ग्रामीण पर्यटन से सृजित होंगे रोजगार के नये अवसर

अशोक प्रवृद्ध। प्रतिदिन की आपाधापी में एक ही काम और एक ही प्रकार की जिन्दगी से ऊबकर मनुष्य कुछ क्षण सुख- शांति व शुकून की छाँव में जीवन जीने की इच्छा पूर्ति हेतु अर्थात फुर्सत के कुछ क्षणों को खुशगवार बनाने के लिए यात्रा अथवा नवीनस्थानों को ढूँढने के लिए निकला पड़ता है। व्यस्त पर्यटक मौसम के दौरान परम्परागत पर्यटक स्थलों पर भारी भीड़ होतीहै, और नये दर्शनीय स्थानों के लक्ष्य के चयन और इसमें होने वाली व्यय की भी इसमें मुख्य व महत्वपूर्ण भूमिका होता है।वर्तमान में नगरीय जीवन के आदि अर्थात शहरीकृत हो चुके समाज में ग्रामीण पर्यटन शहरी आबादी के बीच निरन्तरलोकप्रिय हो रहा है। आज संसार की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है, और यह उम्मीदहै कियह अनुपात 2050 तक बढक़र 66 प्रतिशत पर पहुँच जायेगा। संयुक्त राष्ट्र डीईएसए की जनसंख्या डिवीजन द्वारा व्यक्तकी गई विश्व शहरीकरण सम्भावनाएँ (2014) के अनुसार शहरीकरण में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी भारत, चीन और नाइजीरियामें होगी। वर्ष 2014 से 2050 के दौरान विश्व की शहरी आबादी में होने वाली अनुमानित वृद्धि में 37 प्रतिशत हिस्सेदारीइन तीन देशों की होगी। अनुमान है कि 2050 तक भारत में शहरी निवासियों में 40.4 करोड़, चीन में 29.2 करोड़ और नाइजीरिया में 21.2 करोड़ की बढ़ोत्तरी होगी। यही कारण है कि घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अब गाँव औरग्रामीणों को भी जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। गाँव व ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के साथ पर्यटन गतिविधियों केमाध्यम से आस -पास के लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार देश के प्रत्येक जिलेके ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित छोटे- बड़े सभी दर्शनीय स्थलों की विवरणी जुटाने में लग गई है। ग्रामीण क्षेत्रों के दर्शनीयस्थलों को विकसित करने की इस मुहिम को राज्यों का भी पूरा साथ मिल रहा है, और झारखण्ड, बिहार, उत्तर प्रदेश,जम्मू-कश्मीर, सिक्किम सहित दर्जन भर राज्यों से अब तक लगभग 200 दर्शनीय स्थलों का ब्योरा लेकर पर्यटन मंत्रालय नेकाम भी शुरू कर दिया है। स्थानीय प्रशासन की मदद से आस- पास के ग्रामीणों से भी संपर्क साधा जा रहा है। इसके तहतवहां के शिक्षित बेरोजगारों और स्थानीय परिवहन से जुड़े लोगों समेत दुकानदारों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा।इसके तहत उन्हें पर्यटकों से बातचीत, व्यवहार और उन्हें इस स्थलों के बारे पूरी जानकारी से अवगत कराना होगा।पर्यटन उद्योग से जुडऩे को इच्छुक युवाओं को प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा। इन सभी को पर्यटन मंत्रालय अपनी ओर से प्रमाणपत्र भी देगा। राज्यों से मिलने वाले इन नए दर्शनीय स्थलों का ब्योरा जल्द मंत्रालय की वेबसाइट पर भी उपलब्ध कराया जाएगा। कोरोना संकट के बाद यह देखने में आया है कि पर्यटक आस- पास की जगहोंपर ही जाना पसंद कर रहे हैं। दूसरी तरफ, शहरी पर्यटकों का रुझान ग्रामीण इलाकों की तरफ बढ़ा है। इस दौरानस्थानीय कला-संस्कृति से भी पर्यटकों को रूबरू कराया जाएगा।ग्रामीण जीवनशैली में सक्रिय रूप से भाग लेने पर केंद्रित ग्रामीण पर्यटन पारिस्थितिकता का एक रूप हो सकता है, और कई गांव पर्यटन को सुविधाजनक बना सकते हैं ,क्योंकि साधारणतया ग्रामीण मेहमाननवाज अर्थात भारतीय मेजबान आगंतुकों के स्वागत के लिए उत्सुक होते हैं। कृषि अत्यधिक मशीनीकृत होते जाने और कम मैन्युअल श्रम की आवश्यकताहोते जाने के कारण यह प्रवृत्ति कुछ गांवों पर आर्थिक दबाव पैदा कर रही है, जो ग्रामीण युवाओं को शहरी क्षेत्रों में जानेका कारण बनती है। दूसरी ओर शहरी आबादी का भी एक वर्ग ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करने और जीवनशैली को समझने मेंरूचि रखता है। भारत गाँवों का देश है, और गाँव व ग्रामीणों के पास देने के लिए बहुत कुछ है। इन क्षेत्रों की पहचान करनेऔर ग्रामीण क्षेत्र में पर्यटन की सम्भावना को ढूंढ पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए केंद्र व प्रदेश की सरकारों कोएकजुट होकर समन्वित प्रयासकरना चाहिए। देश में ग्राम्य पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है, इससे ग्राम्य पर्यटन का विस्तार और विकास दोनों ही सम्भव हो सकेगा। