आतंकी हमला: इसे चेतावनी समझें

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पंजाब में गुरदासपुर के दीनानगर में हुए आतंकवादी हमले से एक बार फिर जाहिर हुआ कि पाकिस्तान में दहशतगर्दों के हौसले बुलंद हैं और वे भारत को अस्थिर करने का कोई मौका नहीं छोडऩा चाहते। हालांकि भारतीय सुरक्षा बलों ने भारत में भारी तबाही मचाने के उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया और दस घंटे चली मुठभेड़ के बाद उन्हें ढेर कर दिया। आतंकियों ने अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए पंजाब को ही क्यों चुना, यह कहना अभी कठिन है।
एक अनुमान यह है कि वे अमरनाथ यात्रियों पर हमला करना चाहते थे, पर या तो रास्ता भटक गए, या अंतिम समय में अपना इरादा बदल दिया। एक कार हाईजैक से शुरू हुए उनके हमले का तौर-तरीका बहुत कुछ मुंबई हमलों जैसा ही था, पर इस बार वे उतना नुकसान नहीं कर पाए। फिर भी कहीं न कहीं हमारी खुफिया एजंसियों से चूक जरूर हुई है, क्योंकि उनके आने की भनक तक हमें नहीं मिल पाई। पिछले साल भारतीय सेना ने साफ कहा था कि सीमा पर तकरीबन 200 आतंकी भारत पर हमले के लिए घुसपैठ की कोशिश में जुटे हैं। उस समय पाक रेंजर्स ने सीमा पर सीजफायर का जबर्दस्त तरीके से उल्लंघन किया था और फायरिंग की आड़ में आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिश की थी।
संभव है, इस बार की घुसपैठ को भी हाल में सीमा पार से हुई गोलीबारी की आड़ में ही अंजाम दिया गया हो। एक बात तो तय है कि अभी की स्थितियों में पाकिस्तान पर भरोसा करना बेहद मु्श्किल है। वहां प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का कट्टरपंथियों के अलावा अपनी फौज से भी कोई विशेष संवाद नहीं है। ऐसे में वहां भारत विरोधी माहौल गहराता जा रहा है। पिछले दिनों रूस के उफा शहर में दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच जैसी गर्मजोशी नजर आई थी, उसके लिए नवाज शरीफ का जबर्दस्त विरोध हुआ। अगले महीने दोनों मुल्कों के नैशनल सिक्युरिटी एडवाइजर्स की मीटिंग होने वाली है।
पाकिस्तान के कट्टरपंथी डरे हुए हैं कि कहीं दोनों मुल्कों के बीच रिश्ते सुधरने न लगें। लगता है, यह हमला दोस्ती की किसी भी संभावना को कमजोर करने के लिए ही कराया गया है। तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकवादी समूह अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को सीमित करना चाहते हैं और इसमें उन्हें पाकिस्तानी फौज का पूरा समर्थन प्राप्त है। खुद पाकिस्तान सरकार भी देश में अपने पांव टिकाए रखने के लिए भारत विरोधी बयानबाजी का सहारा लेती है। खबर है कि अगले महीने होने वाली रक्षा सलाहकारों की मीटिंग में पाकिस्तान बलूचिस्तान में भारत की भूमिका का मुद्दा उठाएगा।
ऐसे में पाकिस्तान से संबंध सुधारना भारत के लिए प्राथमिकता नहीं हो सकता। हमें दृढ़ता से उसे बताना होगा कि आतंकी हमलों की संभावनाओं को निरस्त किए बगैर हमसे बातचीत की अपेक्षा बेकार है। लेकिन इसके साथ ही हमें अतिरेकपूर्ण प्रतिक्रिया से भी बचना होगा, क्योंकि इससे आतंकवादियों का ही मकसद सधेगा।