किसानों होशियार: नजर रखे है मोदी सरकार

 

लखनऊ। खेती-किसानी के नाम पर जमीनों का कारोबार करने वाले अब आयकर के शिकंजे में फसेंगे। आयकर विभाग ने प्रदेश के ऐसे 2000 किसानों की सूची तैयार कर ली है। अब इनकी विस्तृत जांच आयकर विभाग करेगा। कुछ को नोटिस भेजकर पूछताछ शुरू भी कर दी गई है। आयकर विभाग ने फिलहाल बड़े शहरों में पांच बीघा और छोटे शहरों में 10 बीघा जमीन की की बिक्री करने वालों का चिन्हित करना शुरू किया है। ये ऐसे लोग हैं, जिन्होंने जमीनों से बहुत अधिक पैसा कमाया लेकिन न तो उसे घोषित किया न ही उस पर टैक्स दिया। साथ ही ऐसे लोग केंद्र और राज्य से किसानों को मिलने वाले लाभ ले रहे हैं।
आयकर ने तकनीक की मदद से ऐसे लोगों को सटीक तौर पर चिन्हित किया है। इसमें लखनऊ, कानपुर, मेरठ, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, बरेली, मुरादाबाद जैसे बड़े शहरों के अलावा गाजीपुर, फैजाबाद, गोरखपुर, हापुड़, बिजनौर जैसे मध्यम श्रेणी के शहरों में भी ‘किसानी’ के नाम पर जमीनों की जबरदस्त खरीद-फरोख्त हो रही है। आयकर विभाग ने पिछले 2015 के बाद दो सालों के आंकड़ों को खंगाला है। आयकर की खुफिया इकाई, एसेसमेंट इकाई और इनफोर्समेंट इकाई मिलकर इन की तलाश में जुटी हैं।
आयकर विभाग ऐसे लोगों पर नजर रख रहा है, जो किसानी के नाम पर कमाई तो करोड़ों में कर रहे हैं लेकिन न तो टैक्स देते न ही रिटर्न फाइल करते हैं। जमीनों की खरीद फरोख्त में अधिकांश लेन-देन कैश में हो रहा है और किस्तों में पैसा लिया जाता है। इसलिए इसका ब्योरा न तो बैंकों में आ पाता है न ही किसी और रिकार्ड में। हालांकि आयकर अफसरों के सामने समस्या यह है कि जमीनों की बिक्री बाजार भाव पर होती है, जबकि रजिस्ट्री सर्किल रेट पर। बाजार भाव सर्किल रेट से तीन से चार गुना तक अधिक होता है। इसलिए रजिस्ट्री के आधार पर सभी को पकड़ पाना मुश्किल हो रहा है। बावजूद इसके कई ऐसे नाम सामने आए हैं जिन्होंने करोड़ों रुपये जमीनों से कमाए।
आयकर विभाग ने राज्य की रजिस्ट्री विभाग से अब जमीनों की बिक्री का पूरा ब्यौरा आनलाइन लेना शुरू कर दिया है। नए साफ्टवेयर पर हर जमीन की खरीद- बिक्री का ब्यौरा दर्ज किया जा रहा है। इसमें खरीदने-बेचने वाले के नाम, पता, जन्मतिथि, मोबाइल नंबर और पूरा पता के साथ आधार नंबर और पैन भी अनिवार्य कर दिया गया है। इस सॉफ्टवेयर में यह व्यवस्था है जमीन के क्षेत्रफल या लेन-देन के बजट(जैसे 10 या 20 लाख) किसी भी एक प्वाइंट को चिन्हित कर लिया जाता है। इसके आधार पर उन लोगों को शार्टलिस्ट किया जा सकता है जो इस कैटगरी में आए हों या इस तरह लेनदेन किए हों। फिर इनके आधार और पैन के जरिए इनकी पूरी बैंकिंग-इनकम का इतिहास तलाशा जाता है।