गुरदासपुर की आतंकी घटना के लिए जिम्मेदार कौन?

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कृष्णमोहन झा।
पंजाब के गुरदासपुर जिले के अंतर्गत दीवनगर थाने पर हुए आतंकी हमले में एसपी और पुलिस के 4 कर्मचारियों के साथ तीन नागरिकों को अपने प्राण निछावर करने पड़े लेकिन संतोष की बात केवल यही हो सकती है कि इस कायराना वारदात को अंजाम देने वाले तीनों आतंकवादियों को जिंदा बचकर भागने का मौका नहीं मिल सका। पुलिस और सेना के जवानों ने इन तीनों आतंकवादियों को मौत के घाट उतारने में सफलता पाई जो राज्य से गुजरने वाली एक रेलगाड़ी को निशाना बनाकर सैकड़ों निर्देष नागरिकों की जान लेने के इरादे से भारत की सीमा के अंदर प्रविष्ट हुए थे। वैसे अगर उन आतंकवादियों को जिन्दा पकड़ लिया जाता तो शायद उनसे बहुत गोपनीय जानकारियां उगलवाई जा सकती थी जैसी कि मुंबई के आतंकी हमले के एक आरोपी कसाब से मिली थी फिर भी निश्चित रूप से इसके लिए पुलिस और सेना की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने तीनों आतंकियों को जिन्दा नहीं लौटने दिया। यह भी अपने आप में एक बड़ी सफलता है।
पिछले लगभग बीस सालों से आतंकवाद से महफूज पंजाब में हुई इस आतंकी हमले की वारदात ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए है। यह हमला सारे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है। क्योंकि इसमें भविष्य के खतरों का भी संकेत छुपा हुआ है। यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं हैं कि केन्द्र में सत्तारूढ़ राजग के एक घटक अकाली दल की जो सरकार पंजाब में सत्ता की बागडोर थामे हुए है वह इस हमले के लिए अपने राज्य के खुफिया तंत्र की असफलता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। अकाली सरकार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को इस बात पर नाराजगी है कि उनकी सरकार पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि केन्द्र द्वारा पंजाब में आतंकी हमले की चेतावनी दे दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार ने ऐतियाती कदम नहीं उठाए। बादल ने उल्टे केन्द्र सरकार पर यह सवाल दाग दिया है कि केन्द्र ने आतंकियों को राज्य की सीमा के अंदर घुसने ही क्यों दिया। बादल कहते हैं कि घुसपैठ रोकना केंद्र की जिम्मेदारी है। यह भी कम आश्चचर्यजनक नहीं है कि एक ओर जब मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल इस मामले को लेकर अपनी सरकार पर किसी भी लापरवाही के आरोप से इंकार कर रहे थे तभी उनके पुत्र और उपमुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल पांच दिन के लिए पोलेण्ड के दौरे पर रवाना हो रहे थे।
इस आतंकी वारदात के बाद सवाल यह नहीं है कि आतंकियों के किसी राज्य में प्रवेश के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए और किसे जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए बल्कि असल सवाल तो यह है कि आतंकी हमला चाहे किसी इलाके में हो क्या वह समूचे देश के लिए चिंता का विषय नहीं है और आखिर इस समस्या का कोई स्थायी समाधान खोजने में हम कभी सफल हो पाएंगे कि नहीं? गुरदासपुर थाने पर आतंकी हमले की कायराना वारदात को अंजाम देने वाले तीनों आतंकियों के इरादे कितने खतरनाक थे और उनसे कितनी तबाही मचती इसके बारे में अब पता चला है। उन्होंने एक रेलवे पुल पर बमों का जाल बिछा कर उस रेलगाड़ी को उड़ा देने की साजिश रची थी जिसमें सेना के जवान और उच्च स्तर के अधिकारी सफर करते है लेकिन आतंकियों की यह योजना इसलिए सफल नहीं हो सकी क्योंकि एक हफ्ते पूर्व ही संबंधित रेलगाड़ी का तकनीकी कारणों से मार्ग परिवर्तित कर दिया गया था। आतंकियों ने जिस स्थान पर स्थित रेलवे पुल पर बम बिछा रखे थे उस स्थान से भारत पाक सीमा कुछ ही किलोमीटर दूर है। अत: आतंकियों की इस योजना को समझना कठिन नहीं है कि वे पुल पर विस्फोट करके ट्रेन को नदी में गिराते और सरलता से सीमा पार कर पाकिस्तान लौट जाते। आतंकियों को जब अपनी साजिश में सफलता नहीं मिली तो उन्होंने एक बस को निशाना बनाया परंतु बस ड्राइवर ने साहस दिखाते हुए उसे एक अस्पताल में ले जाकर खड़ा कर दिया जहां 6 घायलों को तत्काल उपचार मिल सका। वारदात के बाद आतंकियों ने गुरदासपुर थाने को निशाना बनाया। पंजाब पुलिस डीजीपी द्वारा प्रदत्त जानकारी से पता चलता है कि आतंकियों की मंशा 12 जगहों पर आतंकी वारदात को अंजाम देने की थी। भौगोलिक स्थिति की जानकारी देने वाले बने जीपीएस से यह भी ज्ञात हुआ है कि वे सब एक साथ यात्रियों को