देबराय समिति के सुझाव खारिज: भारतीय रेल रहेगी सरकारी

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नई दिल्ली। रेलवे बोर्ड ने बिबेक देबराय समिति की रिपोर्ट को प्रथमदृष्ट्या खारिज कर दिया है। बोर्ड का मानना है कि समिति की अंतरिम और अंतिम रिपोर्ट में भारी अंतर होने से रिपोर्ट को लेकर गलत संदेश गया है। इसके अलावा रिपोर्ट की कई सिफारिशें अव्यावहारिक हैं। देबराय समिति की रिपोर्ट पर चर्चा के लिए पिछले सप्ताह पूर्ण रेलवे बोर्ड की बैठक हुई थी। सूत्रों के अनुसार इसमें बोर्ड के ज्यादातर सदस्यों का कहना था कि अंतरिम रिपोर्ट के कई सुझावों पर पहले ही काम चल रहा है। अगर अंतिम रिपोर्ट के अव्यावहारिक सुझावों को लागू करने की कोशिश की गई तो वह प्रक्रिया भी रुक जाएगी और औद्योगिक अशांति का खतरा पैदा हो जाएगा। इसलिए अंतिम रिपोर्ट को फिलहाल अलमारी में बंद रखना चाहिए। देबराय समिति ने अप्रैल में सौंपी अपनी अंतरिम रिपोर्ट में रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन के साथ ट्रेन संचालन में निजी क्षेत्र को तत्काल उतारने का सुझाव दिया था। मगर जून में सौंपी अंतिम रिपोर्ट में निजीकरण को कुछ समय के लिए टालने तथा केवल राजधानी व शताब्दी ट्रेनों का संचालन निजी क्षेत्र को सौंपने की बात कही गई है। इसी तरह अंतरिम रिपोर्ट में आरपीएफ, रेलवे अस्पतालों और स्कूलों को खत्म करने और इन्हें प्राइवेट सेक्टर को देने का सुझाव दिया गया था। अंतिम रिपोर्ट में इन मुद्दों पर प्राय: चुप्पी साध ली गई है। इन विरोधाभासी सिफारिशों के कारण रेलवे यूनियनें देबराय समिति की खिल्ली उड़ा चुकी हैं। उन्होंने इसकी सिफारिशों को लागू करने पर अनिश्वितकालीन हड़ताल की चेतावनी दे दी है। ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्र के अनुसार देबराय समिति ने एक सुव्यवस्थित तंत्र को नष्ट करने का प्रयास किया है। आरपीएफ और रेलवे बजट को समाप्त करने की उनकी सिफारिशें समझ से परे हैं। रेलवे की सुरक्षा निजी एजेंसियों के बस की नहीं है। जबकि एकवर्थ कमेटी ने 1924 में रेल बजट को अलग रखने का सुझाव इस पर विशेष तवज्जो दिए जाने के मद्देनजर दिया था, लेकिन हुआ उलटा। न केवल रेलवे को बजटीय समर्थन में लगातार कमी की गई, बल्कि राजनीतिक दखल भी खूब हुआ। रेलवे को बजटीय सहायता 70 से घटकर 30 फीसद रह गई है। धन की कमी से लाइनों का विस्तार नहीं हो सका है।