बाबा की चाशनी मतलब पतंजलि शहद

अमृतांशु मिश्र। योग गुरू बाबा रामदेव की हजारों करोड़ वाली कंपनी पतंजलि का शहद जांच में फेल हो गया। बाबा के उत्पाद जांच दर जांच में फेल तो होते हैं मगर इसके बाद भी उनपर किसी प्रकार की रोक टोक नहीं है। बाबा के शहद को प्रचार में एक दम शुद्ध व ताजा बताया गया है मगर जांच में उसकी हालत एकदम उलट रही है। पाया गया बाबा के शहद में चाशनी की मात्रा अधिक है।
हाल ही में कई नामी कंपनियों के शहद की शुद्धता जांच के घेरे में नजर आई है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट यानी विज्ञान और पर्यावरण केंद्र ने शहद के नमूनों पर चिंता जताई है। देश के 13 शीर्ष और भारत में बेचे जाने वाले प्रसंस्कृत और कच्चे शहद के छोटे ब्रांडों के शहद के सैंपल को खाद्य शोधकर्ताओं ने प्राथमिक जांच में अमानक पाया है। जांच निष्कर्ष के मुताबिक 77 फीसदी नमूनों में चासनी की मिलावट की गई। कुल 22 नमूनों की जांच में से मात्र पांच सैंपल ही परीक्षण में मानक पाए गए।
वेबसाइट आउटलुकइंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, झंडू, हितकारी और एपिस हिमालय सरीखे प्रमुख ब्रांडों के शहद के नमूने एनएमआर (न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस) परीक्षण में विफल रहे। हालांकि इमामी (झंडू), डाबर, पतंजलि आयुर्वेद और एपिस हिमालय ने सीएसई के दावों का खंडन किया है और उत्पादों को मानक बताया है। शहद जैसे द्रव्य में अमानक मिश्रण से कंपनियों के निर्माण के तरीकों पर सवाल उठ रहे हैं कि कोरोना जैसी बीमारी के रक्षक बताए जा रहे आयुष क्वाथ, कोरोनिल किट आदि के फार्मुलेशन में क्लीनिकल ट्रायल के अभाव में कितनी सतर्कता बरती गई होगी? दरअसल सीएसई अध्ययन जारी होने के एक दिन बाद, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने कंपनियों से शहद के परीक्षणों का विवरण मांगा था। यहां यह भी सवाल उठा कि शहद के निर्धारित परीक्षण क्यों नहीं किए गए?अब ग्राहक को खुद तय करना है कि वह कोरोना से बचने का उपाय बताए जा रहे आयुर्वेदिक कैप्सूल, टैबलेट, चूरन, जूस, कोरोनिल किट पर आंख मूंद कर भरोसा कर जेब ढीली करे। या फिर सादा जीवन उच्च विचार वाली संयमित दिनचर्या के साथ अपने प्रतिरक्षा तंत्र को खुद ही नियंत्रित कर जेब खर्च को भी कंट्रोल करे।