पुलवामा बनाम बेरोजगारी भत्ता बनता जा रहा है मुद्दा

विशेष संवाददाता । रोजगार एक मुद्दा बन चुका है तो भ्रष्टïाचार का मुद्दा बरकरार है। सर्जिकल स्ट्राइक टू के बाद राहुल गांधी ने न्याय योजना के तहत बेरोजगारी भत्ता का सबसे बड़ा दांव फेंक कर पहली बार कांग्रेस को फ्रंट फुट में लाने की कोशिश की है। प्रियंका गांधी का पहली बार प्रयाग-काशी की जलयात्रा और अयोध्या दर्शन का प्रोग्राम मायावती-अखिलेश यादव के गठबंधन और दूसरी ओर बीजेपी के लिए कितना नुकसानदेह साबित होगा, वक्त को तय करना है। इन्हीं सब के मध्य नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम यूपी के चक्रव्यूह को भेदने में लगी है जिसका पहला दरवाजा 11 अप्रैल को खुल रहा है। फिलहाल भगवामय माहौल से उबरने के लिए सपा-बसपा और कांग्रेस ने अपनी सारी ताकत झोंक दी है।
भारत की पाक में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक भी चुनावी एजेंडे में दिख रही है। सोशल मीडिया में भारत-पाक का मुद्दा छाया हुआ है। बाकी सब ज्वलंतशील मुद्दे फिलहाल गायब नजर आ रहे हैं और इन्हीं सबके बीच 17वीं लोकसभा का चुनाव का प्रचार शबाब की ओर है। मतलब एक तरफ नरेन्द्र मोदी और दूसरी तरफ शेष सभी। गैरभाजपा दलों को डर है कि मोदी मैजिक फिर से अपना असर दिखाकर यूपी सहित देश को फिर से भगवामय न कर दे। इसी से बचने के लिए कांग्रेस सहित गैरभाजपा दलों ने राज्यों में महागठबंधन किया है। अब चुनाव के लिए चुनावी मैदान सज चुके हैं। यूपी से लेकर सारे देश में आरोप-प्रत्यारोप एवं घात-प्रतिघात का दौर अब और तेज हो चुका है। प्रियंका गांधी बीजेपी को देशव्यापी टक्कर देने के लिए राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस का मोर्चा संभाल चुकी हैं।
प्रयाग से काशी की चुनावी जलयात्रा ने यह भी एहसास करवाया कि प्रियंका अब प्रयाग-काशी को बीजेपी से लडऩे का हथियार बना सकती हैं तो भारत-पाकिस्तान सीमा पर अभी भी युद्ध के बादल उमडऩे-घुमडऩे के कारण महिलाओं का भावनात्मक लगाव भगवा के प्रति बरकरार है। ऐसे में फिलहाल यही माना जा रहा है कि यूपी-बिहार और उत्तराखंड जैसे हिन्दी भाषी राज्यों में जादूगर नरेन्द्र मोदी का मैजिक कांग्रेस सहित अन्य सभी दलों के मंसूबे पर पानी फेर सकता है। नतीजे जो भी निकले,यूपी एक बार फिर देश को अगला पीएम देगा।
यह चुनाव नरेन्द्र मोदी के साथ ही बड़े-बड़े महारथियों के लिए राजनीतिक जीवन-मरण का भी प्रश्न बन चुका है। चाहे वो मायावती हो, चाहे वो ममता हो,चाहे वो महबूबा मुफ्ती हो। तभी मायावती ने बीएसपी के साथ अन्य क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी एवं लोकदल के साथ महागठबंधन किया। जिसका लाभ चुनाव में मायावती के साथ ही अखिलेश यादव एवं अजित सिंह तथा दूसरी ओर कांग्रेस को कितना मिलेगा,यह लोकसभा चुनाव परिणाम से मालूम पड़ेगा। यदि क्षेत्रीय दल बीएसपी-एसपी-लोकदल इस निर्णायक चुनाव में अपेक्षित लाभ उठाने में विफल रहे तो तय है कि आगामी 2024 लोकसभा एवं उससे पहले होने वाले यूपी एसेम्बली 2022 में बीजेपी के विकल्प के रुप में कांग्रेस उभर सकती है। शायद कांग्रेेस और बीजेपी भी यही अंदरूनी मंशा है। तभी क्षत्रप नेताओं अखिलेश यादव,मायावती एवं अजित सिंह को अंदर ही अंदर डर है कि अबकी चुनाव में नकारे गये तो उनके क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व सदा के लिए खतरे में पड़ जायेगा।
सारी लड़ाई यूपी और बिहार में मुस्लिम वोट बैंक को लेकर हो रही है। यूपी में मायावती-अखिलेश चाह रहे हैं कि यह वोटबैंक उनके पास बरकरार रहे और एकतरफा उनके गठबंधन को मिले। कांग्रेस भी चाहती है कि उसका पुराना वोटबैंक उसके पास फिर से वापस आ जाये। जहां तक मुस्लिम वोटरों का सवाल है वो उसी को वोट देंगे जो बीजेपी को हरा रहा होगा। इसी लड़ाई का लाभ बीजेपी कितना उठा पाती है और धु्रवीकरण कैसे कराती है, परिणामों से ही पता लगना है। अबकी बार खेल का दारोमदार ब्राह्मïण वोटरों के हाथ में है। इनका एकतरफा वोट यदि इस बार कांग्रेस को मिल गया तो तय है कि दिल्ली में बनने वाली सरकार कांग्रेस की होगी। पिछले तीन-चार चुनाव में जिस तरह से सवर्ण मतदाताओं की उपेक्षा हो रही है, उसके झुकाव को जो दल अपनी ओर आकर्षित कर लेगा वही मुकद्दर का सिकंदर होगा। कारण है कि राजनीति एक बार फिर दलित-पिछड़े और मुस्लिम वोटबैंक के गठजोड़ की ओर जाती दिख रही है, ऐसे में सवर्ण वोटरों की भूमिका हार को जीत में बदल सकती है।
यूपी में लाल कृष्ण आडवाणी के बाद डाक्टर मुरली मनोहर जोशी के टिकट कटने की खबर, बिहार में गिरिराज सिंह की सीट का बदला जाना, मेनका-वरुण गांधी का स्टार प्रचारकों में नाम नहीं होना और जगह-जगह टिकट और प्रत्याशियों को बदले जाने से मचे घमासान ने बीजेपी का रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है। खास बात यह है कि पीएम की कुर्सी दौड़ में पुन: शामिल नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ मदद जमकर करने वाले हैं। दोनों के चुनाव क्षेत्र में योगी का दौरा फाइनल हो रहा है। मोदी वाराणसी से पुन: चुनाव लड़ रहे हैं। तो अमेठी में राहुल की मदद के लिए देश के चार राज्यों के सीएम अशोक गहलोत, कमलनाथ, भूपेश बघेल, कैप्टन अमरिंदर सिंह का कार्यक्रम भी लग रहा है। कह सकते हैं कि यूपी की चुनावी महादंगल से ही देश का पीएम निकलना है और दिल्ली का रास्ता यूपी होकर ही जाना है।