राजभवन और सरकार में तनातनी की पुरानी रवायत

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योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में एक बार फिर राजभवन और सरकार आमने-सामने है। यह भी महज संयोग ही है कि यह टकराव सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और राजभवन के ही बीच है। राज्यपाल राम नाईक द्वारा कानून व्यवस्था सहित अन्य मुद्दों को लेकर सरकार के खिलाफ की जा रही टिप्पणियों और सरकार की कार्यशैली को लेकर प्रेसीडेंट को लिखे गये पत्र पर सपा नेतृत्व इतना आग बबूला है कि उसने यहां तक कह दिया कि अब अगर उसके कार्यकर्ता हद पार करते है तो इसकी जिम्मेदारी राज्यपाल की होगी।
सपा के नेशनल महासचिव प्रो. रामगोपाल द्वारा कल दिल्ली में राज्यपाल रामनाईक के प्रति की गई टिप्पणी पर उन्होंने (राज्यपाल) कुछ भी बोलने से मना किया है लेकिन सपा के नेता व कार्यकर्ताओं को लगता है कि इस मुद्दे पर चुप बैठने वाले नहीं है। हालांकि राज्यपाल और राजभवन के प्रति इस तरह समाजवादी पार्टी के विरोध का यह रवैया नया नहीं है। रामनाईक से पहले इसी तरह का विरोध यहां पूर्व राज्यपाल टीवी राजेस्वर और विष्णुकांत शास्त्री को झेलना पड़ा था। जबकि राज्यपाल सूरजभान को मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह की शिकायत पर अपने पद से हटना पड़ा था। अखिलेश यादव के नेतृत्ववाली सपा सरकार से पहले मुलायम सरकार में रामपुर के जौहर विश्वविद्यालय को लेकर उस समय राज्यपाल रहे टीवी राजेस्वर और मो.आजम खां और उनके बीच जो तल्खी रही वह सदन से लेकर सार्वजनिक मंचों तक दिखाई दी। दोनों के बीच तल्खी इतनी बढ़ी कि उस समय राज्यपाल रहे श्री राजेस्वर ने मुख्यमंत्री रहते मुलायम सिंह यादव और मो.आजम खां दोनों को राजभवन तलब किया और इस बावत दोनों से सफाई मांगी। जौहर विश्वविद्यालय का मो.आजम खां को आजीवन चांसलर बनाए जाने का प्राविधान किया गया था। उस समय राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 175 का हवाला देते हुए विधानसभा को यह संदेश भेजा था कि विधेयक को पारित न किया जाए। इस मुद्दे पर उस समय की मुलायम सरकार और राजभवन के बीच करीब डेढ़ साल तक तकरार रही। 2005 में जब सपा की मुलायम के नेतृत्व में सरकार चल रही थी तो पूर्वाचल में दिमागी बुखार के इलाज में लापरवाही पर जब राज्यपाल ने उगुंली उठाई तो दोनों संस्थाओं के बीच विवाद सतह पर आ गया। इसके अलावा 2005 में दंगाग्रस्त मऊ को दौरा करके राज्यपाल टीवी राजेस्वर ने जब मुलायम सिंह यादव को राजभवन बुलाकर विधायक मुख्तार अंसारी के विरूद्व कार्रवाई करने और दंगे की न्यायिक जांच कराए जाने की बात कही तो सपा के सांसदों ने राज्यपाल टीवी राजेस्वर की शिकायत उस समय के प्रेसीडेंट से कर दी थी। सितंबर 2005 में कुलपतियों के खिलाफ शिकायतों पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के बीच काफी तल्खी आ गई थी। 2006 में राज्यपाल ने अपराधिक प्रवृति के लोगों को सरकारी सुरक्षा देने और निकाय चुनाव में धांधली की शिकायत जब केन्द्र को भेजी तो भी मुलायम सिंह यादव उनसे नाराज हो गए। प्रदेश में जब राज्यपाल रोमेश भंडारी हुआ करते थे तो उस समय सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में राजभवन का घेराव हुआ था।
ऐसा नहीं कि टकराव राजभवन और सपा सरकार के बीच ही रहा। वर्ष 2008 में जब प्रदेश में मायावती के नेतृत्व में बसपा की सरकार थी तो सुल्तानपुर कल आज और कल पुस्तक में नेहरू गांधी परिवार की तारीफ करने वाले अफसरों के निलंबन की कार्रवाई को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से वापस लेने को कहा था लेकिन उस समय मुख्यमंत्री रही मायावती ने अपनी इस कार्रवाई को जायज ठहराया था। यही नहीं राजभवन और बसपा सरकार के बीच तल्खी तब और बढ़ गई जब मुख्यमंत्री रही मायावती ने केन्द्र सरकार की खुली आलोचना शुरू कर दी थी।
बसपा सरकार में जब राज्यपाल ने बुन्देलखंड का दौरा किया तो मुख्यमंत्री रही मायावती को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने कहा कि यदि उन्हे इतनी ही चिंता है तो अपने पद का उपयोग कर केन्द्र से बुन्देलखंड के लिए स्पेशल पैकेज दिलाए। आतंकी हमलों के लिए जब राज्यपाल ने उस समय प्रदेश के खुफियातंत्र पर सवाल उठाया तो मुख्यमंत्री मायावती ने उस समय ठीकरा केन्द्र के सिर फोड़ दिया था। प्रदेश में एक दौर ऐसा भी आया जब कल्याण सिंह के नेतृत्च में भाजपा की सरकार थी और राज्यपाल सूरजभान हुआ करते थे। राज्यपाल सूरजभान पूरे प्रदेश में स्पेशल कपोनेंट प्लांट लागू कराना चाहते थे। इसके लिए जब उन्होंने कल्याण सिंह पर दलितोत्थान लागू न करने का आरोप लगाया तो दोनों आमने सामने आ गए। सरकार की कार्यशैली से नाराज होकर अधिकारियों को राजभवन बुंलाकर समीक्षा करने लगे। यह बात कल्याण सिंह नागवार गुजरी। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने राज्यपाल सूरजभान की शिकायत केन्द्रीय नेतृत्व से की तो उन्हे हटना पड़ा।
वर्ष 1997 में जब प्रदेश में गठबंधन सरकार से बसपा ने समर्थन वापस लिया तो राज्यपाल रोमेश भंडारी ने जब कल्याण सिंह को बहुमत साबित करने का मौका दिए बिना जब उनकी सरकार को बर्खास्त कर प्रेसीडेंट रूल लगाए जाने की संस्तुति की तो भाजपा के वरिष्ठï नेता अटल बिहारी बाजपेयी के धरना देने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल के हस्तक्षेप से प्रेसीडेंट रूल का निर्णय बदलना पड़ा।