मनरेगा घोटाला: अरबों डकार गये पंधारी और हृदयेश

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विशेष संवाददाता,
लखनऊ। यूपी में नई सरकार का गठन होते ही सोनभद्र के बहुचर्चित मनरेगा घोटाले की जांच तेज हो गई है। सीबीआई ने पिछले एक सप्ताह के दौरान घोटाले की जांच में एक दर्जन से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों को लखनऊ तलब कर उनसे सघन पूछताछ की है। मालूम हो कि सीबीआई ने इस मामले में अब तक पांच मुकदमे दर्ज किए हैं। इस घोटाले में 24 से ज्यादा आईएएस और पीसीएस अफसरों के अलावा दर्जनों गांवों के प्रधान सीबीआई जांच के दायरे में हैं। यूपी में करीब एक दर्जन ऐसे बड़े अफसर थे जिनको बसपा की सरकार ने खुद जांच में दोषी पाया था।
मायावती के शासनकाल में वर्ष 2007 से 2010 तक यूपी में मनरेगा में 25 हजार करोड़ रुपये आवंटित हुए, जिसमें 15 से 20 फीसद तक भ्रष्टाचार की भेंट चढऩे का अंदेशा है। गौरतलब है कि न्यायालय के आदेश पर सीबीआई द्वारा करी जा रही जांच में निचले स्तर के कर्मचारियों से तो पूछताछ की गई लेकिन बड़ी मछलियाँ बचती रही ,लेकिन नई सरकार के गठन के बाद एक बार जांच की गति तेज हो गई है। इस बात की चर्चा जोरों पर है कि घोटाले में शामिल आईएएस अधिकारियों पर जल्द ही गाज गिर सकती है।
नहीं भुला जाना चाहिए कि ईडी ने मनरेगा घोटाले में अगस्त 2014 में ही मनीलांड्रिंग के तहत आठ मुकदमे दर्ज किए थे जिनमे सात जिलों के तत्कालीन डीएम, सीडीओ, परियोजना अधिकारी और खंड विकास अधिकारियों के नाम थी । ईडी ने संतकबीरनगर, कुशीनगर, बलरामपुर, गोंडा, मीरजापुर, सोनभद्र और महोबा में सीबीआई की जांच रिपोर्ट को आधार बनाकर अधिकारियों के खिलाफ कारवाई का मंसूबा बनाया था लेकिन अब तक उनमे से किसी की गिरफ्तारी नही हो सकी। आरोपों के मुताबिक इस घोटाले में न सिर्फ करोडो रुपयों का फर्जी भुगतान किया गया बल्कि सामान की खरीद भी बाजार भाव से ऊंची कीमतों पर की गई।प्रदेश में कई जगहों पर बिना काम कराए भुगतान भी ले लिया गया।बताया जाता है कि कि इस घोटाले में टेंट, खिलौने, स्टेशनरी औजार की खरीद में गड़बड़ी हुई।अलग अलग जिलों में यह घोटाला कैसे कैसे किया गया नीचे देखा जा सकता है।

बलरामपुर में 11 मदों में 181.18602 रुपए की आर्थिक चपत। दोगुने से अधिक दाम में सामान खरीदा गया।
गोंडा में वित्तीय नियमों को दर किनार कर सामग्री खरीदी गयी और आरोपितों को बचाने का प्रयास।
महोबा में ऐसी फर्म को भुगतान हुआ जो लाइसेंसधारी नहीं थे। कैमरा खरीद में लाखों का घोटाला हुआ।
कुशीनगर में जिन अधिकारियों के खिलाफ घोटाले के आरोप प्रथम दृष्टया दिख रहे थे, उनके खिलाफ भी कार्रवाई नहीं हुई।
मीरजापुर में सामान की खरीदारी में फर्जी कोटेशन और अभिलेख के बल पर भुगतान हुआ।
संतकबीर नगर में गैरपंजीकृत संस्थाओं के नाम भुगतान हुआ।
सोनभद्र में घोटाले की तस्दीक होने के बाद भी जांच नहीं हुई।
जिस वक्त आईएएस आरके सिंह सुल्तानपुर के डीएम थे उस वक्त वहां पर मनरेगा घोटाला हुआ था ,अब आर के सिंह सेवानिवृत हो चुके हैं लेकिन अब तक उन पर कोई कारवाई नहीं हुई है ,गाजियाबाद के पूर्व जिलाधिकारी हृदयेश कुमार प्रतिनियुक्ति पर उत्तर प्रदेश में आये हैं इनके काल में हुए घोटाले को लेकर भी कोई कारवाई नहीं हुई । सर्वाधिक चर्चित मामला सोनभद्र के पूर्व जिलाधिकारी पंधारी यादव का है जोकि मुलायम परिवार से आते हैं गौरतलब है कि अकेले सोनभद्र में मनरेगा में 4 अरब का घोटाला हुआ है । लंबे समय तक ईओडब्ल्यू ने सोनभद्र के मनरेगा घोटाले की जांच की थी बाद में ये जांच भी सीबीआई को हस्तांतरित हो गयी थी लेकिन सीबीआई के हाथ सोनभद्र में महज बीडीओ स्तर के ही आरोपी आये। सीबीआई के एक अफसर के मुताबिक मनरेगा घोटाले में किसी भी डीएम के खिलाफ साक्ष्य अभी तक नहीं मिले हैं सीडीओ भी संलिप्त नहीं पाए गए हैं हम सिर्फ कागजों पर ही भरोसा करते हैं अगर साक्ष्य मिलेगा तो बिलकुल शिकंजा कसा जाएगा। बहराहाल देखना है कि अरबों रुपये के मनरेगा घोटाले पर योगी सरकार किस प्रकार के कदम उठाती है। सीएम योगी के तेवरों से एक बात तो तय है कि घोटाले में फंसे अफसरों को बचाव का रास्ता नहीं मिलेगा।