हमले का शिकार बनाने के इरादे से भारत आए थे। इस हमले की साजिश पाकिस्तान में ही रची गई थी। गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के लिए पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए आसपास के इलाकों में सेना ही सघन चौकसी कर रही है। सेना ‘आपरेशन शिवÓ में इतनी सख्ती बरत रही है कि आतंकियों को वहां अपने मंसूबों में कोई सफलता नहीं मिल सकती थी। तब आतंकियों ने इस इरादे से गुरदासपुर का क्षेत्र चुना क्योंकि बड़ी संख्या में इसी रास्ते से होकर अमरनाथ यात्री अपनी पवित्र यात्रा पूरी करते है। पंजाब में हुई इस आतंकी वारदात ने राज्य सरकार को सतर्क होने की आवश्यकता का एहसास करा दिया है। साथ ही बादल सरकार को भी अब इस बिन्दु पर गंभीरता से विचार करना होगा कि वह जिस तरह से जरनल सिंह भिडरावाले के अनुयायियों को खुलेआम उसके महिमा मंडन की छूट दे रही है उससे क्या राज्य में खालिस्तान आंदोलन के पुनर्जीवित होने का खतरा पैदा नहीं हो गया है। पाकिस्तान तो लगातार इन कोशिशों में जुटा हुआ है कि वह पंजाब में फिर से खालिस्तानी उग्रवाद का सिर उठाने का मौका उपलब्ध करा दे। सुरक्षा बलों की सख्ती के कारण जम्मू कश्मीर में फिर पांव जमाने में असफल पाक समर्थित आतंकवादी अब पंजाब की ओर रूख करने का मंसूबा पाले हुए हैं क्योंकि यहां से भारत पाक सीमा अधिक दूर नहीं है अत: यहां पर अपनी गतिविधियों का विस्तार करने में उसे सुविधा महसूस होगी। अतएव अब पंजाब की बादल सरकार को अब राज्य में शांति व्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर नए सिरे से पुख्ता इंतजाम और कारगर रणनीति पर विचार करना होगा। वह केन्द्र पर सारी जिम्मेदारी डालकर निश्चिंत नहीं हो सकती अन्यथा उसे जनता का समर्थन मिलते रहने की उम्मीद छोडऩी होगी।
पंजाब की आतंकी वारदात ने केन्द्र की मोदी सरकार के सामने भी यह सवाल खड़ा कर दिया है कि वह उस पड़ोसी देश के साथ किस तरह से पेश आए जो हमारे देश में अशांति फैलाने की हरकतों से बाज नहीं आना चाहता। भारत में हुए सभी आतंकी हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के हमारे पास पर्याप्त सबूत मौजूद रहे है और उन्हें हमने पाकिस्तान सरकार को सौंपा भी है परंतु पाकिस्तान सरकार ने हमेशा उन्हें नकार दिया। भारत में अशांति फैलाने के काम में जुटे आतंकी संगठनों लश्करें तैयबा और जैश ए मुहम्मद के सरगनाओं को पाकिस्तान में पूरी स्वतंत्रता मिली हुई है। मुंबई के आतंकी हमले की साजिश रचने वाले लखवी को वहां की अदालत ने सबूतों के अभाव में ही रिहा कर दिया है। भारत ने उसकी आवाज का नमूना देने की मांग की तो पाक अदालत ने कह दिया कि उनके यहां ऐसा कोई कानूनी प्रावधान ही नहीं है।
भारत में हुए आतंकी हमलों से पल्ला झाडऩे में पाकिस्तान ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। अभी कुछ दिन पूर्व ही रूस के उफा शहर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिले थे दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू करने पर सहमति भी बनी थी परंतु पाकिस्तान लौटने ही नवाज शरीफ के स्वर बदल गए। पाकिस्तान में सरकार की बागडोर किसी भी दल के हाथों में रही हो परंतु उसे सेना और आईएसआई की मर्जी से ही चलना पड़ता है। दरअसल जब तक सेना और आईएसआई आतंकवादी संगठनों की पीठे थपथपाते रहेंगे तब पाकिस्तान से होने वाली कोई भी बातचीत किसी सकारात्मक नतीजे तक नहीं पहुंच सकती। इसलिए हमारे सामने अब यही विकल्प शेष रहता है कि हम आतंकवादी घटनाओं से सख्ती से निपटे। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हमे अपने खुफिया तंत्र को इतना सक्षम बनाना होगा कि आतंकवादी किसी वारदात को अंजाम देने के पहले दबोच लिए जाएं। गुरदासपुर में हुई आतंकी वारदात के 24 घंटे बाद सीमा सुरक्षा बल ने भी यह स्वीकार किया है कि पंजाब में उसकी तैयारी जम्मू कश्मीर जैसी मजबूत नहीं थी। पहले हुई आतंकी वारदातों में भी खुफिया तंत्र की कमजोरी उजागर हो चुकी है जिसका फायदा आतंकी उठाते रहे है। अगर केन्द्र की खुफिया एजेंसियों ने किसी राज्य को आतंकी हमले के बारे में आगाह कर भी दिया तो राज्य सरकार सेे कोई चूक रह गई। दोनों के बीच तालमेल का अभाव भी आतंकी घटनाओं के पीछे एक बड़ा कारण रहता है। दरअसल अब हमारे खुफिया तंत्र में ही आमूलचूल परिवर्तन करके उसे इतना सक्षम बनाने की जरूरत महसूस की जाने लगी है कि सीमा पर से आने वाले आतंकी हमारे देश में प्रवेश करने का साहस ही न जुटा पाएं। देखना यह है कि केन्द्र की मोदी सरकार इस दिशा में क्या पहल करती है।