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने ग्रामीण पर्यटन की परिभाषा में स्पष्ट किया है कि कोई भी ऐसा पर्यटन, जो ग्रामीणजीवन, कला, संस्कृति और ग्रामीण स्थलों की धरोहर को दर्शाता हो, जिससे स्थानीय समुदाय को आर्थिक और सामाजिकलाभ पहुँचता हो, साथ ही पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच संवाद से पर्यटन अनुभव के अधिक समृद्ध बनने कीसम्भावना हो, तो उसे ग्रामीण पर्यटन कहा जा सकता है। ग्रामीण पर्यटन अनिवार्यत: एक ऐसी गतिविधि है, जो देश केदेहाती इलाकों में संचालित होती है। यह बहु-आयामी है, जिसमें खेत/कृषि पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, प्रकृति पर्यटन,साहसिक पर्यटन और पर्यावरण पर्यटन शामिल हैं। परम्परागत पर्यटन के विपरीत, ग्रामीण पर्यटन की कुछ खासविशेषताएँ हैं, जैसे यह अनुभव-उन्मुखी होता है, इसके पर्यटक स्थलों पर आबादी बिखरी हुई होती है, इसमें प्राकृतिकवातावरण की प्रमुखता होती है, यह त्योहारों और स्थानीय उत्सवों से सराबोर होता है और संस्कृति, धरोहर और परम्परा के संरक्षण पर आधारित होता है। भारत में पर्यटन मंत्रालय ने ऐसे ग्रामीण पर्यटक स्थलों के विकास पर विशेषबल दिया है, जो समृद्ध कला, संस्कृति, हथकरघा, धरोहर और शिल्प की दृष्टि से गौरवशाली हों। ये गाँव प्राकृतिक सौन्दर्यऔर सांस्कृतिक वैभव दोनों ही दृष्टियों से समृद्ध हैं। ग्रामीण पर्यटन से यह उम्मीद की जाती है कि ग्रामीण उत्पादकता,ग्रामीण पर्यावरण और संस्कृति के संरक्षण, स्थानीय लोगों की भागीदारी की दृष्टि से ग्रामीण इलाकों के लाभ में वृद्धि होऔर परम्परागत विश्वासों और आधुनिक मूल्यों के बीच उपयुक्त अनुकूलन में मदद मिले। भारत में ग्रामीण पर्यटन के प्रमुख प्रकार कृषि पर्यटन, संस्कृति पर्यटन, प्रकृति पर्यटन, साहसिक पर्यटन, समुदाय पारिस्थितिकी पर्यटन, नृजातीय पर्यटन आदि हैं। कृषि उद्योग और फसलें उगाने के लिए कृषकों के द्वारा किये जाने वालेकार्यो में बारे में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करना कृषि पर्यटन है। पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति विषयक गतिविधियों यथा, अनुष्ठानों और उत्सवों में हिस्सा लेने का अवसर प्रदान करना सांस्कृतिक पर्यटन है। पर्यावरण का संरक्षण, और स्थानीय लोगों के कल्याण में सुधार लाने वाले प्राकृतिक स्थलों की जिम्मेवारी के साथ यात्रा करना प्रकृत्ति पर्यटन है। किसी व्यक्ति की क्षमता और अन्तिम सीमा तक उसकी तैयारी का परीक्षण करने का अवसर प्रदान करने वाली कोई भी रचनात्मक गतिविधि साहसिक पर्यटन के अंतर्गत आती है। पर्यटकों को भारत के स्थानीय व्यंजनों की विविधताओं काआनन्द लेने का अवसर प्रदान करना भोजन पर्यटन के अंतर्गत आता है। पर्यटन भोजन विभिन्न स्थानों के प्रमुख भोजनों कीजानकारी प्राप्त करने में पर्यटकों को मदद करता है। पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय ग्रामीणों के जीवन में सर्वांगीणविकास के उद्देश्य से प्राकृतिक स्थलों की जिम्मेदारी पूर्ण यात्रा समुदाय परिस्थीतिकी पर्यटन कहलाता है। विभिन्नसंस्कृतियों के क्षितिजों के विस्तार के उद्देश्य से किसी अनिवार्य निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति के लिए विभिन्न जातीय वसांस्कृतिक जीवन शैलियों व आस्था- विश्वासों के सन्दर्भ में जानकारी प्राप्त करना नृजातीय पर्यटन की श्रेणी में आता है।