पंचायत चुनाव पर नक्सलियों के आतंक का साया

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विशेष संवाददाता
लखनऊ। नक्सल प्रभावित जिलों में शांति पूर्ण तरीके से पंचायत चुनाव कराना सरकार और निर्वाचन आयोग के लिए कठिन चुनौती है।
नक्सल प्रभावित जिले गाजीपुर , सोनभद्र और मिर्जापुर और आशिंक रूप से चंदौली हैं। इनमें अनेक दुरुह गांव ऐसे भी हैं, जहां अभी तक सड़क नहीं है। इन गांवों में सुरक्षा बलों को गश्त करने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई गांवों में सुरक्षा बल और निर्वाचन आयोग की टीम को कई कई घंटे पैदल सफर भी करना पड़ता है। अनेक गांवों में दूरसंचार के लिए टावर नहीं हैं जिसके चलते मोबाइल सिग्नल नहीं आते हैं। अनेक स्थानों पर टेलीफेान और बिजली का भी अभाव है।
मिर्जापुर मेंं 13 साल पहले नक्सलियों ने पीएसी के एक वाहन को विस्फोटक से उड़ा दिया था जिसमें दो दर्जन से अधिक पीएसी कर्मी मारे गए थे। नक्सलियों ने सोनभद्र, मिर्जापुर और गाजीपुर के जंगलों में आदिवासियों को धमकाना प्रारम्भ कर दिया है। अनेक गावों में सम्पर्क मार्ग,सड़क, अस्पताल, और स्कूल आदि का अभाव रहा है। पिछले कई सालों से केद्र सरकार की योजना के बाद केद्रीय सुरक्षा बल और पीएसी ने ग्रामीणों और आदिवासियों के लिए चिकित्सा शिविर लगाया था और अति पिछड़े गावों के विकास के लिए अनेक रचनात्मक कार्य प्रारम्भ किये थे। अभी भी आदिवासी पढ़ाई के बजाए नक्सलियों के साथ जुड़ जाते हैं। नक्सलियों की चेतावनी के बाद अनेक आदिवासी और ग्रामीण पिछले पंचायत चुनाव में मतदान से दूर रहे थे। लोकसभा चुनाव में सुदूर गांवों के ग्रामीणो ने मतदान में भाग नहीं लिया था।
नक्सल प्रभावित जिलों में केंद्र और राज्य सरकार ने विशेष विकास योजनाओं पर कार्य प्रारम्भ किया था। स्थानीय निकाय और पंचायत का निर्वाचन आयोग जल्दी ही पंचायत चुनाव की तिथियां घोषित करने जा रहा है। ऐसे में नक्सल प्रभावित जिलो के गांवों मे नक्सली संगठन सक्रिय हो गए हैं। गांव में आपस में चल रही लड़ाई के बाद हिंसा की घटनाएं भी चुनाव के दौरान हो सकती हैं। पड़ोसी राज्य से नक्सली संगठनों के संबंध हैं। नक्सलियों ने ग्रामीणों को चुनाव प्रक्रिया में भाग न लेने के लिए धमकी देना प्रारम्भ कर दिया है।
प्रदेश के सभी 45 हजार बूथों के लिए करीब 90 हजार से अधिक पुलिस कर्मी चाहिये। इसमें नक्सली क्षेत्र भी शामिल हैं। पुलिस विभाग के अधिकारियों ने कहा कि नक्सल प्रभावित जिलों में तैनात पीएसी को ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात किया जा सकता है। इसके अलावा केंद्रीय सुरक्षा बल की केंद्र सरकार से मंाग की जा सकती है। वहीं भाजपा ने यूपी पुलिस पर से ही अपना विश्वास उठा दिया है और यूपी के प्रदेश अध्यक्ष डा.लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने मांग की है कि केन्द्रीय बल लगाये जायें।
सरकार की कोशिश है कि नक्सल प्रभावित जिलों के ग्रामीण और आदिवासी मतदान मे भाग लें इसके लिए ग्रामीणों का विश्वास जीता जाएगा। नक्सली संगठनों का असर कितना कम किया जाएगा यह आने वाला समय बताएगा। इतना तो तय है कि नक्सली धमकियोंं के बाद हिंसा से इंकार नहीं किया जा सकता है।