करप्शन ज्यों का त्यों

coureptionनोटबंदी के जरिए करप्शन और काले धन के खिलाफ जारी सरकारी जंग में ट्रांसपैरंसी इंटरनैशनल का सालाना करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (2016) भारत के लिए कोई खास खुशी की खबर नहीं लाया है। इस सूची में हमारा देश पिछले साल के मुकाबले 76 वें स्थान से खिसक कर 79वें नंबर पर पहुंच गया है। हालांकि गिरावट का कारण इस तथ्य को बताया जा रहा है कि इसमें पिछले साल के मुकाबले आठ देश बढ़ गए हैं। अलबत्ता अंकों के लिहाज से थोड़ी राहत जरूर है क्योंकि पिछले साल मिले 38 के मुकाबले भारत को इस साल 100 में 40 अंक मिले हैं।
बहरहाल, स्थान की गिरावट और अंकों की बढ़त दोनों इतनी मामूली हैं कि इनमें देश के अंदर करप्शन की स्थिति में किसी बदलाव का संकेत नहीं खोजा जा सकता। ट्रांसपैरंसी इंटरनैशनल ने अपने विश्लेषण में ठीक ही कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को लेकर नेताओं के बड़े-बड़े बयानों के बावजूद भारत इस मोर्चे पर कुछ खास प्रगति नहीं कर सका है। अन्ना आंदोलन के दौरान लोगों में भ्रष्टाचार का खात्मा करने की जो उम्मीदें दिख रही थीं, वे अब पूरी तरह जमींदोज हो चुकी हैं। उस समय जिन कुछेक कदमों पर राजनीतिक सर्वसम्मति बन गई थी, उनमें भरपूर पानी मिला दिया गया है, और इन पनियल उपायों पर भी अमल का कोई लक्षण नहीं दिख रहा।
लोकपाल एक्ट पारित होने के बावजूद लोकपाल की नियुक्ति इस सरकार का आधा कार्यकाल निकल जाने के बाद भी नहीं हो पाई है। तब सिटिजंस चार्टर जैसे कदम सुझाए गए थे, जिनके मुताबिक हर महत्वपूर्ण दफ्तर में पब्लिक डीलिंग से जुड़े कामों की सूची इस ब्यौरे के साथ टांगी जानी थी कि किस काम में कितना वक्त लगेगा। उतने वक्त में काम नहीं होने पर संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया जाना था। लेकिन यह सुझाव भी फाइलों में गुम होकर रह गया है। यहां तक कि पिछली सरकार के दौरान हासिल सूचना के अधिकार को भी व्यर्थ कर देने की कोशिशें लगातार जारी हैं।
मंत्रियों की डिग्री से जुड़ी सूचनाएं छुपाए रखने की जुगत में विश्वविद्यालय कोर्ट जा रहे हैं। सरकार के स्तर पर ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जा रहा कि लोगों को सूचनाएं उपलब्ध कराने और प्रशासन को इसके लिए जवाबदेह बनाने में उसकी कोई दिलचस्पी है। जब-तब ब्लैक मनी और भ्रष्टाचार के सवाल पर कोई धमाका करने की कोशिशें जरूर की जाती रही हैं। इसी की ताजा कड़ी है नोटबंदी। ट्रांसपैरंसी इंटरनेशनल ने ठीक ही कहा है कि नोटबंदी के दौरान भ्रष्टाचार के सवाल पर आम लोगों के भारी समर्थन के सबूत मिले, लेकिन यह भ्रष्टाचार पर कोई असर डाल सकी है या नहीं, इसका कोई अंदाजा नहीं मिल रहा। बेहतर होगा कि सरकार सुर्खियां बटोरने की मानसिकता से उबरे और छोटे-छोटे लेकिन लोगों की भागीदारी बढ़ाने वाले कदमों के जरिए करप्शन पर काबू पाने की कोशिश करे।