हाल के दिनों में लोगों की ग्रामीण पर्यटन में रुचि बढ़ती देखी जा रही है। कृषि, खेती- किसानी, स्थानीय ग्राम्य शासन,रीति रिवाज, रहन- सहन आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सहायक होने के कारण भी लोगों की ग्रामीण पर्यटन मेंरुचि बढ़ी है। ग्रामीण पर्यटन ग्रामीण जीवनशैली के बारे में शहरियों के बीच फैली भ्रम दूर करने में सहायक है, जैसे-ग्रामीण लोगों का अस्वास्थ्यकर वातावरण में रहना, या ग्रामीण जीवन असुरक्षित होना आदि। ग्रामीण पर्यटन किसीव्यक्ति को भारत के सुदूर क्षेत्रों में व्याप्त विविधता की खोज करने का अवसर प्रदान करता है। यही कारण है कि भारतसरकार के पर्यटन मंत्रालय ने अभी तक पर्यटन की दृष्टि से अज्ञात रहे ऐसे अनेक स्थानों की पहचान की है, जिसका विकास ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटक लक्ष्यों के रूप में किया जा रहा है। ऐसे पर्यटक स्थलों के समग्र विकास में मदद करने के लिये मंत्रालय ने विभिन्न कार्यक्रम प्रारम्भ किये हैं।भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और प्राकृतिक धरोहरों के द्वारा पर्यटन और रोजगार सृजन के विकास के व्यापक अवसर प्रदान करने के लिए विषय – आधारित सर्किटों के समेकित विकास के लिए स्वदेश दर्शन कार्यक्रम,आध्यात्मिक संवर्धन के लिये तीर्थयात्रा नवीनीकरण अभियान के लिए प्रसाद अर्थात पिल्ग्रिमेज रिज्यूवनेशन फॉरस्प्रिचुअल ओगमेंटेशन ड्राइव, ई-पर्यटक के माध्यम से वीजा सुविधा आदि योजनाओं के द्वारा अन्तरराष्ट्रीय पर्यटकों केआगमन को सुविधाजनक बनाने के लिये पर्यटन मंत्रालय, गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहाहै। ग्रामीण क्षेत्रों में घरों में ठहरने की व्यवस्था होम स्टे को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। बढ़ते ग्रामीण पर्यटन का सबसे महत्त्वपूर्ण रचनात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। ग्रामीण भारत में पर्यटकों की बढ़ती संख्या के साथ लोगों के बीचव्यापार का स्तर बढऩे से उनकी आय के स्तर में वृद्धि, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर तथा स्थानीय परम्परागतउद्योग यथा हथकरघा और हस्तशिल्प आदि में भी रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी। इससे समूची अर्थव्यवस्था परसकारात्मक प्रभाव पडऩे के साथ ही पर्यटकों के साथ विचारों के आदान-प्रदान से ग्रामीण लोगों में नये विचार सृजितहोंगे। इससे शिक्षा, निवारक स्वास्थ्य देखभाल, आधुनिक उपकरणों आदि के प्रति लोगों की रुचि बढ़ेगी। इससे साक्षरताका सर्वत्र प्रसार करने में भी मदद मिलेगी। अधिकाधिक पर्यटकों द्वारा गाँवों की यात्रा करने से सडक़ों के माध्यम से सम्पर्कमें सुधार आएगा और सार्वजनिक परिवहन में बढ़ोत्तरी होगी। अभ्यारण्यों और सुरक्षित उद्यानों के निकट रहने वालेग्रामीण अपने शहरी सहभागियों को प्रकृति के संरक्षण की शिक्षा दे सकते हैं। सदियों से प्रकृति की शरण में रहने के कारणउन्हें प्रकृति के संरक्षण के तौर-तरीकों की जानकारी निश्चित रूप से अधिक होती है। परन्तु ग्रामीण पर्यटन पर कुछ नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकते हैं। पर्यटन के लिये सुविधाएँ जुटाने से देहात में बुनियादी ढाँच के विकास में बढ़ोत्तरीहोगी। इससे ग्रामीण क्षेत्र में कंक्रीट बढ़ेगा, जिससे उनका प्राकृतिक सौन्दर्य कम हो सकता है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या से प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी हो सकती है। पर्यटन का लोगों की परम्परागत जीविका पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है।ग्रामीण आबादी कृषि और अन्य परम्परागत जीविका माध्यमों की बजाए पर्यटन से सम्बद्ध आकर्षक जीविका माध्यमों मेंस्थानान्तरित हो सकती है। इससे ग्रामीण पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। जीवन की प्रत्येक पहलू केसकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्ष होते हैं। ग्रामीण पर्यटन की स्थायी विकास के लिए यह आवश्यक है कि रचनात्मकप्रभाव अधिक हों और नकारात्मक प्रभाव कम पड़ें।