यूपी चुनाव में चार पूर्व मुख्यमंत्रियों की साख दांव पर

ex cmलखनऊ। राजनीति में परिवारवाद को लेकर चाहे जितनी भी बात की जाए, लेकिन कोई दल इससे अछूता नहीं रहा। राजनीति दलों में वंशवाद अपनी जड़े मजबूत कर चुका है। बात पूर्व मुख्यमंत्रियों की करें तो उनके परिवार भी उस बार चुनाव में दम दिखाने को तैयार है। कल्याण सिंह हो या राजनाथ सिंह या मुलायम सिंह हो राजनीति में इनके परिवारों पर दांव लगाना शायद आसान माना जाता है। हालांकि भारतीय राजनीति में परिवारवाद की बुनियाद आजादी के बाद गठित पहली सरकार के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के समय ही रख दी गयी थी। नेहरु का पुत्री मोह किसी से छिपा नहीं था। नेहरु के बाद इंदिरा गांधी खुद को कांग्रेस का असली उत्तराधिकारी मानती थीं। वहीं अगर बात उत्तर प्रदेश की करें तो यहां पर रह चुके मुख्यमंत्रियों का परिवार भी इस चुनाव में सिर चढ़कर बोल रहा है। आइए एक नजर डालते हैं कुछ ऐसे नेताओं पर जिनका टिकट पार्टी के परिवारवाद के विरोध के दावों पर सवाल खड़ा करता है।
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह की नई पीढी ने सियासत में एंट्री की है। इनकी तीसरी पीढ़ी के रूप में पौत्र संदीप सिंह राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं। संदीप सिंह अपने दादा और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की राजनीतिक विरासत को और मजबूत करने के लिए मैदान में हैं। इसके लिए भाजपा ने उन्हे अतरौली से प्रत्याशी घोषित किया है। लोधी बिरादरी के सहारे ही संदीप सिंह अतरौली से अपना दम भरेंगे। संदीप कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह के सुपुत्र हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह केंद्रीय गृहमंत्री हैं। उनके कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह अपने हिसाब से माहौल बनाने में माहिर है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह यूपी बीजेपी के महासचिव थे। पार्टी ने उन्हें नोएडा से टिकट दिया है। पंकज लम्बे समय से राजनीति में सक्रिय हैं लेकिन उन्हें विधानसभा का टिकट पहली बार मिला है। उन्हें लोकसभा चुनाव में मोदी के मंचों पर भी कई बार देखा जा चुका है।
साल 1977 में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले मुलायम सिंह यादव को राम मनोहर लोहिया का समाजवाद इतना भाया कि उन्हीं के आदर्शों पर चलते हुए वे जनप्रिय नेता बन गए। समाजवाद के नारे ने रगों में ऐसी राजनीति भरी, जो बीतते वक्त के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंच रही है। उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के परिवार को वैसे भी देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार माना जाता है।
मुलायम सिंह यादव की मेहनत और लगन से खड़ी हुई समाजवादी पार्टी में उनके परिवार के 16 सदस्य पहले से ही राजनीति में सक्रिय हैं। इसी संख्या की वजह से मुलायम परिवार देश का सबसे बड़ा सियासी परिवार बना हुआ है। आलम ये है कि उत्तराखंड और हिमाचल जैसे राज्यों में जितनी लोकसभा सीटें हैं, उतने सांसद उनके घर में ही हैं।
मुलायम आज़मगढ़ से लोकसभा में हैं, तो बहू डिंपल यादव कन्नौज से। बेटा अखिलेश यादव सूबे का सीएम है, तो भाई रामगोपाल यादव राज्यसभा में हैं। दूसरे भाई शिवपाल यादव राज्य में पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं, तो दो भतीजे धर्मेंद्र यादव बदायूं और अक्षय यादव फिरोजाबाद से एमपी हैं। अब बड़े भाई का पोता तेज़ प्रताप यादव भी मैनपुरी से लोकसभा में पहुंच गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा राजधानी लखनऊ से कैंट से विधायक हैं और भाजपा ने उन्हें लखनऊ कैंट से टिकट दिया है। हालांकि भाई विजय बहुगुणा पहले कांग्रेस में थे और अब बीजेपी में चले गये और उत्तराखंड की सक्रिय राजनीति में खासा दखल रखते हैं।