाम पर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी रहीं । भ्रष्टाचार शिरोमणियों से घिरे इंदिरा से लेकर मोदी और रमन से लेकर अखिलेश के सुशासन और भ्रष्टाचार की चिल्लपों कुछ इसी तरह हैं जैसे – जड़े फे्रम के पीछे टंगे हुए हैं ब्रह्मचर्य के कड़े नियम, उसी फे्रम के पीछे चिडिय़ा गर्भवती हो जाती है । चाहे कांग्रेस हो या भाजपा । सपा हो या बसपा एडीएमके हो या फिर एआईएडीएमके ममता हो या रेड्डी सभी विकास के नाम पर भ्रष्टाचार करने और इसे बढ़ाने में लगे हुए हैं । ललित मोदी के भगाने में वसुंधरा सुषमा से लेकर मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाल छत्तीसगढ़ का पीडीएस घोटाला तक भ्रष्टाचार महासागर की तरह हिलोरे मार रहा है । छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा के लोग तेरह सालों में रोड़पति से लखपति करोड़पति और अरबपति बन चुके हैं । पार्टी में हर दूसरा कार्यकर्ता ठेकेदार या फिर दलाल है । ईमानदारी का राग अलापने वाले प्रधानमंत्री मोदी बताएंगे कि सत्तर सालों के चोरों के सरदार के साथ इन चार लाख चोरों के गुप्त खजाने तक कब पहुंचेंगे । दीगर दलों की तरह भाजपा ने भी 5 सौ करोड़ के चुनावी चंदे से लोकसभा चुनाव लड़ा है जिसमें मोदी भी चार्टर प्लेन से तूफानी दौरे किए हैं । आखिर यह पैसा कहां से आया ? जाहिर है, ये पब्लिक है सब जानती है । वह यह जानती है कि हर दल दलदल में आकंठ डूब चुका है सरकारें बुहराष्ट्रीय कंपनियों की तरह चलाई जा रही हैं । पिछले चालीस सालों में दो हजार से अधिक घोटाले इस बात के प्रमाण हैं । पचास सालों में हर विकास योजनाओं की यदि गैर सरकारी एजेंसी से जांच करवाई जाए तो एक भी योजना भ्रष्टाचार रहित नहीं निकलेगी । खुद प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने स्वीकार किया था कि रु पए में 12 पैसे ही जनता तक पहुंचता है । यही बात तीन साल पहले प्रधानमंत्री के समतुल्य राहुल गांधी और इसके बाद असम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात का समर्थन किया था ।