एमपीसी पर आरबीआई गवर्नर का फैसला ही अंतिम

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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआईं) केंद्र सरकार से कह सकता है कि इंडियन फाइनैंशल कोड के नए मसौदे में मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) के जिस ढांचे का प्रस्ताव किया गया है, वह ठीक नहीं है। सूत्रों ने बताया कि महंगाई से निपटने और बेंचमार्क रेट्स तय करने के लिए एक पॉलिसी कमिटी बनाने पर तो भारतीय रिजर्व बैंक सरकार के रुख से सहमत है, लेकिन वह सरकार को यह समझाने की कोशिश करेगा कि मॉनिटरी पॉलिसी पर भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर की बात ही अंतिम मानी जानी चाहिए।
भारतीय रिजर्व बैंक अपने इस रुख का आधार उर्जित पटेल कमेटी की सिफारिशों को बनाएगा। मॉनिटरी पॉलिसी बनाने में कमिटी की रिपोर्ट का दर्जा अहम हो चुका है और इसके अनुसार अब महंगाई से निपटने के लक्ष्य तय करने में कन्जयूमर प्राइस इंडेक्स को आधार बनाया जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक के रुख की जानकारी देने वाले व्यक्ति ने कहा कि मॉनिटरी पालिसी एक तकनीकी मुद्दा है। इसके लिए विशेषज्ञता की आवश्कता होती है। एमपीसी में जैसे कैंडिडेट्स होंगे, उनके अनुसार निर्णय होगा।
आईएफसी के ताजा मसौदे में सात सदस्यीय मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी के चार सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार सरकार को देने की बात कही गई है। पहले वाले मसौदे में भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर को वीटो का अधिकार दिया गया था, लेकिन ताजा मसौदे में ऐसा नहीं है। इसके उलट उर्जित पटेल कमिटी ने कहा है कि एमपीसी में पांच मेंबर होने चाहिए, जिनमें से दो भारतीय रिजर्व बैंक के बाहर से होने चाहिए। इसमें कहा गया है कि इन दो मेंबर्स का चयन भी भारतीय रिजर्व बैंक करे।
एमपीसी के ढांचे पर भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच सहमति नहीं बन पाई है।